- विकास त्रिवेदी
हर नई कहानी तब शुरू होती है, जब एक कहानी ख़त्म हो जाए। छोटा राजन की कहानी भी वहां से शुरू होती है, जहां पर बड़ा राजन यानी राजन नायर की कहानी ख़त्म होती है। मुंबई के अपराध की दुनिया को जानने वाले जानते हैं कि राजन नायर दर्जी की नौकरी करता था। 25 से 30 रुपए कमा पाता था।
उसकी गर्लफ्रेंड का बर्थडे आया। पैसों की ज़रूरत हुई तो उसने एक टाइपराइटर चुराने शुरू कर दिए। इन पैसों से राजन नायर ने गर्लफ्रेंड की ज़रूरतें पूरी करने लगा, जल्द ही पुलिस ने गिरफ्तार कर राजन नायर को तीन साल के लिए जेल भेज दिया।
जेल से निकलकर राजन ने गुस्से में अपनी गैंग बना ली। नाम 'गोल्डन गैंग', जो आगे जाकर 'बड़ा राजन गैंग' कहलाया। बताया जाता है कि 1991 में एक मलयाली फ़िल्म आई थी 'अभिमन्यु' जो बड़ा राजन की ज़िंदगी पर आधारित थी उसमें इन घटनाओं को दिखाया गया है, बड़ा राजन की भूमिका इस फ़िल्म में मोहनलाल ने की थी।
राजन ने एक गुर्गे अब्दुल कुंजू को गैंग में जोड़ा। कुछ दिनों बाद इसी अब्दुल कुंजू ने राजन नायर की गर्लफ्रेंड से शादी कर ली। दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। अख़बार बताते हैं कि 1982 में पठान भाइयों ने कुंजू की मदद से अदालत के बाहर बड़ा राजन यानी राजन महादेव नायर की हत्या करा दी।
राजन नायर अंडरवर्ल्ड की दुनिया का बड़ा राजन था। बड़ा राजन के ख़त्म होने के बाद शुरू होती है छोटा राजन के आने की कहानी, वही छोटा राजन जिसके बारे में भारत की जाँच एजेंसियाँ पता लगा चुकी थीं कि वो काफ़ी समय तक दाऊद इब्राहिम का ख़ास आदमी था।
1993 के मुंबई बम धमाकों के मुख्य अभियुक्त दाऊद और छोटा राजन की ये क़रीबी जिस एक शख्स की आंख में सबसे ज़्यादा चुभ रही थी, वो था छोटा शकील। जिसने छोटा राजन की जान लेने की कई कोशिशें की। 1993 के बम धमाकों के बाद छोटा राजन और दाऊद की साझीदारी ख़त्म हो गई।
राजेंद्र सदाशिव निखल्जे यानी राजन
मुंबई के चेंबूर के तिलक नगर में 1960 में एक मराठी परिवार में बेटे ने जन्म लिया। नाम रखा गया राजेंद्र सदाशिव निखल्जे। पिता सदाशिव थाणे में नौकरी करते थे। राजन के तीन भाई और दो बहनें थीं। राजन का पढ़ाई में कम ही मन लगता था। पांचवीं तक पढ़ाई के बाद राजेंद्र ने स्कूल छोड़ दिया। राजेंद्र जल्द ही बुरी संगत में आ गया। राजन जगदीश शर्मा उर्फ गूंगा की गैंग में शामिल हो गया।
राजेंद्र की सुजाता नाम की लड़की से शादी हुई। तीन बेटियां हुईं। 1979 में इमरजेंसी के बाद पुलिस कालाबाज़ारी करने वालों पर शिकंजा कस रही थी। इस वक्त राजेंद्र मुंबई के सहकार सिनेमा के बाहर टिकटें ब्लैक करने लगा था। लोग बताते हैं कि एक दिन पुलिस ने इसी सिनेमा हॉल के बाहर लाठीचार्ज किया। लाठियों से गुस्साए 20 साल से कम उम्र के राजन ने पुलिस की लाठी छीनी और पुलिसवालों को पीटना शुरू कर दिया।
पुलिसवालों से राजेंद्र की ये पहली मुठभेड़ थी। कई पुलिसवाले घायल हुए। इसका एक नतीजा ये रहा कि मुंबई की ज़्यादातर गिरोह क़रीब पांच फुट तीन इंच के राजेंद्र को अपने साथ जोड़ना चाहते थे। राजेंद्र ने बड़ा राजन गैंग ज्वाइन करने का फ़ैसला किया।
दाऊद से छोटा राजन की पहली मुलाक़ात
