सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से
पश्चिम बंगाल के व्यंजनों में आलू की बड़ी अहम भूमिका रही है। चाहे वो कोलकाता की बिरयानी हो या दूसरे मांसाहारी या शाकाहारी व्यंजन ही क्यों ना हों। पुचका यानी गोलगप्पों से लेकर आलू की पकौड़ियाँ या आलू पोस्तो (आलू खसखस) की सब्ज़ी ही क्यों न हों; पश्चिम बंगाल के व्यंजनों में अगर आलू नहीं है तो फिर व्यंजन कोई मायने नहीं रखता है।
कोलकाता ही ऐसा शहर है जहां बिरयानी में भी आलू डाला जाता है। ऑनलाइन अगर कोई कोलकाता की बिरयानी ऑर्डर करता है तो उसमें एक आलू जरूर होता है। फ़ूड डिलीवरी के पोर्टलों में जब बिरयानी बुक की जाती है तो उसमें एक और आलू का विकल्प आता है।
क्या कोई अंदाज़ा लगा सकता है कि बिरयानी में सिर्फ़ एक अतिरिक्त आलू कितने का होगा? तो जान लीजिये कि अलग-अलग रेस्तरां इसकी अलग-अलग क़ीमत ले रहे हैं। कोई बिरयानी के साथ एक अतिरिक्त आलू के टुकड़े के 30 रुपये तो कोई 50 रुपये तक चार्ज कर रहा है।
इसी आलू ने पूर्वी भारत में सियासत को भी गरमा दिया है क्योंकि पश्चिम बंगाल ने पड़ोसी राज्यों यानी ओडिशा, असम और झारखण्ड तक भेजे जाने वाले आलू के खेपों पर फ़िलहाल प्रतिबन्ध लगा दिया है। ये रोक पिछले 15 दिनों से लगी हुई है।
20 रुपये किलो मिलने वाला आलू 50 के पार
सरकार का कहना है कि ये क़दम इसलिए उठाया गया है क्योंकि पश्चिम बंगाल और ख़ासतौर पर कोलकाता में आलू की क़ीमतें आसमान छूने लगीं थीं।
सरकार का कहना है कि इस मौसम में अमूमन आलू की क़ीमत 20 रुपये प्रति किलो रहते हैं। मगर अचानक इसके भाव में इतना उछाल आया कि ये 50 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गया।
सरकार के फ़ैसले के बाद जो ट्रक आलू की खेप लेकर ओडिशा, असम या झारखण्ड जा रहे थे उन्हें राज्य की सीमाओं पर ही रोक दिया गया
इसको लेकर पश्चिम बोंगो प्रगतिशील आलू व्यवसायी समिति ने अनिश्चितकालीन आन्दोलन शुरू कर दिया था जिसे बाद में राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद वापस ले लिया गया।
पश्चिम बंगाल की सरकार के इस फ़ैसले ने झारखण्ड और ख़ासतौर पर ओडिशा जैसे राजों में आलू की क़ीमतों में बहुत ज़्यादा उछाल दर्ज किया है। इस फ़ैसले का असर असम और छत्तीसगढ़ में भी आलू की क़ीमतों पर पड़ा है।
इसी महीने की 2 तारीख़ को ओडिशा सरकार ने सचिवालय में व्यवसायी संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई और आलू की क़ीमतों को कैसे नियंत्रित किया जाए, इस पर मंथन किया। ओडिशा के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री कृष्ण चन्द्र पात्रा ने बैठक में बताया कि मौजूदा समय में उनके राज्य में आलू 35 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
बैठक के बाद पात्रा ने घोषणा की कि ओडिशा अब कभी बंगाल से आलू नहीं ख़रीदेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि नीति आयोग की बैठक के दौरान ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने 27 जुलाई को बैठक में शामिल होने पहुंचीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी इस बारे में चर्चा की। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी अलग से ममता बनर्जी को चिठ्ठी लिखकर आलू की आपूर्ति बहाल करने का अनुरोध किया। लेकिन मामला जस का तस बना हुआ है।
ओडिशा में आलू पर गरमाई सियासत की आंच विधानसभा के सत्र में भी देखने को मिली जब विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लिया।
