Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती से तेज़ी की ओर बढ़ रही है?

हमें फॉलो करें क्या भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती से तेज़ी की ओर बढ़ रही है?

BBC Hindi

, शनिवार, 23 जनवरी 2021 (07:18 IST)
ज़ुबैर अहमद, बीबीसी संवाददाता
क्या भारतीय अर्थव्यवस्था अब रिकवरी के रास्ते पर चल पड़ी है? सीधे तौर पर आसान जवाब है, हाँ, क्योंकि महामारी की भयंकर मार से नकारात्मक विकास दर के पाताल से गुज़रकर देश की अर्थव्यवस्था पिछली तिमाही में सकारात्मक विकास दर तक पहुँची और फिलहाल आख़िरी तिमाही में सकारात्मक विकास जारी है।
 
दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में -23.9 प्रतिशत की दर की गिरावट दर्ज की गई थी।
 
अब अनुमान है कि इस साल जनवरी-मार्च की तिमाही में 0.7 प्रतिशत के हिसाब से सकारात्मक विकास दर्ज हो सकती है जबकि पिछली तिमाही में विकास दर 0.1 प्रतिशत थी।
 
किन क्षेत्रों में विकास के आसार?
अप्रैल 2020 के महीने से अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन का बुरा असर काफ़ी गहराई से महसूस होने लगा। लेकिन सितम्बर माह से इसमें कुछ बेहतरी शुरू हो गयी। ज़रा वित्त मंत्रालय के इन आंकड़ों पर ग़ौर करें:
 
ऊपर के आंकड़े अर्थव्यवस्था की रिकवरी की तरफ़ इशारा करते हैं और सरकार इन्हीं आंकड़ों को साझा करके कह रही है कि अर्थव्यवस्था की रिकवरी हुई और अब वह आगे बढ़ रही है। लेकिन शायद ये केवल अर्धसत्य है।
 
अगर 2020-21 के पूरे वित्तीय साल की विकास दर को देखें तो क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के अनुसार ये -11.5% होगी। एजेंसी ने 2021-22 वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक 10.6% का अनुमान लगाया है।
 
लॉकडाउन के बाद वाले दो-तीन महीनों में 12 करोड़ से अधिक लोग बेरोज़गार हो गए थे। बेरोज़गारी अब भी अधिक नहीं हुई है जो सरकार की बड़ी नाकामियों में से एक बतायी जाती है।
 
भारतीय अर्थव्यवस्था पर कड़ी निगाह रखने वाली प्रसिद्ध संस्था 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी' ने बीबीसी के साथ अपनी एक ताज़ा रिपोर्ट साझा की है जिसके अनुसार इस वित्तीय वर्ष में विकास नकारात्मक रहेगा।
 
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के एक अनुमान के मुताबिक़, भारतीय अर्थव्यवस्था को इस साल आज़ादी के बाद के सबसे ख़राब प्रदर्शन का सामना करना पड़ सकता है।
 
इस बार ये 7.7 प्रतिशत के हिसाब से सिकुड़ेगी। ये रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के अनुमान से अधिक है जिसने 7.5 प्रतिशत के हिसाब से सिकुड़ने का अनुमान लगाया है।
 
इसने निर्यात में 8.3 प्रतिशत की गिरावट और आयात में 20.5 प्रतिशत की कमी का अनुमान लगाया है। इसके अलावा डिमांड में बहुत अधिक इज़ाफ़ा नहीं देखने को मिला है। बैंकों से क़र्ज़ों की मांग में काफ़ी सुस्ती देखी गयी है क्योंकि इस वित्तीय वर्ष में अधिकतर कॉर्पोरेट्स ने अपनी योजनाओं को रोक दिया है।
 
लेकिन नवंबर 2020 से क्रेडिट डिमांड में तेज़ी आयी है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, 15 जनवरी तक बैंकों ने क्रेडिट डिमांड में 6.1 की बढ़ोतरी बतायी है।
 
webdunia
सरकार के V शेप रिकवरी के दावे का सच
वित्त मंत्रालय से लेकर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया तक सभी सरकारी संस्थाओं ने ये दावा किया है कि रिकवरी V शेप में हो रही है। इसका मतलब ये हुआ कि लॉकडाउन के दौरान सभी क्षेत्र में विकास की दर नीचे गई और रिकवरी के दौरान उछाल सभी क्षेत्र में हो रहा है।
 
