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आख़िर सेक्स इतना ज़रूरी क्यों है?

हमें फॉलो करें आख़िर सेक्स इतना ज़रूरी क्यों है?
, सोमवार, 31 जुलाई 2017 (16:12 IST)
- विविएन क्यूमिंग (बीबीसी अर्थ)
क़ुदरत का बुनियादी नियम है कि हर जीव अपनी नस्ल आगे बढ़ाता है। बहुत से जीव इसके लिए सेक्स करते हैं। यानी नर और मादा जिस्मानी ताल्लुक़ बनाते हैं। अब सवाल ये है कि आख़िर तमाम जीव सेक्स क्यों करते हैं? यौन-संबंध आख़िर इतने ज़रूरी क्यों हैं?
 
बरसों से वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। इंसान के विकास की थ्योरी देने वाले महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन भी सेक्स की ज़रूरत को लेकर दुविधा में थे। इसकी वजह क़ुदरत में मिलने वाले कुछ जीवों की मिसालें हैं।
 
फूल की कोशिश
दुनिया में बहुत-सी प्रजातियां तो ऐसी हैं जिनके ज़हन में हर वक़्त यौन संबंध बनाने का भूत सवार रहता है। ऑस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली बॉवरबर्ड के नर परिंदे मादा पार्टनर को रिझाने के लिए बड़े-बड़े घोंसले बनाते हैं। इसी तरह मादा जुगनू, नर को अपने पास बुलाने के लिए अपनी दुम को चमकाती है।
 
फूलों में जो ख़ुशबू होती है वो कीड़ों को रिझाने के लिए होती है। फूल की कोशिश होती है कि ये कीड़े पास आकर उनके पराग तोड़ें और दूसरे फूलों पर रख दें ताकि वहां उन्हें ज़रख़ेज़ होने का मौक़ा मिले। क़ुदरत ने जब तक जीवों में यौन-संबंध बनाने की सलाहियत पैदा नहीं की थी तब तक इसके बिना ही नई नस्ल पनपती थी।
 
नर-मादा संबंध
एक ही कोशिका या सेल दो हिस्सों में बंटकर दो अलग-अलग जीवों के तौर पर पनपनी थी। बैक्टीरिया तो अपनी तादाद में इसी तरह इज़ाफ़ा करते हैं। बहुत से पौधे और दूसरे जीव भी इसी अमल के तहत अपनी नस्ल आगे बढ़ाते हैं। यौन संबंधों के मुक़ाबले ये तरीक़ा आसान और कम पेचीदा है।
 
यौन संबंध बनाने के लिए साथी तलाशने की भी ज़रूरत नहीं है। जबकि यौन-संबंधों से प्रजनन में नर-मादा दोनों के अंडे उपजाऊ होना ज़रूरी है। अगर किसी एक में भी कमी है तो प्रजनन हो ही नहीं सकता। जब यौन-संबंधों के बिना भी औलाद मुमकिन है तो सभी जीवों में सेक्स इतना ज़रूरी क्यों है।
 
प्रजनन की क्षमता
1886 में जर्मनी के जीव वैज्ञानित ऑगस्ट वाइज़मन ने कहा था कि यौन-संबंध एक ही प्रजाति के दो अलग-अलग जीवों को प्रजनन के लिए अपनी क्षमताओं को साझा करने का मौक़ा देता है। यौन-संबंधों से पैदा हुए वंशजों में अपने मां-बाप के बहुत से अच्छे जीन आते हैं जो बदलते माहौल से मुक़ाबला करने के लायक़ होते हैं।
 
जबकि बिना यौन संबंधों के पैदा होने वाले जानदारों में ये मुमकिन नहीं होता। यौन-संबंधों से तादाद भी जल्द बढ़ाई जा सकती है। बहुत-सी स्टडी बताती हैं कि अगर पर्यावरण में ज़बरदस्त बदलाव आ जाए या कोई धूमकेतु धरती से टकरा जाए तो भी प्रजनन के अमल में बदलाव आ सकते हैं।
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सेक्स के बगैर...
हो सकता है अभी तक जो जीव बिना यौन संबंधों के अपनी नस्ल आगे बढ़ा रहे हैं वो भी सेक्स करने लगें। दुनिया में जीवों का वजूद यौन-संबंधों से ही हुआ है। लकिन मौजूदा हालात में भी हम बहुत से ऐसे जीव देखते हैं, जो सेक्स के साथ और उनके बग़ैर भी प्रजनन कर लेते हैं। ख़मीर, घोंघे, स्टारफ़िश और एफ़िड्स इसकी मिसाल हैं।
 
लेकिन प्रजनन के लिए जो तरीक़ा ये अपनाते हैं वो बहुत हद तक इनके आसपास के माहौल पर निर्भर करता है। दुनिया जिस वक़्त वजूद में आ रही थी यहां का माहौल तेज़ी से बदल रहा था। जीने के लिए यहां माक़ूल माहौल नहीं था। ऐसे माहौल में प्रजातियों ने अपनी नस्ल आगे बढ़ाने का आसान तरीक़ा चुना।
 
जीवाश्म का मिलना
बाद में जैसे-जैसे जीवों का विकास हुआ, वैसे-वैसे उनके प्रजनन का तरीक़ा भी बदला। तो, आख़िर धरती पर जीवों ने सेक्स करना कब शुरू किया? कौन से जीव थे, जिनके बीच जिस्मानी ताल्लुक़ बनने शुरू हुए? फ़िलहाल वैज्ञानिकों के पास इस सवाल का जवाब नहीं।
 