विधानसभा में बोलते हुए पात्रा ने सदन को बताया कि उनका प्रदेश आलू के लिए पश्चिम बंगाल पर और प्याज़ के लिए महाराष्ट्र पर पूरी तरह से निर्भर है। बाद में पत्रकारों से बात करते हुए पात्रा ने बताया कि ओडिशा सरकार उत्तर प्रदेश से आलू मंगवाने का प्रयास कर रही है और पश्चिम बंगाल पर निर्भरता कम कर रही है।
आलू के उत्पादन के मामले में बंगाल दूसरे स्थान पर
भारत में आलू के उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है और पूरे देश में आलू के उत्पादन का 30 प्रतिशत यहीं होता है। पश्चिम बगाल 22.97 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है।
पश्चिम बंगाल के कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में सालाना लगभग 110 लाख टन आलू की पैदावार होती है। जिसमें सिर्फ़ पश्चिम बंगाल में ही 5 लाख टन की खपत होती है। उत्तरी दिनाजपुर, कूचबिहार, हूगली, पूर्वी बर्दवान, बाँकुड़ा, बीरभूम और जलपाईगुड़ी ऐसे ज़िले हैं जहां आलू की फ़सल सबसे ज़्यादा होती है।
पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री बैचाराम मानना ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि सरकार ने आलू को राज्य से बाहर भेजने पर रोक सिर्फ़ इसलिए लगाई क्योंकि यहाँ इसके दाम आसमान को छूने लगे थे।
वो कहते हैं, “अब बंगाल में आलू की पैदावार होती है और यहीं पर अगर ये 50 रुपये प्रति किलो तक बिकेगा तो फिर सरकार पर ही सवाल खड़े होने लग रहे थे। इसलिए हमने फ़ैसला किया कि जब तक आलू की क़ीमत स्थानीय खुदरा बाज़ार में नियंत्रित नहीं कर ली जाती तब तक इसे प्रदेश के बाहर बेचने का कोई औचित्य ही नहीं है।”
मानना कहते हैं कि मौजूदा समय में पश्चिम बंगाल में 606 कोल्ड स्टोरेज हैं जहां 40 लाख टन आलू का भण्डार मौजूद है।
थोक व्यवसाइयों को करोड़ों रुपये का नुकसान तय
पश्चिम बोंगो प्रगतिशील आलू व्यवसायी समिति के सचिव लालू मुखर्जी ने एक बयान जारी कर कहा है कि आलू का जितना उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है वो पूरा का पूरा यहीं खप नहीं सकता इसलिए इसे दूसरे राज्यों में भेजा जाता है।
उनका कहना था कि सरकार ने आश्वासन दिया है कि स्थानीय बाज़ार में आलू के दाम नियंत्रित होते ही इसे दूसरे राज्यों में भेजने और बेचने की अनुमति दे दी जाएगी। लेकिन बीबीसी के पूछे जाने के बाद पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री ने ये नहीं बताया कि आलू पर से पाबंदी कब तक हटा ली जायेगी।
ऐसे में व्यवसाइयों का कहना है कि बरसात के मौसम में जो आलू से लदे ट्रक राज्य की सीमाओं पर खड़े हुए हैं उनका माल तो सड़ जाएगा और थोक व्यवसाइयों को करोड़ों रुपये का घटा होना बिलकुल तय है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने ओडिशा के खाद्य और कृषि मंत्री कृष्णा पात्रा का बयान जारी किया है जिसमें वो कहते हैं, "हम पश्चिम बंगाल से आलू ख़रीदना पूरी तरह से बंद कर देना चाहते हैं और धीरे धीरे हम उत्तर प्रदेश से ही ख़रीदने की योजना पर काम कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बंगाल की पुलिस और वहाँ के सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के नेता ओडिशा के थोक व्यवसाइयों को परेशान कर रहे हैं। बंगाल से हम आलू खरीदते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो हमें ब्लैक मेल करते रहेंगे।”