1982 में बड़ा राजन के मरने के बाद गैंग को संभालने वाला राजेंद्र छोटा राजन बन गया। छोटा राजन ने तय किया कि वो अपने बड़ा राजन भाई की मौत का बदला लेगा। कुंजू के भीतर छोटा राजन का डर इस क़दर बैठा कि 9 अक्तूबर 1983 को कुंजू ने क्राइम ब्रांच में जाकर सरेंडर कर दिया। कुंजू को ये लगा कि ज़िंदगी बचाने का यही तरीका है। लेकिन छोटा राजन हार मानने वालों में से नहीं था। जनवरी 1984 में छोटा राजन ने कुंजू को मारने की कोशिश की लेकिन कुंजू इस हमले में बस घायल हुआ।
25 अप्रैल 1984 को जब पुलिस कुंजू को इलाज के लिए अस्पताल ले गई। अस्पताल में एक 'मरीज' हाथ में प्लास्टर बांधे बैठा हुआ था। जैसे ही कुंजू करीब आया, प्लास्टर को हटाकर शख्स ने फायरिंग शुरू कर दी। किस्मत ने कुंजू का फिर साथ दिया लेकिन हमले के इस तरीके से भविष्य में दो लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। पहला दाऊद इब्राहिम। दूसरा बॉलीवुड, जहां आज भी कई फ़िल्मों में इस सीन को फिल्माया जाता है।
मुंबई अंडरवर्ल्ड की कहानी सुनाने वाले बहुचर्चित किताब 'डोंगरी टू दुबई' में एस हुसैन ज़ैदी लिखते हैं, ''इस ख़बर को सुनने के बाद दाऊद ने छोटा राजन को मिलने के लिए बुलाया। इस मुलाक़ात के बाद छोटा राजन दाऊद की गैंग में शामिल हो गया और छोटा राजन की कुंजू को मारने की अगली कोशिश सफल हुई।"
ज़ैदी ने अपनी किताब में लिखा है, "कुंजू क्रिकेट के मैदान में था। क्रिकेट की सफेद पोशाक पहनकर मैदान में कई लोग थे। तभी कुछ नए खिलाड़ियों ने मैदान में शामिल होकर कुंजू और उसके साथियों पर फायरिंग शुरू कर दी।"... इस तरह छोटा राजन ने अपने अंडरवर्ल्ड भाई, बड़ा राजन की मौत का बदला लेने का मिशन पूरा कर लिया था।
कहां से शुरू हुई दाऊद से छोटा राजन की नाराज़गी?
दाऊद और छोटा राजन दोनों एक दूसरे का भरोसा जीत चुके थे, अगले कुछ सालों में छोटा राजन दाऊद भाई के इशारों पर काम करता रहा। अब दाऊद की गैंग में दो छोटा थे, जो 'भाई' के लिए बड़े से बड़ा काम कर सकते थे। 1987 में छोटा राजन दाऊद का काम संभालने के लिए दुबई चला गया। इसके ठीक एक साल छोटा शकील ने दुबई का रुख़ किया लेकिन दाऊद का करीबी छोटा राजन रहा न कि छोटा शकील।
ऐसे कई मौके रहे, जब छोटा शकील को ये बात चुभी कि दाऊद उससे ज्यादा छोटा राजन पर यकीन करता है। छोटा राजन को गैंग में नाना भी कहा जाता था। राजन दाऊद के लिए बिल्डर्स और रईस लोगों से वसूली करने लगा। किसी भी कॉन्ट्रेक्टर को अगर कोई ठेका लेना होता तो इसकी तीन से चार फीसदी फीस छोटा राजन को चुकानी होती।
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, छोटा राजन हर महीने 90 के दशक में क़रीब 80 लाख रुपए जुटा लिया करता था। कहा ये भी गया कि छोटा राजन के नाम 122 बेनामी होटल और पब सिर्फ मुंबई में थे। इस कमाई का एक हिस्सा गैंग के गुर्गों के कोर्ट केस लड़ने में भी खर्च किया जाता था।
गैंग में छोटा राजन की बढ़ती अहमियत को खत्म करने की छोटा शकील, शरद शेट्टी, सुनील रावत सोचते हैं। एस हुसैन ज़ैदी अपनी किताब' डोंगरी टू दुबई' में ये वाकया शेयर करते हैं। "दाऊद भाई छोटा राजन सारी ताकत खुद के पास रखता जा रहा है। कल को वो तख्तापलट कर गैंग पर कब्ज़ा कर सकता है।"
