पूर्वी यूक्रेन में बढ़ते संघर्ष के बीच ब्रिटेन और अमेरिका ने संदेह जताया है कि रूस "फॉल्स फ्लैग" हमले की योजना बना रहा है ताकि वो आक्रमण कर करे और इसके लिए दूसरों पर दोष मढ़ सके।
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार अमेरिका ने चेतावनी दी है कि रूस जानबूझकर "फॉल्स फ्लैग अभियान" को अंजाम दे सकता है जिससे यूरोप में विश्व युद्ध द्वितीय के बाद के सबसे बड़े सैन्य संघर्ष के शुरू होने का ख़तरा है।
फॉल्स फ्लैग किसी ऐसी राजनीतिक या सैन्य कार्रवाई को कहा जाता है जो अपने प्रतिद्वंद्वियों को इसके लिए दोषी ठहराए जाने की मंशा से की जाती है।
नेटो के प्रमुख जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा है कि सैन्य युद्धआभ्यास के नाम पर रूस जिस तरह बड़ी संख्या में सौनिकों और सैन्य साजोसामान यूक्रेन से सटी सीमा पर जमा कर रहा है, वो युद्धाभ्यास के हिसाब से कहीं अधिक है।
दूसरी ओर रूस समर्थित अलगाववादी पहले ही यूक्रेन की सेना पर संदिग्ध हमले करने का आरोप लगा चुके हैं और अब ये कब्ज़े वाले इलाके से लोगों को निकलने की अपील कर रहे हैं।
फॉल्स फ्लैग हमला होता क्या है?
फॉल्स फ्लैग ऐसी राजनीतिक या सैन्य कार्रवाई होती है जिसके तहत जानबूझकर अप्रत्यक्ष रूप से कदम उठाए जाते हैं, ताकि हमला करने की नौबत आए तो इसके लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों को दोषी ठहराया जा सके।
कई देशों ने इस तरह की रणनीति अपनाई है। इसके तहत ये देश खुद पर हमला होने का नाटक करते हैं या खुद पर ही वास्तविक हमला करवाते हैं और फिर, आरोप लगाते हैं कि दुश्मन ने ऐसा किया है। इस बहाने से देशों को युद्ध छेड़ने का मौक़ा मिल जाता है।
इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार 16वीं शताब्दी में किया गया था। उस समय इसके ज़रिए ये बताया गया कि कैसे समुद्री लुटेरों ने एक मित्र देश का झंडा फ़हराया ताकि दूसरे मर्चेंट जहाज़ उनके पास आ सकें। फॉल्स फ्लैग हमलों का एक लंबा और काला इतिहास रहा है।
पोलैंड पर जर्मनी का हमला, 1939
जर्मनी के पोलैंड पर हमला करने से एक रात पहले, पोलिश होने का नाटक करते हुए सात जर्मन एएस सैनिकों ने पोलैंड के साथ सटती सीमा के पास जर्मन क्षेत्र में ग्लीविट्ज़ रेडियो टॉवर पर धावा बोल दिया। इन सैनिकों ने एक छोटा-सा संदेश प्रसारित किया कि ये स्टेशन अब पोलैंड के हाथों में है।
रेडियो स्टेशन में सैनिकों ने एक नागरिक के शव को पोलैंड के सैनिक की वर्दी पहनाकर वहीं रख दिया ताकि ऐसा लगे कि वो छापेमारी के दौरान मारा गया था।
एडॉल्फ़ हिटलर ने अगले दिन पोलैंड पर हमले को सही ठहराने के लिए ग्लीविट्ज़ हमले और इसी तरह की अन्य घटनाओं का हवाला देते हुए एक भाषण दिया।
रूस-फ़िनलैंड के बीच 1939 के युद्ध की शुरुआत
उसी साल रूस के गांव मैनिला में गोलाबारी शुरू हो गई। ये गांव फिनलैंड की सीमा से सटा हुआ था। सोवियत संघ ने इस हमले का इस्तेमाल फ़िनलैंड के साथ अपने शांति समझौते को तोड़ने के लिए किया और वहीं से दोनों देशों के बीच शीतकालीन युद्ध की शुरुआत हुई।
