प्रशांत चाहल, बीबीसी संवाददाता
'फुटकर में सब्ज़ी बेचने वाले प्याज़ के भाव का ख़ूब मज़ा ले रहे हैं क्योंकि लोगों को पता ही नहीं है कि प्याज़ का भाव हो कितना गया है।'
दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में प्याज़ व्यापारी संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र बुद्धिराजा ने प्याज़ की क़ीमत से जुड़े एक सवाल पर यह जवाब दिया। हमने उनसे पूछा था कि 100 रुपए किलो का भाव छू चुके प्याज़ को कब तक इतना महंगा ख़रीदना पड़ेगा? तो सुरेंद्र बुद्धिराजा ने थोक के भाव का ज़िक्र किया और कहा कि 'दिल्ली की मंडी में प्याज़ 15 रुपए किलो से लेकर 35 रुपये किलो के रेट में लाया जा रहा है।'
लेकिन यही प्याज़ फुटकर में 60 से 80 रुपये किलो के रेट पर मिल रहा है। शुक्रवार शाम तक दिल्ली के कई स्थानीय बाज़ारों में प्याज़ का यही रेट था।
कृषि विशेषज्ञ बाज़ार के ट्रेंड का हवाला देकर कहते हैं कि 'लगभग हर चार साल में एक बार ये स्थिति पैदा होती है, जब प्याज़ के दाम उछाल मारते हैं। लेकिन यह पहली बार है जब प्याज़ की क़ीमत इतने लंबे समय तक बढ़ी रही है।'
भारी बारिश के कारण पहले महाराष्ट्र और फिर कर्नाटक में फसल ख़राब होने की वजह से क़रीब ढाई महीना पहले प्याज़ की क़ीमत बढ़नी शुरू हुई थी जो एक बार को दिल्ली जैसे बड़े शहरों में 100-150 रुपये किलो के भी पार चली गई थी।
यह डर भी ज़ाहिर किया गया था कि कुछ महीने के लिए शायद प्याज़ खाने को ही ना मिले, जिसके बाद सरकार ने प्याज़ आयात करने का फ़ैसला किया था।
लेकिन फुटकर बाज़ार के पीछे थोक बाज़ार में और प्याज़ की पैदावार करने वाले किसानों के यहाँ अब हालात कैसे हैं? और आगे क्या होने वाला है? इसे समझने के लिए हमने कुछ जानकारों से बात की।
'डेढ़ महीने और...'
एशिया की सबसे बड़ी प्याज़ मंडी लासलगाँव में कृषि उत्पादन समिति के पूर्व प्रमुख और नाफ़ेड (NAFED) के निदेशक नानासाहेब पाटिल कहते हैं कि लंबे मॉनसून की वजह से प्याज़ की डिमांड और सप्लाई का जो चक्र प्रभावित हुआ, उसे पूरी तरह सही होने में अभी भी डेढ़ महीने का समय और लग सकता है।
चाहे दक्षिण भारत हो या उत्तर भारत, लासलगाँव मंडी से ही देश भर में प्याज़ की कीमतें तय होती हैं। शुक्रवार को यहाँ प्याज़ का थोक भाव 20-30 रुपए किलो था। पर कुछ समय पहले इसी मंडी में प्याज़ का थोक मूल्य 50 रुपये प्रति किलो पहुँच गया था।
ये वही समय था जब प्याज़ की क़ीमत ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। लेकिन धीरे-धीरे ही सही, पर अब स्थिति नियंत्रण में लग रही है।
नानासाहेब पाटिल बताते हैं कि 'भारत में प्याज़ साल भर खाया जाता है और प्याज़ की फसल बाज़ार में आने का एक पूरा सर्कल है जो लगभग 12 महीने का है।'
उन्होंने बताया, "जून से अगस्त-सितंबर तक कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का प्याज़ मार्केट में आता है। फिर अक्तूबर में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की खरीफ़ की फसल यानी लाल प्याज़ बाज़ार में आ जाता है। इसके तीन महीने बाद यानी जनवरी में राजस्थान और महाराष्ट्र से लेट खरीफ़ प्याज़ बाज़ार में आती है। फिर कुछ दिन यूपी और बिहार की प्याज़ बाज़ार को संभालती है। अप्रैल-मई तक यहीं का प्याज़ निकलता है।"
कैसे होती रही आपूर्ति?