किताब में लिखा है कि दाऊद जवाब देता है- "तुम लोग कब से ऐसी अफवाहों पर यकीन करने लगे। वो बस अपनी गैंग का मैनेजर है।" लेकिन दाऊद के इस जवाब के बाद भी वहाँ मौजूद लोगों के दिल से छोटा राजन के लिए कड़वाहट कम नहीं हुई। कुछ वक्त की ख़ामोशी के बाद दाऊद छोटा शकील से कहता है- "छोटा राजन को फोन लगाओ।"
यहां एक बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि ये वो वक्त था, जब दाऊद ने छोटा राजन को अपने भाई साबिर इब्राहिम कासकर की हत्या करने वाले करीम लाला और अमीरज़ादा को मारने का काम दे रखा था।
छोटा राजन के फोन उठाते ही दाऊद कहता है, "इब्राहिम की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों को तू अब तक नहीं पकड़ पाया न?" छोटा राजन जवाब देता है, "हां भाई, मेरे लड़के लगे हुए हैं। हमले के लिए ज़िम्मेदार गवली के लड़के अभी जेजे अस्पताल में भर्ती हैं। सिक्योरिटी बहुत टाइट है। मैं जल्दी कुछ करेगा भाई।"
वहां कमरे में बैठा सौत्या दाऊद से कहता है- "मेरे को बस एक मौका और दो भाई और आप देखोगे कि मैं कैसे सिक्योरिटी तोड़कर बदला लेता हूँ।" सौत्या दाऊद के पैर छूकर निकलता है। अब छोटा शकील और सौत्या के लिए यही मौका था कि छोटा राजन को दाऊद की नज़र से गिराया जाए।
'डी' गैंग में छोटा राजन के अंत की शुरुआत
12 सितंबर 1992 को अस्पताल में छोटा शकील और सौत्या के गुर्गे घुसने की साजिश रचते हैं। अस्पताल पर हमले के लिए एके-47 का इस्तेमाल किया गया। पुलिस पंचनामे के मुताबिक, 500 राउंड फायरिंग हुई। ज़ैदी के मुताबिक़, दाऊद का बदला पूरा हो चुका था और 'डी' गैंग में छोटा राजन के अंत की शुरुआत भी।
अपनी ख़ास बैठकों में दाऊद अब छोटा शकील को ले जाने लगा। छोटा राजन को किनारे कर दिया गया। 1993 में मुंबई में बम धमाके हुए। कई लोगों की जान गई। धमाकों के बाद मुंबई के लोगों के मन में दाऊद और उसके सहयोगी छोटा राजन के लिए नफरत भर गई।
एस हुसैन ज़ैदी अपनी किताब में लिखते हैं, "छोटा राजन ने अख़बारों को फैक्स के ज़रिए अपना पक्ष रखने की कोशिश की। राजन ने दाऊद का बचाव भी किया।"
ऐसा नहीं है कि गैंग में छोटा राजन और छोटा शकील से मतभेद कम करने की कोशिश दाऊद ने नहीं की। ज़ैदी ने लिखा है कि दाऊद ने ऐसी ही एक मुलाकात में चिल्लाकर कहा था- "नाना मेरे बुरे वक्त का दोस्त है। मैं उसकी बुराई नहीं सुनना चाहता। आपस में झगड़ा धंधे की मौत होता है।"
दाऊद की बात से छोटा शकील टुकड़ी के लोग भले ही खुश न हों लेकिन छोटा राजन के दिल में महीनों बाद कुछ तसल्ली ने घर किया था लेकिन ये तसल्ली ज़्यादा दिन तक नहीं रही। छोटा शकील की ओर से राजन को काफिर कहा जाने लगा और ज़रूरी बैठकों में शामिल नहीं किया गया। 1993-94 आते-आते दोनों धड़े एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे।
राजन ने दाऊद गैंग का काम करना बंद कर दिया। राजन अब भारत लौटना चाहता था। लेकिन छोटा राजन का पासपोर्ट उन शेखों के पास था, जिनकी मदद से वो दुबई में रहने गया था। राजन के पास मुल्क वापसी का कोई रास्ता नहीं बचा था लेकिन ये ज़रूर जानता था कि अगर वो वहां और रुका तो अपनी जान खो बैठेगा।
अपनी जान बचाता छोटा राजन
ज़ैदी ने अपनी चर्चित किताब में लिखा है- तभी दाऊद एक बड़ी पार्टी करता है। इस पार्टी में शहर के बड़े लोगों को बुलाया गया। छोटा राजन भी पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था। तभी एक फोन आता है। राजन फोन उठाता है तो एक अनजान आवाज़ आती है- "नाना वो तुमको टपकाने का प्लानिंग किए ला है।"
