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भारत-कनाडा तनाव पर पंजाब के राजनीतिक दल इतने सतर्क क्यों हैं?

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BBC Hindi

, मंगलवार, 26 सितम्बर 2023 (08:13 IST)
दीपक मंडल, बीबीसी संवाददाता
ट्रैवल और वीज़ा एजेंसियों के आँकड़ों के मुताबिक़ उच्च शिक्षा और रोज़गार हासिल करने के ख्वाहिशमंद पंजाब के हर दस में से सात युवाओं का ‘ड्रीम डेस्टिनेशन’ कनाडा ही है।
 
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की ओर से अपने देश की संसद में खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों के हाथ होने की आशंका ज़ाहिर किए जाने के बाद भारत और कनाडा के रिश्ते पटरी से उतर गए हैं। दोनों देशों के बीच इस तनाव ने पंजाब के राजनीतिक दलों को भी मुश्किल में डाल दिया है।
 
शुरू में इस मुद्दे को लेकर थोड़ा आक्रामक रुख़ दिखाने की कोशिश करने वाली पार्टियां अब इस पर सतर्क प्रतिक्रिया दे रही हैं।
 
पहले कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल की ये कह कर आलोचना की थी कि कनाडाई प्रधानमंत्री के इतने गंभीर बयान के बाद भी शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने चुप्पी साध ली है।
 
कांग्रेस नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा था कि ट्रूडो के बयान के ख़िलाफ़ न बोल कर अकाली दल राज्य में सिख वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहता है।
 
पंजाब बीजेपी की कोर कमिटी के सदस्य राणा गुरमीत सिंह सोढी ने कहा था कि अकालियों को इस मामले में अपना स्टैंड साफ़ करना होगा।
 
बीजेपी का ये बयान अकाली दल के इस बयान के बाद आया था कि ट्रूडो ने निज्जर की हत्या के मामले में भारतीय एजेंसियों की भूमिका को लेकर जो आशंका जताई है, उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सामने सारे तथ्य रखने चाहिए।
 
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर प्रदेश के शायद एकमात्र बड़े नेता हैं, जिन्होंने पूरे विवाद में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को आड़े हाथों लिया। अमरिंदर सिंह ने 19 सितंबर को ट्वीट कर कहा था, ''जस्टिन ट्रूडो का यह कहना है कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, यह पूरी तरह से बेबुनियाद है। ट्रूडो वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।''
 
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, ''2018 में ट्रूडो जब अमृतसर आए थे तो मैंने उनसे कहा था कि कैसे कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं। अब भी कनाडा की सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया है।''
 
इसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 23 सितंबर को अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा और जस्टिन ट्रूडो से कई सवाल पूछे। इस लेख में अमरिंदर सिंह ने कहा है, ''कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां खुलेआम चल रही हैं। भारतीय उच्चायोग और हिन्दू पूजा स्थलों पर हमले को भारत के लोग भूल नहीं पाए हैं। क्या ट्रूडो की सरकार ने इनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की?''
 
शिरोमणि अकाली दल ने क्या कहा?
लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने कहा कि न सिर्फ़ उसने इस मामले में बयान जारी किया है बल्कि कनाडा में रह रहे पंजाब के आठ लाख लोगों का मामला पूरे ज़ोर-शोर से उठाया है।
 
उसने कहा है कि कनाडा से भारत आने वालों के लिए वीज़ा जारी करने पर रोक लगाए जाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले के बाद बादल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की और इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की अपील की।
 
अकाली दल ने कहा कि उसने कनाडाई सरकार से भी इस मामले को सुलझाने की अपील की है ताकि कनाडा में रह रहे लाखों सिखों के हितों पर आँच न आए।
 
हालाँकि इन शुरुआती बयानबाजियों के बाद पंजाब के राजनीतिक दलों ने फ़िलहाल इस मामले में एक दूसरे पर आरोप लगाना बंद कर दिया है।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये अच्छी बात है कि इन राजनीतिक दलों ने फ़िलहाल इस मुद्दे पर एक दूसरे पर आरोप मढ़ने बंद कर दिए हैं। ये ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी कोई भी बयानबाजी आख़िरकार पंजाब के लोगों का नुक़सान करेगी।
 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विनोद शर्मा कहते हैं, ''राजनीतिक दल पंजाब को तू-तू मैं-मैं के ज़रिये ख़राब न करें। ये सीमा से लगा राज्य है। यहाँ के लोगों ने देश के लिए बड़ी कुर्बानियां दी हैं। इक्के-दुक्के सिरफिरे जो बंदूकें लेकर घूम रहे हैं, उनके लिए पूरे सिख समुदाय को बदनाम करना सही नहीं है।’’
 
उन्होंने कहा, ''केंद्र सरकार को इन राजनीतिक दलों को बुला कर बात करनी चाहिए थी। इस मुद्दे पर पूरे भारत को एक आवाज़ में बात करनी चाहिए। अलग-अलग सुर में बात करने का कोई मतलब नहीं है।''
 
'पंजाब के लोगों के हित दांव पर'
विश्लेषकों का मानना कि इस मामले में पंजाब के लोगों के बड़े हित दांव में लगे हैं। कनाडा में सिखों की आबादी वहां की कुल आबादी के दो प्रतिशत है।
 
ये लोग पंजाब में अपने परिवार वालों के लिए काफ़ी पैसे भेजते हैं। पंजाब की अर्थव्यवस्था को इससे बड़ी मदद मिलती है। इस मामले का उलझते जाना पंजाब और भारत के हित में नहीं है।
 
