- भरत शर्मा (दिल्ली)
अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की फ़तह पर भले दुनिया चौंक रही हो, लेकिन लगता है अकेले दम पर सियासत के दिग्गजों को चुनौती देने वाले को जनता इन दिनों जीत से नवाज़ रही है। ओपिनियन पोल और जानकारों के अंदाज़ पूरी तरह ग़लत साबित होने लगे हैं। और ग़ैर-पारंपरिक तौर-तरीक़ों से जीत सुनिश्चित होने लगी है।
क़रीब ढाई साल पहले कुछ ऐसा ही भारत में हो चुका है। नरेंद्र मोदी ने पहले अपनी पार्टी के दावेदारों को दरकिनार किया और फिर दिल्ली में अपने विरोधियों को किनारे लगाया। ट्रंप ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया। पहले टेड क्रूज़ और मार्को रुबियो को हराकर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी जीती, फिर सियासत में ख़ुद से कहीं ज़्यादा अनुभवी हिलेरी क्लिंटन को शिकस्त दी। इन दोनों नेताओं की कहानी में कई समानताएं एक सी हैं:-
बाहरी, सब पर भारी :
गुजरात से दिल्ली पहुंचने की जुगत लगा रहे नरेंद्र मोदी को अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ा था। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं और उनके शुभचिंतकों ने मुश्किलें पैदा करने की कोशिश की, लेकिन मोदी आगे बढ़ते चले गए।
डोनल्ड ट्रंप का सफ़र भी ऐसा ही रहा। उन्हें चुनौती देने वालों में मार्को रुबियो, टेड क्रूज़, क्रिस क्रिस्टी और बेन कार्सन जैसे नाम शामिल थे। निर्णायक लड़ाई में वो आख़िरकार टेड क्रूज़ से भिड़े और जीते।
स्टाइल, थोड़ा अलग : नरेंद्र मोदी हों या डोनल्ड ट्रंप, दोनों का चुनावी अभियान, आक्रामक अंदाज़ की वजह से शुरुआत से विवादों में रहा है। चुनावी अभियान के दौरान मोदी हमले बोलने में ज़रा नहीं हिचकते थे। उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलने के लिए 'मां-बेटे की सरकार' का नारा मशहूर किया और ट्रंप ने अपनी विरोधी को 'क्रूक्ड हिलेरी' का नाम दिया। दोनों नेताओं ने डोर टू डोर अभियान के बजाय विशाल रैलियों को तरजीह दी और कामयाब रहे।
अतीत का भूत : लोकसभा चुनाव के दौरान जब नरेंद्र मोदी विरोधियों पर हमला बोल रहे थे तब विपक्ष अतीत की घटनाओं को लेकर उन्हें निशाना बना रहा था। गुजरात दंगों के आरोपों को लेकर उन्हें निशाना बनाया गया। साथ ही विरोधियों ने एक महिला की जासूसी का मुद्दा भी उछाला। ट्रंप पर भी अतीत को लेकर ख़ूब हमले हुए। कई महिलाओं ने उन पर आरोप लगाए। हिलेरी ने भी उन पर कई तीर भी चलाए।
एकला चलो रे : भारत और अमेरिका के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ कि एक नेता ने अकेले दम पर सभी को ढेर कर दिया। भाषण देने का तरीक़ा हो या हर मोर्चे पर जीत को लेकर रणनीति बनाना, नरेंद्र मोदी और डोनल्ड ट्रंप ने मंझे हुए खिलाड़ियों को चकमा दिया। विरोधी घेरने में लगे रहे, लेकिन ट्रंप ने अपने दम पर ना केवल अपनी पार्टी के साथियों को हराया, बल्कि अभियान में हिलेरी से कम ख़र्च करने के बावजूद जीते।
ज़रा चटख़ारा भी : लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और अमेरिकी चुनावों में डोनल्ड ट्रंप, दोनों के भाषणों ने ख़ूब सुर्खि़यां बटोरीं। चटख़ारे लेते हुए आरोप लगाए और अपने वोटर तक पहुंचने की कोशिश की और कामयाब रहे। दोनों ने मीडिया पर भी आरोप लगाए। बोलने के अंदाज़ में तंज़ भी दिखा और चटख़ारे भी। और दोनों ने जीतकर जब बयान दिया, तो संतुलन और संयम नज़र आया।