लेकिन कुछ विशेषज्ञ ये तर्क देते हैं कि रिकवरी K शेप में हो रही है, जिसका मतलब ये हुआ कि कुछ क्षेत्र में विकास हो रहा है लेकिन कुछ दूसरे क्षेत्रों में या तो विकास की रफ़्तार बहुत सुस्त है या विकास नहीं हो रहा है। ये विकास की एक असमान रेखा की तरह है।
 
मुंबई में वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व इन्वेस्टमेंट बैंकर प्रणव सोलंकी के विचार में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के लिए समान तरीक़े से विकास नहीं हो रहा है।
 
वे कहते हैं, "हमें मालूम है कि जीडीपी गणना में असंगठित क्षेत्र पूरी तरह से शामिल नहीं किया जाता है। कुल मिलाकर, जबकि संगठित क्षेत्र में अपेक्षाकृत तेज़ी से गिरावट आई है, असंगठित क्षेत्र महामारी से बहुत अधिक प्रभावित हुआ है। रिकवरी में भी यही रुझान है।"
 
वे कहते हैं कि संगठित क्षेत्र में शुरू हुआ विकास भी समान नहीं है।
 
"आप देखें कि फ़ार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी, ई-रीटेल और सॉफ्टवेयर सेवाओं जैसे क्षेत्रों में महामारी के दौरान भी विकास हो रहा था और अब भी हो रहा है लेकिन पर्यटन, परिवहन, रेस्टॉरेंट और होटल और मनोरंजन जैसे क्षेत्र अब भी बुरे दौर से गुज़र रहे हैं।"
 
महामारी की मार
भारत में कोरोना वायरस का पहला केस 30 जनवरी को केरल में रिपोर्ट किया गया था जिसके अब एक साल पूरे होने वाले हैं। इसके बाद 22 मार्च को दिनभर के जनता कर्फ्यू के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च की शाम को उसी रात 12 बजे रात से 21 दिनों के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की।
 
रेल, रोड और हवाई सफ़र ठप, मॉल और बाज़ार बंद, मशीने बंद, पैदावार पर पूर्ण रूप से रोक।
 
लगभग 135 करोड़ की आबादी वाले देश की विशाल अर्थव्यवस्था एकदम से थम गयी। करोड़ों रोज़ाना दिहाड़ी कमाने वाले मज़दूर सैकड़ों मील दूर अपने घरों के लिए पैदल चल पड़े।
 
दूसरी तरफ़ कोरोना का क़हर बढ़ता रहा। धीरे-धीरे भारत और दुनियाभर में ये एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया मगर इसके साथ इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया जिसकी लपेट में भारत भी आया।
 
मई के आख़िर से धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी जिसका सिलसिला आज भी जारी है। अभी भी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से नहीं खुली है, उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ान अब भी (फिलहाल 31 जनवरी तक) बंद हैं और सिनेमा घरों में 50 प्रतिशत क्षमता से अधिक दर्शक के प्रवेश पर अभी भी कई राज्यों में प्रतिबन्ध जारी है।
 
प्रणव सोलंकी कहते हैं कि 1 फ़रवरी को पेश होने वाला बजट इस मायने में बहुत अहम होगा कि रिकवरी को तेज़ करने और इसे आगे बढ़ाने में सरकार क्या क़दम उठाती है।
 
वे कहते हैं, "अर्थव्यवस्था को महामारी से जितना बड़ा नुक़सान हुआ है वो एक साल के बजट से ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन रिकवरी सरकार के नेतृत्व में हो ये ज़रूरी है जिसके लिए ये देखना होगा कि सरकार कितना ख़र्च करती है और डिमांड पैदा करने के लिए लोगों को कितनी राहत देती है।"

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

लाल किले के इतिहास की 15 खास बातें