इसके बारे में अटकलें ही लगाई जाती रही हैं कि धरती पर जीवों ने सेक्स करना कब से शुरू किया। एक रिसर्च के मुताबिक़ चट्टानों में पाए जाने वाले जीवाश्मों से यौन संबंधों के शुरू होने की जानकारी मिल सकती है। लेकिन जीवाश्म का मिलना तो मुश्किल है ही, साथ ही इनकी तादाद भी कम है।
 
साथी की तलाश
अमरीका की मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर क्रिस अडामी ने कहा है कि सेक्स असल में क़ुदरती चुनौतियों से निपटने का सबक़ है। सेक्स के ज़रिए ये सबक़, पिछली पीढ़ी से अगली पीढ़ी के पास जाते हैं। कैसे चुनौतियों से बचना है और किन ख़ूबियों की मदद से अपनी नस्ल बढ़ाई जा सकती है, ये सब सबक़ जीवों के डीएनए में होते हैं।
 
ये जानकारी सेक्स के ज़रिए आने वाली पीढ़ी तक पहुंचती है। ये जानकारियां जीन में जमा होती है और यौन-संबंधों के ज़रिए ये काम और आसान हो जाता है। सेक्स के लिए ऐसे साथी की तलाश की जाती है जिसके साथ अच्छे वंशज पैदा किए जा सकते हैं।
 
नर की ज़रूरत
ये चुनाव ना सिर्फ़ यौन संबंध बनाने के लिए तमाम जीवों की समझ को बताता है बल्कि ये भी दिखाता है कि हरेक जीव अपनी जानकारियां दूसरी पीढ़ी को भली-भांति पहुंचाना चाहता है। इस तर्क के साथ एक और पहेली सुलझाने में मदद मिलती है। अगर मादा से ही वंशज पैदा होता है तो फिर नर की ज़रूरत क्यों होती है?

चार्ल्स डार्विन के मुताबिक़ मादा जिस नर के साथ संबंध बनाती है वो उसकी ख़ूबियों को बाक़ी नरों पर तरज़ीह देती है। यानी जिन दो जीवों के बीच सेक्स होता है, उनमें मादा, नर को उसकी ख़ूबियों की वजह से चुनती है। ये चुनाव आबादी में आनुवांशिक संतुलन बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।
 
डार्विन की किताब
इसी वजह से अच्छे गुण वाले जीन अगली पीढ़ी में जाते हैं। सेक्स क्यों ज़रूरी है, ये तो हमने जान लिया। लेकिन इसकी शुरुआत कहां से हुई ये अब भी पहेली ही बना हुआ है। कुछ जानकार कहते हैं इंसान का जन्म वानर से हुआ है। वानर का जन्म आदिम जीवों से हुआ था। इस बात का ज़िक्र डार्विन ने 1871 में अपनी किताब में भी किया था।
 
लेकिन धरती पर वो कौन-सा जीव था जिसने सबसे पहले सेक्स किया था? वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोब्रैकियस डिकी नाम की आदिम मछली ने सबसे पहले सेक्स किया था। माइक्रोब्रैकियस का मतलब होता है छोटी बाहें। असल में इस मछली का जीवाश्म स्कॉटलैंड में मिला था।
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रिसर्च का रास्ता
38।5 करोड़ साल पहले की ये मछली पुरानी चट्टानों के बीच मिली थी। ये एक मादा मछली थी और इसके छोटे-छोटे हाथ थे। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन हाथों का इस्तेमाल ये मछली, नर मछली के साथ यौन-संबंध बनाने में करती थी। अब तक मिले जीवाश्मों में सिर्फ़ यही मछली हड्डी वाली जीव थी।
 
ये इंसान की तरह भ्रूण को अपने अंदर रखती थी। हालांकि कई वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं। क्योंकि आज मछली अंडों के ज़रिए बच्चे पैदा करती है। लिहाज़ा इस बात को आसानी से नहीं माना जा सकता है। हां, इतना ज़रूर है कि मछली के इस जीवाश्म ने उसी तरह की प्रजातियों में प्रजनन की प्रक्रिया पर रिसर्च का रास्ता आसान कर दिया।
 
शैवाल की किस्में
जीवाश्म रिकॉर्ड से ये भी पता चलता है सबसे पहले यौन-संबंध एक प्रकार की समंदरी घास में बने थे जिसे एल्गी या शैवाल कहा जा सकता है। इसके सबूत आर्कटिक कनाडा की चट्टानों पर मिलते हैं। ये चट्टान अब से करीब 1।2 अरब साल पहले पानी के अंदर होती थी। वैज्ञानिक बताते हैं कि इस घास से निकलने वाले सेल्स दो क़िस्म के होते थे।
 
एक नर और दूसरे मादा। यानी ये पहली जीव थी जिसमें नर और मादा का फ़र्क़ आया था। आज हम जानते हैं कि शैवाल की बहुत सी क़िस्में मौजूद हैं। ये आज भी वैसी ही हैं जैसी अब से 1।2 अरब साल पहले थी। इन्हें हम जीवित जीवाश्म भी कह सकते हैं।
 
आगे की कहानी...
चट्टानों पर मिलने वाले ये जीवाश्म ज़िंदगी के वजूद में आने की कहानी को आग बढ़ाने में काफ़ी मददगार हैं। इन चट्टानों का इतिहास समझने के बाद वैज्ञानिकों में ये समझ पैदा हुई कि कैसे बहुकोशिकीय जानदारों का वजूद अमल में आया।
 
लगातार रिसर्च करने के बावजूद यौन संबंधों की शुरुआत, कब कहां और कैसे हुई आज भी पहेली ही बना हुआ है। तरह तरह के क़यास लगाए जाते हैं लेकिन यक़ीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

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