पाटिल कहते हैं कि बारिश की मार पड़ जाए तो यह पूरा चक्र प्रभावित होता है जिसकी वजह से बाज़ार में क़ीमतें ऊपर नीचे होती रहती हैं।
साल 2019 में नवंबर के पहले हफ़्ते तक दक्षिण भारत में लौटते हुए मानसून की बारिशें होती रहीं जिसकी वजह से फसल चक्र प्रभावित हुआ। इससे फ़सल का नुकसान तो हुआ ही, साथ ही कुछ जगहों पर फ़सल को बोने में देरी भी हुई।
फ़िलहाल गुजरात में होने वाली प्याज़ ने मुंबई और राजस्थान से आने वाली प्याज़ ने दिल्ली और आसपास के बाज़ारों को संभाल रखा है।
साथ ही सरकार ने तुर्की, मिस्र, ईरान और कज़ाकिस्तान से प्याज़ के आयात को मंज़ूरी दे दी थी जिसकी वजह से आपूर्ति होती रही।
लेकिन महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों ने इसकी आलोचना की। किसानों की चिंता थी कि अगर बाहर से प्याज़ आएगा तो यहाँ हो रहे प्याज़ का क्या होगा।
वहीं दिल्ली, पंजाब, मुंबई और अन्य बड़े शहरों की मंडियों में बैठे आढ़तियों को लगता है कि सरकार ने फ़ैसले पर अमल देरी से किया।
विदेशी प्याज़ और भारत का आदमी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकारी कंपनी एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) लिमिटेड अब तक 40 हज़ार टन से ज़्यादा प्याज़ आयात कर चुकी है।
लेकिन मंडियों में बैठे आढ़तियों के अनुसार यह प्याज़ फेंकना पड़ेगा। और इसकी बड़ी वजह है कि भारत का आदमी विदेशी प्याज़ का ज़ायक़ा पसंद नहीं करता।
भारत में होने वाला प्याज़ आकार में छोटा होता है, वज़न औसतन पचास से सौ ग्राम के बीच होता है और उसका रंग लाल से गुलाबी होता है।
वहीं विदेशी प्याज़, ख़ासकर मिस्र और कज़ाकिस्तान से आने वाला प्याज़ सुनहरे रंग का होता है। ये थोड़ा मोटा होता है जिसका औसत वज़न दो ग्राम से अधिक भी हो सकता है।
इसके अलावा ईरान और तुर्की से जो प्याज़ भारत आ रहा है, वो ज़्यादा तीखा है। साथ ही उसमें पानी की मात्रा ज़्यादा जिसकी वजह से भारतीय व्यंजनों में लोग इसे इस्तेमाल करके ख़ुश नहीं होते।
'तो रेट दोबारा बढ़ेगा'
नानासाहेब पाटिल बताते हैं कि महाराष्ट्र में नासिक के किसानों ने वर्ष 1999 में ईरान से आई प्याज़ की किस्म को अपने यहाँ बोया था। यह एक एक्सपेरिमेंट था। महाराष्ट्र में ईरानी प्याज़ पैदावार भी अच्छी हुई। पर लोगों ने उसके ज़ायक़े को नकार दिया जिसकी वजह से किसानों को उसे बोना बंद करना पड़ा।
प्याज़ का ज़ायक़ा - यही वजह है कि दिल्ली में प्याज़ के बड़े व्यापारियों को चिंता हो रही है कि मंडी में जमा हो रहे विदेशी प्याज़ का क्या होगा? वो भी तब जब गुजरात-राजस्थान का माल चालू है और कुछ दिनों में मध्यप्रदेश का प्याज़ आने वाला है।