'डोंगरी टू दुबई' किताब बताती है कि "छोटा राजन फोन रखने के बाद इंडियन एम्बेसी का रुख करता है। वहां एक रॉ अफसर से राजन की बात होती है। दिल्ली फोन लगाए जाते हैं। कुछ घंटों बाद राजन काठमांडू की फ्लाइट में बैठा था। काठमांडू से राजन मलेशिया चला गया।"
दुबई में छोटा राजन के गायब होने के बाद छोटा शकील धड़े के तेवर और हौसले बुलंद हो गए। यहीं से जो छोटा राजन कभी दाऊद का दायां हाथ था, अब उस जगह को छोटा शकील ने भर दिया। अगले कुछ साल छोटा राजन ने छिपकर बिताए।
अगले कुछ साल छोटा राजन ने कुआलालम्पुर, कंबोडिया और इंडोनेशिया में छिपते हुए बिताए। लेकिन राजन को अपने लिए सुरक्षित ठिकाना बैंकॉक लगा। राजन ने मोबाइल नंबर से लेकर घर के पते तक, अपनी लोकेशन छिपाए रखने की हर कोशिश की।
इधर छोटा शकील भी छोटा राजन के सीने में गोली उतारने का सपना लिए हुए था। काफी कोशिशों के बाद साल 2000 में छोटा राजन का पता छोटा शकील को लग चुका था। 14 सितंबर 2000 को चार हथियार बंद लोग राजन के अपार्टमेंट पर हमला करते हैं। लेकिन राजन भागने में कामयाब होता है।
राजन पुलिस की मदद से अस्पताल में भर्ती होता है। ये खबर भारत भी पहुंचती है। ये भी पता चला कि राजन अब तक बैंकॉक में छिपा हुआ था। कुछ दिनों बाद राजन अचानक अस्पताल से भी गायब हो जाता है। राजन को ये खबर मिली थी कि कोई अस्पताल को उड़ा सकता है इसलिए वो अस्पताल की चौथी मंजिल से कूदकर भाग जाता है।
साल 2001 में राजन इस हमले का बदला लेता है। राजन छोटा शकील गैंग के दो गुर्गों को मरवा देता है। 2001 के बाद छोटा राजन कहां रहा, इस बात की ख़बर दुनिया को नहीं रही। अगली बार छोटा राजन का दुनिया ने नाम सुना जून 2011 में । जब मिड डे न्यूज़ पेपर में वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की मंबई के पवई में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या में छोटा राजन को नाम आया। इसी दौरान साल 2013 में मुंबई के बिल्डर अजय गोसालिया और अरशद शेख की हत्या केस में भी छोटा राजन गैंग के लोगों का ही नाम आया।
इंटरपोल ने छोटा राजन को पकड़वाने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। फिर 2015 में ख़बरें आईं कि छोटा राजन पर ऑस्ट्रेलिया में हमला हुआ। राजन जान बचाकर बाली चला गया। भारत का इंतज़ार अक्टूबर 2015 में खत्म होता है। इंडोनेशिया के बाली में छोटा राजन को गिरफ्तार कर लिया गया।
नवंबर 2015 में ऐसी तस्वीरें सामने आईं, जिसको लोगों ने कभी उम्मीद नहीं की थी। जो छोटा राजन बंदूक थामे हमलावर के आगे बैठकर लोगों को धमकाता नज़र आता था, वो हथकड़ियों में जकड़ा नारंगी रंग के कपड़ों में पुलिस से घिरा नज़र आया, बेबस और लाचार।
ड्रग्स, हथियार, वसूली तस्करी और हत्या के क़रीब 70 मामलों में अभियुक्त छोटा राजन को पत्रकार जे डे की हत्या केस में दोषी माना गया और आजीवन कैद की सज़ा सुनाई गई।
जिस मुंबई में कभी छोटा राजन टिकटें ब्लैक करता था। उसी मुंबई की एक अदालत ने छोटा राजन को पत्रकार जे डे की हत्या के केस में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई, उसका शो ख़त्म हो चुका है।