Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पाकिस्तान: 'उर्स के जुलूस का नेतृत्व हिंदू भी करते हैं'

Advertiesment
हमें फॉलो करें Shahbaz Qalandar
, गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017 (11:46 IST)
- उत्तरा शाहनी (इतिहासकार)
 
भारत विभाजन से बेघर होने वाले सिंधियों के दिल और दिमाग में सिंध हमेशा मौजूद और गैर-मौजूद रहता है। भारत में सिंध के नाम से कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं है लेकिन सिंध भारत के पश्चिमी सीमा की ओर से भारत में दाखिल होता है। सरहद से लगे होने के बावजूद इंडियन पासपोर्ट वालों के लिए सिंध में दाखिल होना लगभग नामुमकिन है। मुंबई से लंदन जाना कराची पहुंचने से अधिक आसान है। हालांकि इन दो शहरों के बीच सदियों से व्यापार होता रहा है।
इस क्षेत्र में कभी स्थिरता नहीं रही है। इसकी मिट्टी की तरह, जो सिंध से उठती है और जाहिरा तौर पर आजाद इलाकों से गुजरकर दूसरी तरफ जा मिलती है। हमारी ख्वाहिशें और तमन्नाएं भी बनती बिगड़ती, दबती-उठती, इधर से उधर आती जाती रहती हैं।
 
इसलिए जब मैं एक लम्बे सफर के बाद खबर पढ़ती हूँ कि सहून शरीफ को बम का निशाना बनाया गया है, जिसमें बच्चों सहित दूसरे लोग भी मारे गए हैं तो मुझे व्यक्तिगत दुख का एहसास होता है। मेरे पिता सिंध के लरकाना में पैदा हुए थे और उनका बचपन बम्बई में बीता था।
 
मस्त कलंदर : उन्होंने मेरे वॉयस मेल पर एक पैगाम भेजा था और वह इस बारे में मुझसे बात करना चाहते थे। मैं कभी सहून नहीं गई हूं और उन्हें भी याद नहीं था कि क्या वह कभी बचपन में वहां गए हों। इसके बावजूद वो कहते हैं कि जब भी वह यह नाम सुनते हैं, उन्हें लगता है कि वे वहाँ जाते रहे हैं।
 
सहून, लाल शाहबाज कलंदर और झूले लाल कई सिंधियों के सुने सुनाए नाम हैं। हालांकि खुशी के मौके पर ये नाम दमादम मस्त कलंदर की शक्ल में दोहराए जाते हैं, जिसे आबिदा परवीन की आवाज़ ने एक नई जान बख्श दी है।
 
दरअसल ये सूफियाने नगमे इतना मकबूल हैं कि इसे पूरे दक्षिण एशिया में सिंधी और गैर-सिंधी शौक से सुनते हैं। कई लोगों को ये तक पता नहीं यह सिंधी गीत है, और शायद अब यह सिंधी रहा भी नहीं और सहून शरीफ की तरह अब ये हर किसी का है।
 
सूफीवाद : लाल शाहबाज कलंदर, झूले लाल और सहून के इतिहास और परंपराएं इस कदर पेचीदे और गहरे हैं कि उनकी तमाम परतें खोलना, उसे हदों में बांधना और उसे वैज्ञानिक तरीके से 'जानना' नामुमकिन है।
 
सिंध के इतिहास के जानकार माइकल बेयोन कहते हैं, "सहून में सूफीवाद और शिव पंथ की धाराएं मिल जाती हैं। लाल शाहबाज के बारे में बहुत सी कहानियाँ हैं कि वह फारसी नस्ल के सूफी थे, जिनका नाम उस्मान मरवांदी था। दूसरे कहते हैं कि वो शिव पंथी साधु भर्तृहरि थे।
 
लाल शाहबाज का शाब्दिक अर्थ लाल बाज़ है। ये बाज़ आजाद रूह का प्रतीक है। इसके अलावा माताएं बच्चों को भी लाल के नाम से पुकारती हैं। उनके मजार पर हर शाम ढोलक की थाप पर सूफियाने गीत गाए जाते हैं जो पशुपतियों और रूमी के दरवेशों की याद दिलाता है।
 