विनोद शर्मा कहते हैं, ''इस मामले में अमेरिका ने कहा है कि 'फाइव आइज़ अलायंस' के तहत साझा की गई सूचना के आधार पर ही ट्रूडो ने निज्जर की हत्या से जुड़ा बयान जारी किया है। हालांकि भारत तीसरे पक्ष के समझौते के ख़िलाफ़ है। लेकिन इस मामले को सुलझ जाना ही दोनों देशों के हित में है।''
 
शर्मा कहते हैं, ''केंद्र और पंजाब सरकार दोनों का दायित्व है कि वो सारी पार्टियों को इकट्ठा कर कहे कि वो बयानबाजी बंद करे। केंद्र के पास इस मामले में ज्यादा जानकारी है। उसे राजनीतिक दलों को समझाना चाहिए कि इस पर बयानबाजी न करें और अपने लोगों को भी इससे रोकना चाहिए। बीजेपी के लोग बयान जारी कर देते हैं और कहते हैं ये राष्ट्रवादी बातें हैं। लेकिन ये सियासी और राजनयिक बातें हैं इस पर बेहद संभल कर बात करना चाहिए।''
 
पिछले दो-तीन दिनों से कनाडा को लेकर पंजाब के राजनीतिक दलों बीच जिस तरह की बयानबाजियां चल रही थीं वो अब थमती दिख रही हैं।
 
पंजाब के लिए ये मुद्दा बेहद संवेदनशील है। कहा जा रहा है कि राजनीतिक दलों ने इसकी गंभीरता समझते हुए बहुत जल्दी खुद को संभाल लिया है।
 
पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर मोहम्मद ख़ालिद कहते हैं, ''पंजाब के राजनीतिक दलों ने इस मामले में ‘वोट बैंक की पॉलिटिक्स’ नहीं करनी चाहिए। इसका सबसे ज़्यादा असर पंजाबियों पर ही पड़ेगा। अगर मामला और बिगड़ने पर कनाडा या भारत सरकार कोई ज्यादा सख्त क़दम उठाती है तो इसका पूरे पंजाब पर असर पड़ेगा।''
 
कनाडा ड्रीम
पंजाब के लोगों का कनाडा जाने का सिलसिला 1904 में शुरू हुआ था। मोहम्मद खालिद कहते हैं कि अब तो कनाडा जाने वालों की बाढ़ आ गई है। इमिग्रेशन, रिफ्यूजी एंड सिटिजनशिप, कनाडा के आंकड़ों के मुताबिक़ कनाडा में भारतीयों को पक्की नागरिकता मिलने की रफ़्तार बेहद तेज़ हो गई है।
 
मोहम्मद ख़ालिद का कहना है कि भारत और कनाडा के बीच रिश्ते ख़राब होने का सबसे ज़्यादा असर यहाँ पढ़ाई के लिए कनाडा जाने वाले छात्रों पर पड़ेगा।
 
वो कहते हैं,''दोनों देशों के बीच ताज़ा विवाद का असर दिखने भी लगा है। यहां पढ़ाई के लिए ज़रूरी इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम (आईईएलटीसी) जैसी परीक्षा की तैयारी करवाने वाले पंजाब के कोचिंग संस्थानों में स्टूडेंट्स आने कम हो गए हैं। उन्हें लगता है कि हमारे पैसे कहीं फंस न जाएं। कनाडा में बैचलर डिग्री के लिए 50 से 60 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। सबके पास तो पैसे नहीं हैं। लिहाजा लोग मकान, ज़मीन, गहने गिरवी रख कर वहां बच्चों को पढ़ाई के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं।''
 
मोहम्मद खालिद कहते हैं, ‘’हालांकि ये भी सच है कि 90 फ़ीसदी बच्चे इस उद्देश्य से नहीं जाते कि पूरी पढ़ाई कर डिग्री लें। वो वहां जाते ही प्वाइंट इकट्ठा करने लगते हैं ताकि परमानेंट रेजिडेंटशिप मिल जाए। किसी भी क़ीमत पर वो वापस नहीं आना चाहते हैं। वो वहीं बस जाना चाहते हैं। बहुत से लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का भी रास्ता वहाँ से तलाशते हैं।’’
 
'खालिस्तानियों के लिए कोई समर्थन नहीं'
जानकारों का कहना है कि पंजाब में ये वो दौर है, जहां खालिस्तानी समर्थक तत्वों के लिए कोई समर्थन नहीं दिखता।
 
विनोद शर्मा कहते हैं, ''ये इक्का-दुक्का बंदूक उठाए हुए लोग हैं, जो विदेश में खालिस्तान का नारा बुलंद करते हैं। इनके आधार पर पूरे पंजाबी समुदाय को बदनाम करना ठीक नहीं है। लेकिन हमारी मुख्यधारा के मीडिया मे खालिस्तान का शोर मचा हुआ है। मेरे ख्याल से इस पर सरकार को तुरंत रोक लगानी चाहिए। देश में किसी भी क़ीमत पर हिंदू और सिख ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए।''
 
मोहम्मद खालिद भी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि पंजाब में कोई भी खालिस्तान की बात नहीं करता। इसकी बात सिर्फ़ विदेशों में सुनने को मिलती है।
 
प्यू रिसर्च के 2021 के एक सर्वे के मुताबिक़ देश के 95 फ़ीसदी सिख ख़ुद को को एक भारतीय बता कर गौरवान्वित होते हैं। देश के 77 फ़ीसदी सिख पंजाब में रहते हैं। 93 फीसदी सिख पंजाब में रहने में काफ़ी गर्व महसूस करते हैं।
 
95 फ़ीसदी ख़ुद को भारतीय कहलाने में गर्व करते हैं। दस में से आठ सिख सांप्रदायिक हिंसा को देश की बड़ी समस्या के तौर पर देखते हैं।
 

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