जुगल पुरोहित, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने व्हाइट हाउस पहुंचने पर पीएम मोदी का स्वागत किया। पहली बार स्टेट विजट पर अमेरिका पहुंचे पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच आज बातचीत होगी।
बीते कुछ सालों में भारत और अमेरिका के संबंधों में कई बड़े और अहम फ़ैसले हुए हैं। ये भी बताया गया कि आगे ऐसे और भी फ़ैसले होंगे। लेकिन आज हम यहां उस एक विषय की बात कर रहे हैं जिसे लेकर दोनों देश बातचीत नहीं करेंगे। कम से कम एक्सपर्ट की यही राय है। ये मुद्दा है एक साथ परमाणु पनडुब्बी बनाने की बात।
आख़िर ऐसा क्यों है? चलिए सबसे पहले जानते हैं कि परमाणु पनडुब्बी होती क्या है?
क्या है परमाणु पनडुब्बी की अहमियत?
परमाणु पनडुब्बी उसे कहते हैं जिसमें परमाणु रिएक्टर होता है और जो ईंधन की तरह काम करता है।
ये पनडुब्बी पानी के नीचे तो रहती ही है लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत रडार से छुपकर रहने की है। ये जितनी देर चाहे रडार की पकड़ से दूर पानी के नीचे रह सकती है। ऐसा करने में कोई दूसरी चीज़ अब तक कामयाब नहीं हो सकी है।
अपने काम और हथियार के नज़रिए से ऐसी पनडुब्बियों का वर्गीकरण भी किया जाता है लेकिन उसके बारे में हम बाद में बात करेंगे। अमेरिकी नौसेना कौन सी पनडुब्बियों का इस्तेमाल करती है, उसकी जानकारी उनकी वेबसाइट पर दी गई है। वहीं भारत में परमाणु पनडुब्बियों के बारे में ज़्यादा जानकारी सार्वजनिक तौर पर मौजूद नहीं है।
परमाणु पनडुब्बियों के मामले में कौन सबसे आगे?
साल 2017 में भारतीय नौसेना प्रमुख ने कहा था कि सरकार ने उनको परमाणु हमले से लैस छह पनडुब्बियों को बनाने की मंज़ूरी दी थी।
2018 में भारत में विकसित की गई परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत ने पानी के अंदर अपना मिशन हथियारों के साथ पूरा किया। कई दशकों से काम करने का बावजूद भारत के पास बहुत कम परमाणु पनडुब्बियां हैं।
इसकी दुनिया के दो शक्तिशाली देशों से तुलना करें तो अमेरिका के पास 90 ऐसी परमाणु हथियार संपन्न पनडुब्बियां हैं जबकि अलग अलग संस्थानों की मानें तो चीन के पास ऐसी पनडुब्बियां 12 हैं।
एडमिरल राजा मेनन (रिटायर्ड) ने बताया कि अमेरिका के साथ परमाणु पनडुब्बी पर सहयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्टेट विजिट के एजेंडे पर सबसे ऊपर होना चाहिए।
लेकिन क्या भारत और अमेरिका ने इस विषय पर पहले कभी बात की है? एडमिरल मेनन का कहना है कि भारत ने पूछा ज़रूर था लेकिन अमेरिका इस पर सहमत नहीं था।
आख़िर अमेरिका ही क्यों?
अमेरिका से ही पूछना इतना ज़रूरी क्यों है? क्यों न भारत रूस या फ़्रांस से पूछे या ख़ुद ही ऐसी पनडुब्बियां बना ले?
एडमिरल मेनन के मुताबिक़ भारत के पास ये सभी विकल्प मौजूद है लेकिन परमाणु पनडुब्बियों की तकनीक के मामले में अमेरिका अन्य किसी भी देश से कहीं आगे है।
भारत के एक अन्य राजनयिक ने अपनी पहचान न बताने की शर्त पर कहा कि परमाणु पनडुब्बियां एक ऐसी चीज़ है जिस पर दोनों देश बात नहीं करते। उनका कहना था कि अमेरिका ये तकनीक अपने सबसे क़रीबी मित्र राष्ट्र के साथ भी आसानी से शेयर नहीं करता है। तो आगे क्या हो सकता है?
भारत के पास क्या रास्ता?
परमाणु पनडुब्बियां भी अलग-अलग कैटेगरी की की होती हैं। ऐसी एक पनडुब्बी वो होती है जो परमाणु हथियार साथ ले जा सकती हैं- जैसे आईएनएस अरिहंत।
दूसरी कैटेगरी वो होती हैं जिन्हें न्यूक्लियर पावर अटैक सबमरीन कहते हैं। ये परमाणु नहीं बल्कि साधारण हथियार से लैस होती हैं और जिससे दूसरे जहाज़ों और पनडुब्बियों को निशाना बनाया जा सकता है। भारत ने अब तक ऐसी पनडुब्बी विकसित नहीं की है।
जानकारों की राय है कि इसी कैटेगरी को लेकर भारत और अमेरिका को बात करनी चाहिए। डॉ. योगेश जोशी परमाणु पनडुब्बियों के विषय पर अच्छी पकड़ रखते हैं।
उनके मुताबिक़ अमेरिका के साथ भारत परमाणु पनडुब्बियों के विषय पर बातचीत की उम्मीद नहीं रख सकता, क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच उस तरह के संबंध नहीं हैं, जैसे कि अमेरिका के ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ हैं।
हाल ही में ऑकस समझौते के तहत अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया को परमाणु शक्ति से लैस पनडुब्बियों को बेचने की बात की है और जब इस तरह की संवेदनशील तकनीक को साझा करने की बात आती है तो ये बात मायने रखती है।
डॉ. योगेश जोशी कहते हैं कि मित्र राष्ट्र न होने के बावजूद अमेरिका ने भारत को अपना सबसे नया मिलिट्री हार्डवेयर बेचा है, जिसमें पनडुब्बी को टारगेट करने वाले हथियार भी हैं।
वे कहते हैं, ''अमेरिका पहले रूस को परमाणु पनडुब्बी भारत को देने से रोकता था लेकिन अब वो ऐसा नहीं करता है। ऐसे में भारत को इसे समझना चाहिए और उन विषयों पर अमेरिका के साथ बात करनी चाहिए और ये तलाश करने कि कोशिश करनी चाहिए कि दोनों देश इस मुद्दे पर साथ मिलकर क्या कर सकते हैं।''
जहां तक परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बी की बात है तो डॉ. जोशी कहते हैं, ''भारत ख़ुद ये तय करने के लिए आज़ाद है कि उसे क्या करना है। उस पर किसी तरह की बंदिशे नहीं हैं और यही तो भारत हमेशा से चाहता रहा है।''