जेमिले रिबेइरो बोस्टोस डो कार्नो, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
न्यूनतम वेतन या उसके आसपास कमा रहीं दुनियाभर की कई महिलाओं ने रोज़मर्रा के बढ़ते खर्चों की वजह से साल 2022 में कई ऐसी चीजों का इस्तेमाल बंद कर दिया, जो पहले उनके जीवन का ज़रूरी हिस्सा थीं।
इनमें नए कपड़े, साबुन और नाश्ते में इस्तेमाल होने वाला दलिया जैसी चीजें शामिल हैं। हमने अलग-अलग देशों की उन महिलाओं से बात की जिन्होंने बढ़ती महंगाई और घरेलू बजट के बीच तालमेल बिठाने के लिए बदलाव किए हैं।
हमने जिन महिलाओं से बात की उनमें से एक महिला ऐसी भी हैं जिन्हें राज्य सरकार की नीतियों में बदलाव का फ़ायदा मिला है और उनके वेतन में इजाफ़ा हुआ है।
ये हैं भारत के ओडिशा की फ़रबानी। सबसे पहले उन्हीं की बात
'300 दिन काम की गारंटी' : 40 साल की फ़रबानी छूरा रोज़ 333 रुपये कमाती हैं। ओडिशा में अप्रशिक्षित किसान मज़दूर के लिए ये न्यूनतम मज़दूरी है। ये रकम बहुत ज़्यादा नहीं हैं, लेकिन उनके पति और उनके लिए ये नियमित रोज़गार की गारंटी है।
फ़रबानी छूरा 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी' योजना की लाभार्थी हैं। इस योजना के तहत साल में 100 दिन काम मिलने की गारंटी मिलती है। फ़रबानी जिस क्षेत्र में रहती हैं, वहां से पलायन कम करने के लिए ओडिशा राज्य सरकार ने 2020 में यह आंकड़ा बढ़ाकर 200 दिन और जुलाई 2022 में 300 दिन कर दिया। पूरे भारत में 10 करोड़ से अधिक लोगों को इस योजना के तहत सक्रिय रूप से काम दिया जा रहा है।
ओडिशा के बलांगीर ज़िले में जहां फ़रबानी रहती हैं और चार पश्चिमी ज़िलों के केवल कुछ हिस्सों में अब 300 दिनों के काम की गारंटी है।
फ़रबानी कहती हैं, "मैं देखती हूं कि पिछले छह महीनों में बाज़ार में सब्जियों और दालों की कीमत बहुत बढ़ गई है, लेकिन अब हमारे पास काम है, इसलिए हम अब भी ख़रीद सकते हैं।"
दरअसल, फ़रबानी का कहना है कि अब उन्हें अपने दादा के लिए दवा खरीदने के लिए किसी माइक्रो फाइनेंस बैंक से कर्ज नहीं लेना पड़ेगा। वो कहती हैं, "ज़्यादा मज़दूरी मिलने से हम कर्ज़ों को चुकाने में भी सक्षम हो गए हैं।"
घर पर बनाया हुआ कपड़े धोने का साबुन : रियो डि जेनेरो में रहने वाली जूसारा बकेलो कहती हैं कि एक साल पहले जब वो सामान ख़रीदने जाती थीं, तब के मुक़ाबले में अब उनका झोला आधा ही भर पाता है।
घरेलू साफ़-सफ़ाई के सामान में वे कटौती करती हैं। सफ़ाई के प्रयोग में आने वाले लिक्विड को वे अब नहीं ख़रीदती हैं। इसके बदले में उन्होंने जले हुए तेल (खाने का प्रयोग में लाया जाने वाला) को फेंकना बंद कर दिया है।
वे कहती हैं, "मैं तेल में खाना पकाती हूं और जब तेल उपयोग के लायक नहीं रहता तब मैं उसे प्लास्टिक के बोतल में बंद कर अपने पड़ोसी को देती हूं जो उस से साबुन बना देती हैं।"
पड़ोसी ने एक रीसाइक्लिंग कंपनी के लिए काम करते हुए साबुन बनाना हुए सीखा था। वहां तेल को पहले खाना पकाने के चिप्स या कॉक्सिन्हा (चिकन क्रोकेट्स) के लिए इस्तेमाल किया जाता है, फिर उसे शराब, कॉस्टिक सोडा और बाज़ार से ख़रीदी गई सुगंधित लिक्विड के साथ मिलाया जाता है।
वे बताती हैं कि उनकी पड़ोसी सुगंधित द्रव्य इसलिए मिलाती हैं ताकि कास्टिक सोडा की गंध को ख़त्म किया जा सके।
जुसारा एक इंजीनियरिंग फर्म के लिए क्लीनर और कुक के रूप में काम करके प्रति माह 1,212 रियल (225 डॉलर या 19,114 रुपये) का न्यूनतम वेतन कमाती हैं।
इसमें पेंशन के लिए जमा होने वाले अंशदान को नहीं जोड़ा गया है। एक साल पहले वह अपने सबसे छोटे बेटे के साथ कभी-कभार सिनेमा देखने जाती थीं और बेघर लोगों को दान करने के लिए आदतन अपने हैंडबैग में खाना ले जाती थी। लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर पाती हैं। वे कहती हैं, 'अगर ऐसा करेंगी तो उन्हें खुद खाने की दिक्कत का सामना करना पड़ जाएगा।'
