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मोदी कैबिनेट: दलित और पिछड़े मंत्री उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिताने में कितनी मदद करेंगे?

हमें फॉलो करें मोदी कैबिनेट: दलित और पिछड़े मंत्री उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिताने में कितनी मदद करेंगे?

BBC Hindi

, गुरुवार, 8 जुलाई 2021 (08:11 IST)
विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता
मोदी कैबिनेट से 12 मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाकर, ऐसे वक़्त पर कैबिनेट विस्तार किया है जब उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव नज़दीक हैं और पार्टियों की निगाहें 2024 की तैयारियों पर भी हैं।
साल 2024 संसदीय चुनाव जीतने के लिए भाजपा का बंगाल और उत्तर प्रदेश जीतना महत्वपूर्ण है। संसाधनों के भारी निवेश, चुनावी हाइप, और टीएमसी नेताओं को जोड़ने के बावजूद पार्टी बंगाल का महत्वपूर्ण चुनाव हार गई।
 
उत्तर प्रदेश में कोविड से निपटने में कथित नाकामी, राज्य में सत्ता के कथित केंद्रीयकरण और ठाकुरों के बढ़ते दखल के आरोपों के बीच हालात ऐसे हुए कि पार्टी के अपने ही नेताओं ने शिकायती चिट्ठी लिखी। नदियों में बहती लाशों ने ज़मीनी स्थिति की पोल खोली।
 
ऐसे वक्त जब उत्तर प्रदेश में चंद महीने में चुनाव होने वाले हैं, जानकारों के मुताबिक कैबिनेट में प्रदेश के सात मंत्रियों को शामिल करके पार्टी ने राज्य में जातीय गणित ठीक बैठाने की कोशिश की है।
 
शामिल हुए मंत्री हैं महाराजगंज से सांसद और छह बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले पंकज चौधरी, अपना दल की अनुप्रिया पटेल, आगरा से सांसद एसपी बघेल, पांच बार सांसद रहे भानु प्रताप वर्मा, मोहनलालगंज सांसद कौशल किशोर, राज्यसभा सांसद बीएल वर्मा और लखीमपुर खीरी से सांसद अजय कुमार मिश्रा। एक ब्राह्मण को छोड़कर बाकी छह का ताल्लुक ओबीसी और दलित समाज से है और वो गैर-यादव और गैर-जाटव हैं।
 
पंकज चौधरी और अनुप्रिया पटेल ओबीसी कुर्मी समाज से हैं। कौशल किशोर पासी समाज से हैं। जाटव के बाद उत्तर प्रदेश में पासी समाज का बड़ा वोट बैंक है।
 
बीएल वर्मा लोध (पिछड़ी जाति) समाज से आते हैं और माना जाता है कि लोध समुदाय पर उनका अच्छा असर है। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी लोध समाज से हैं। भानु प्रताप वर्मा दलित हैं।
 
तो क्या प्रदेश से सात मंत्री बनाए जाने का असर आने वाले महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा?
क्या इन चेहरों को केंद्र में मंत्री बनाए जाने से योगी सरकार पर कोविड से निपटने में हुई अव्यवस्था के आरोप हल्के पड़ेंगे, या फिर ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और अस्पताल बेड की कमी से हुई मौत पर स्थानीय लोगों की पार्टी और सरकार से नाराज़गी कम होगी?
 
याद रहे कि कोविड की दूसरी लहर से केंद्र सरकार जिस तरह निपटी, उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई वोटर भी उनसे नाराज़ हुए। आम लोगों की सोच का अंदाज़ा दो सर्वे से मिला जिनके मुताबिक नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग गिरी।
 
अपरिचित चेहरे?
एक सोच है कि अनुप्रिया पटेल के अलावा बाकी चेहरे तुलनात्मक तौर पर बहुत जाने पहचाने नहीं हैं तो ऐसे में क्या वो इतने कम समय में प्रदेश की राजनीति में कोई बदलाव ला पाएंगे?
 