इतिहासकार अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गांव में गोलाबारी फ़िनलैंड की सेना ने नहीं बल्कि सोवियत के एनकेवीडी राज्य सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से की गई थी।
सोवियत संघ के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने सन् 1994 में स्वीकार किया था कि शीतकालीन युद्ध सोवियत आक्रमण का युद्ध था।
टोंकिन खाड़ी युद्ध, 1964
दो अगस्त, 1964 को वियतनामी तट से दूर, टोंकिन की खाड़ी में एक अमेरिकी विध्वंसक और उत्तरी वियतनामी टॉरपीडो जहाज़ों के बीच समुद्री युद्ध हुआ।
इस युद्ध में दोनों पक्षों के जहाज़ों को नुकसान पहुंचा और उत्तरी वियतनाम के चार लोग मारे गए। इसके अलावा छह अन्य हताहत हुए।
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने दावा किया कि दो दिन बाद ऐसी ही एक और जंग हुई। हालांकि, अब ये माना जाता है कि उत्तरी वियतनाम की ओर से दूसरा हमला कभी नहीं किया गया था।
अमेरिकी नौसेना के विध्वंसक जहाज़ पर सवार कप्तान ने शुरू में बताया कि उन्हें दुश्मन की टॉरपीडो नौकाओं ने घेर लिया और उनपर गोलीबारी की गई। लेकिन बाद में उन्होंने बयान बदला और कहा कि ख़राब मौसम और साफ-साफ न देख पाने की वजह से वो पक्का नहीं कह सकते कि हमला करने वाले कौन थे।
सालों तक गोपनीय रखे गए कुछ दस्तावेज़ साल 2005 में सार्वजनिक किए गए। इन दस्तावेज़ों से पता चला कि उत्तरी वियतनाम की नौसेना अमेरिकी जहाज़ पर हमला नहीं कर रही थी, बल्कि वो 2 अगस्त को क्षतिग्रस्त हुई दो नौकाओं को बचाने की कोशिश कर रही थी।
हालांकि, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी। जॉनसन और उनके प्रशासन ने घटना से जुड़े शुरुआती बयानों को विश्वसनीय माना और संसद में इस घटना को अमेरिकी सेना पर उत्तरी वियतनाम की ओर से किए दो हमलों के तौर पर पेश किया।
इसके बाद टोंकिन की खाड़ी से जुड़ा प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव के ज़रिए राष्ट्रपति जॉनसन को उत्तरी वियतनाम पर बमबारी और छापे मारने के आदेश देने की छूट मिल गई और वियतनाम युद्ध में इसने अमेरिकी सैन्य भागीदारी को भी काफी बढ़ा दिया।
क्राइमिया के 'लिटिल ग्रीन मैन', 2014
क्राइमिया पर रूसी कब्ज़े के शुरुआती दिनों में, बिलकुल रूसी सैनिकों की तरह कपड़े पहने लोग सड़कों पर दिखने लगे। हालांकि, उनके कपड़ों या वर्दी पर कोई रूसी प्रतीक चिह्न नहीं था।
क्रेमलिन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये लोग स्थानीय आत्मरक्षा समूहों के सदस्य थे, जो चाहते थे कि इस क्षेत्र को यूक्रेन के नियंत्रण से वापस लेकर रूस को दे दिया जाए। क्रेमलिन ने ये भी दावा किया कि इन लोगों ने अपने कपड़े और उपकरण दुकानों से ख़रीदे हैं।
इन लोगों की वर्दी के रंग और अपुष्ट मूल को ध्यान में रखते हुए रूसी पत्रकारों ने इन लोगों को "पोलाइट मैन" (विनम्र पुरुष) कहा तो वहीं क्राइमिया के स्थानीय लोगों ने इन्हें "लिटिल ग्रीन मैन" कहा।