'दलिया ख़रीदने में असमर्थ' : नाइजीरियाई शिक्षक रेबेका ओगबोना अपने बच्चों को उनका पसंदीदा नाश्ता सात महीने से नहीं खिला सकीं हैं। नाइजीरिया में अक्टूबर में अनुमान लगाया गया था कि खाद्य मुद्रास्फीति 23% साल-दर-साल रही।
वे कहती हैं, "जो चीज़ें मैं 1 हजार नाइरा ($2.25 या क़रीब 186 रुपये) में ख़रीदती थीं अब उसकी क़ीमत 3 हजार (क़रीब 556 रुपये) या इससे ज़्यादा है।" इस कारण से अब वे मक्के का दलिया 'गोल्डन मोर्न' नहीं ख़रीद सकती हैं, जिसे उनके बच्चे स्कूल जाने से पहले खा कर जाते थे। रिवेका अब घर पर ख़ुद से इसे बनाती हैं। रेबेका ने बताया, "मैं मकई, सेम लूंगी, इसे पीसूंगी या भिगो दूंगी।"
रिवेका मकई और सेम से जो सुबह का नाश्ता बनाती हैं वो उनके बच्चों को पसंद नहीं आ रहा है। वे बताती हैं, "जब मैंने बच्चों के लिए ये ब्रेकफास्ट बनाना शुरू किया तब उन्हें ये पसंद नहीं आया। वे कहने लगे कि उन्हें ये पसंद नहीं आया और वो इसे नहीं खा सकते। मगर उन्हें खाना पड़ता है।"
रिवेका एक शिक्षिका हैं। वे हर महीने 4500 नाइरा (833 रुपये) कमा पाती हैं, जो नाइजीरिया के न्यूनतम वेतन से डेढ़ गुना है। फिर भी ये आमदनी उनके परिवार के गुज़र बसर के लिए कम है।
'नए कपड़े खरीदना मुश्किल' :साल भर पहले जेसिका रेकम लंदन के एक ऑनलाइन रिटेल वेयरहाउस काम कर हर घंटे साढ़े नौ पाउंड (£9.50) ($11.50 या 946 रुपये) कमा लेती थीं, लेकिन अब वो देर तक काम करने के बावजूद संघर्ष कर रही हैं।
इस बारे में वे कहती हैं, "उनके पास काम करने के लिए पर्याप्त लोग नहीं हैं। उन्होंने मेरी शिफ्ट दोगुनी कर दी है और मुझे इसे स्वीकार करना पड़ा। क्योंकि सब कुछ महंगा हो गया है। मैं 15 या 16 घंटों काम करती हूं, आप समझ सकते हैं कि ये मेरे लिए कितना थकाऊ है।"
घर पर आराम करना भी उनके लिए आसान नहीं है। पुराने गद्दे से उनकी पीठ में तकलीफ होती है लेकिन वो पुराने गद्दे को बदल कर नया गद्दा नहीं खरीद सकती हैं।
जेसिका कहती हैं कि पिछले साल तक वे उधार लेकर सामान खरीद सकती थीं और उसे छोटी किस्तों में चुका सकती थीं लेकिन अब उनकी आमदनी घर के किराए और किराने की दुकान में खर्च हो जाती है।
वे नए कपड़े भी नहीं खरीद सकती हैं और उन्हें पुराने कपड़े ही पहनने पड़ रहे हैं। उनके अनुसार, ज़्यादा काम और तनाव से जुड़ी समस्याओं की वजह से वे एक से अधिक बार दुर्घटना का शिकार हुईं और उन्हें आपातकालीन विभाग में रहना पड़ा। इसके बाद उन्हें नौकरी बदलने की सलाह दी गई, लेकिन उनकी उम्र में ऐसा करना आसान नहीं है।
बचत करना हुआ मुश्किल : सुपर-मार्किट में काम करने वाली 29 साल की दा वून जेयोंग अपने माता-पिता से मिलने गांव नहीं जा पाईं।
दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल से बस और ट्रेन से आने जाने में 1 लाख 50 हजार वॉन ($115 या 9,745 रुपये) किराया लगता है और बीते साल ये राशि उनकी पहुंच से बाहर थी।
वे कहती हैं, "मैं अपने और उनके (माता-पिता) जन्मदिन पर साथ होना चाहती हूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती और मुझे इसका दुख है।"
सुपरमार्केट की कीमतों में वृद्धि से न केवल उनका बजट प्रभावित हुआ है, बल्कि ब्याज दरों में वृद्धि भी हुई है। उन्होंने अपने फ्लैट की जमा-राशि के लिए पैसे उधार लिए थे और उसकी मासिक किश्त भी बढ़ गई है।
जेयोंग कहती हैं, "अब मैं सिर्फ जीवित रहने के लिए काम करती हूं। पहले मैं अपने माता-पिता के लिए कुछ पैसे बचा लेती थी, लेकिन इस साल मैंने अपनी सारी बचत दैनिक खर्चों के बिल का भुगतान करने में खर्च कर दी। यह वह पैसा था जिसे मैंने आपातस्थिति और उनकी देखभाल के लिए बचाया था।"
वे आगे कहती हैं, "सरकार ने 2022 में न्यूनतम वेतन को 5% बढ़ाकर 9 हजार160 वॉन (6।80 डॉलर या 595 रुपये) प्रति घंटा कर दिया, लेकिन क़ीमतें और भी तेजी से बढ़ीं है। सरकार को अमीर लोगों से और ज़्यादा टैक्स लेना चाहिए और ग़रीबों की मदद करनी चाहिए।"
(महंगाई के आंकड़े ट्रेडिंगइकोनॉमिक्स डॉट कॉम से।)