आज़ादपुर मंडी में प्याज़ व्यापारी संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र बुद्धिराजा कहते हैं कि 'दिल्ली की मंडी में विदेशी प्याज़ लेने को लोग तैयार नहीं हैं। विदेशी प्याज़ का थोक मूल्य 15 रुपये किलो है। अभी और माल आने की चर्चा है। साथ ही एक महीने बाद बाज़ार में घरेलू प्याज़ की मात्रा बढ़ने लगेगी। फिर तो इसे कोई लेगा ही नहीं।'
वे कहते हैं, "बाहर का माल नहीं रुका तो किसानों को भाव नहीं मिलेगा। बल्कि सरकार को अब निर्यात खोल देना चाहिए, वरना भारतीय किसान मारा जाएगा। वजह ये है कि अब कुछ ही हफ़्तों में बाज़ार में बहुत ज़्यादा प्याज़ होगा। ख़ासकर मार्च से अगस्त के बीच। बांग्लादेश और मलेशिया जैसे देशों में भारतीय प्याज़ की बहुत डिमांड है। किसान वहाँ प्याज़ भेज पाएंगे तो उन्हें कुछ पैसे बचेंगे। और अगर घरेलू सप्लाई बहुत ज़्यादा हो गई तो उन्हें रेट नहीं मिलेगा।"
बुद्धिराजा कहते हैं कि 'इसका असर फिर बाज़ार पर पड़ेगा क्योंकि किसान अगले फसल चक्र में उत्पादन कम करेंगे और शहरों में प्याज़ का रेट दोबारा बढ़ेगा'।
प्याज़ क्यों है इतना ज़रूरी और कितना है इसे पैदा करने का ख़र्च?
प्याज़ - भारतीय थाली का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा है। कई व्यंजन इसके बिना अधूरे हैं। विभिन्न व्यंजनों में आज से 4000 साल पहले से इस्तेमाल हो रही प्याज़ का अपना ही एक दिलचस्प ज़ायक़ा है, एक बड़ी आबादी ऐसा मानती है। इसलिए क़ीमत बहुत बढ़ने के बावजूद लोग इसके इस्तेमाल से ख़ुद को रोक नहीं पाते।
एक अनुमान के अनुसार भारत के लोग रोज़ाना औसतन 50 हज़ार क्विंटल प्याज़ खाते हैं। महाराष्ट्र के किसानों पर किए गए एक स्थानीय सर्वे के अनुसार एक एकड़ ज़मीन में प्याज़ की फ़सल तैयार करने में क़रीब चालीस हज़ार रुपये ख़र्च होते हैं। यह प्याज़ की पौध तैयार करने से लेकर फ़सल उठाये जाने तक का ख़र्च है।
फ़िलहाल महाराष्ट्र में देश के कुल प्याज़ उत्पादन का तक़रीबन 30-40 फ़ीसद प्याज़ होता है और उत्तरी महराष्ट्र में उत्पादन सबसे ज़्यादा है। लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि जब किसान के खेतों में पड़ी प्याज़ को कोई नहीं पूछ रहा होता और उसके दाम न्यूनतम स्तर पर होते हैं, तो इतनी चर्चा नहीं होती।
वर्ष 2018 में नासिक ज़िले के बगलान तहसील में प्याज़ की खेती करने वाले दो किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। इन किसानों की पहचान भादाने गाँव के तात्याभाऊ खैरनार (44) और सारदे गाँव के युवा किसान प्रमोद धोंगडे (33) के तौर पर हुई थी।
उस वक़्त की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्याज़ के दाम मंडी में पचास पैसे से एक रुपये किलो तक गिर गए थे और अपनी समस्या को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक किसान को 750 किलो प्याज़ बेचने के बाद मिले सात सौ रुपये पीएम नरेंद्र मोदी को भेजने पड़े थे।