लखनऊ में पत्रकार उमेश रघुवंशी के मुताबिक सारी कोशिश सही जातीय समीकरण बैठाने पर है। वो पूछते हैं कि कैबिनेट विस्तार से रीता बहुगुणा जोशी और जीतेंद्र प्रसाद जैसे नाम नदारद क्यों हैं क्योंकि कैबिनेट विस्तार से पहले ब्राह्मण वोट पर पकड़ मज़बूत करने के लिए इन नामों पर अटकलें चल रही थीं।
 
उधर लखनऊ में पत्रकार सुनीता ऐरन के मुताबिक ये चेहरे बाहर बहुत जाने माने न हों, लेकिन अपने- अपने इलाकों पर उनकी अच्छी पकड़ है, ये पढ़े-लिखे हैं और उनके चयन पर आरएसएस की सीधी छाप है।
 
सुनीता ऐरन कहती हैं कि मंत्री बनाए लोगों ने अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है। वो कौशल किशोर का हवाला देती हैं जिन्होंने लीवर सिरोसिस से बेटे की मौत के बाद युवाओं को शराब से दूर करने के लिए एक अभियान की शुरुआत की। या फिर कुर्मी समाज के पंकज चौधरी जो कि समाजकर्मी है जिन्होंने गरीब और दबे और शोषित समाज की दशा सुधारने के लिए काम किया।
 
वो कहती हैं, "कैबिनेट एक्सपैंशन में कुछ ताज्जुब वाली बाते तो हैं लेकिन अगर आप ध्यान से देखें तो चयन अच्छा है।"
 
पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी के मुताबिक भाजपा को पता है कि चुनाव के दौरान सामाजिक समीकरण भारी हो जाता है और वो चुनाव जीतने में मदद करता है।
 
वो कहते हैं, "कैबिनेट में अलग अलग इलाकों से लोगों को लिया गया है। एक आगरा से है, एक बदायूं से, एक बुंदेलखंड से, एक लखनऊ से, एक खीरी से। तो इस चयन में क्षेत्रीय और जातीय दोनो संतुलन हैं।"
 
उधर सुनीता ऐरन के मुताबिक भाजपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति मज़बूत करने की कोशिश की है ताकि किसान आंदोलन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाले किसी नुकसान को रोका जा सके। उनका मानना है कि पार्टी का निशाना 2024 के चुनाव हैं और 2022 का चुनाव उस दिशा में एक कदम है।
 
संतोष सिंह गंगवार को हटाने से नुकसान?
सुनीता ऐरन के मुताबिक संतोष सिंह गंगवार को कैबिनेट से हटाना भाजपा के विरुद्ध जा सकता है क्योंकि गंगवार समाज संतोष कुमार गंगवार से जुड़ा हुआ है। याद रहे है कि संतोष सिंह गंगवार ने राज्य में कोविड की स्थिति पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक शिकायती पत्र भेजा था।
 
पत्रकार सुनीता ऐरन को ये भी लगता है कि कैबिनेट सूची में किसी जाने पहचाने ब्राह्मण चेहरे का नहीं होना भी भाजपा के विरुद्ध जा सकता है।
 
अजय कुमार मिश्र के चयन पर वो कहती हैं, "न तो वो कोई जाना-पहचाना चेहरा हैं, ना ही वो पार्टी का ब्राह्मण चेहरा हैं।"
 
उत्तर प्रदेश में एक सोच रही है कि राज्य में ब्राह्मण भाजपा से दूर हुए हैं और जीतिन प्रसाद के पार्टी में आने से इस दूरी को कम करने में मदद मिलेगी।
 
कथित कोविड मिसमैनेजमेंट के आरोपों का क्या?
भारत में कोविड से मरने वालों की आधिकारिक संख्या चार लाख के पार चली गई है। अर्थव्यवस्था की हालत खस्ताहाल है। महंगाई और बेरोज़गारी बढ़ रही है।
 
उत्तर प्रदेश भी स्थिति से अछूता नहीं है। राज्य में कोविड से पैदा हुए हालात की तस्वीरों को दुनिया भर में देखा गया। कई लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज़ थे। ऐसे में क्या इस कैबिनेट विस्तार से राज्य में पार्टी के लिए राजनीतिक ज़मीन में बदलाव आएगा?
 
सुनीता ऐरन के मुताबिक कैबिनेट विस्तार में उत्तर प्रदेश से लोगों का शामिल किया जाना और कोविड की दूसरी लहर से उपजी स्थिती पर लोगों का गुस्सा दोनो अलग अलग बाते हैं। दूसरी लहर के दौरान शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा जो कोविड त्रासदी से अछूता रहा हो।
 
ऐसे में बेरोज़गारी बढ़ी। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से लोग नौकरी छोड़कर प्रदेश वापस लौटे। काम, धंधा चौपट हुआ। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "वो तो मुद्दे हैं हीं। सरकार को तो उसका जवाब देना ही पड़ेगा।"
 

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