सिंधियों की श्रद्धा : लाल शाहबाज को अक्सर झूले लाल भी कहा जाता है। ये नाम उनके मज़ार पर भी लिखा है। झूले लाल एक देवता का नाम भी है जिन्हें अक्सर एक मछली के ऊपर सवार दिखाया जाता है। बहुत से सिंधी उन के लिए श्रद्धा रखते हैं। और लोग उन्हें वरुण, विष्णु, कृष्ण और नाथ जोगियों के साथ जुड़ते हैं। लेकिन अक्सर उन्हें केवल लाल या सुर्ख महबूब के नाम से पुकारा जाता है।
 
लाल मेरी पत रखियो बना झूले लालन
सिंधड़ी दा, सहून दा, सख़ी शाहबाज कलंदर
हिंद सिंध परा तेरी नौबत बाजे...
 
ये नगमा हर दिन सभी हदों को तोड़ देता है। शिया, सुन्नी, हिंदू, हर कोई उनके मज़ार की ज़ियारत करता है। इस मज़ार का प्रधान सेवक एक हिंदू है। हर दिन शाहबाज कलंदर की मजार पर मिट्टी के दिए जलाए जाते हैं। लाल शाहबाज के उर्स पर तीन जुलूस निकाले जाते हैं।
 
सूफियाना गीत : एक के आगे सैयद घराने से ताल्लुक रखने वाला कोई व्यक्ति होता है, अन्य दो जुलूसों की अगुआई हिंदू करते हैं। सूरज ढलने के बाद मर्द-औरत मजार के आहते में सूफियाना गीत गाते हैं। बम धमाके के एक दिन बाद सूफियाना गीतों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया।
 
ये सूफियाना गीत कुछ लोगों के लिए असहनीय हो गए थे। ट्विटर पर सूफियाना गीतों के वीडियो शेयर हो रहे थे। और इस पर तरह-तरह के कॉमेंट्स आ रहे थे। कुछ में इसे शिर्क (खुदा की जात में किसी और को शामिल करना) करार दिया जा रहा था।
 
विस्फोट के बाद ये आवाज आनी शुरू हो गईं, "में विस्फोट की निंदा करता हूं मगर वहां जो हो रहा था वह शिर्क है..."
'वे नाचते क्यों हैं?'
'महिलाएं सरे आम क्यों नाचती हैं?'
'फकीरों ने भांग पी रखी है।'
'यह शिर्क है।'
'यह गुनाह है।'
 
कत्लेआम : क्या किसी फकीर ने किसी सूफियाना गीत गाने वाले या खुदा में खो जाने वाले बुजुर्ग ने किसी मठ या मजार को धमाके से उड़ाया है या इतने लोगों का कत्लेआम किया है? मजहब के कुछ रखवालों को अपने ख्यालात और टिप्पणियों के जरिए इस तरह की हिंसा को भड़काने की कोई चिंता नहीं है।
 
इससे फर्क नहीं पड़ता कि सहून में जो हो रहा था वह शिर्क था या गुनाह। जैसा कि बेयोन कहते हैं कि कलंदर को मानने वालों की श्रद्धालुओं के भीतर किसी तरह का दोष ढूंढने की कोशिश कर रहे थे।
 
सहून शरीफ कायम है, इस रूपक के रूप में मानव संबंध में सब कुछ संभव है। इंसानों के बीच एक ऐसा संबंध जो मजहबी बंधनों में नहीं बांधा जा सकता। न ही धार्मिक और संस्कृति जैसे शब्द इसके इर्द-गिर्द घेरा डाल सकते हैं।
 
यह है, और रहेगा, चाहे मौत आए या बर्बादी।
 
(उत्तरा शाहनी वकील हैं और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से सिंध और बंटवारे पर पीएचडी कर रही हैं।)

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ब्राह्मण लड़के के लिए भागी शबाना