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हिजाब विवाद पर अब तक क्या हुआ?

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BBC Hindi

, गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022 (07:41 IST)
अनघा पाठक, बीबीसी संवाददाता
  •  
  •  
  • हिजाब पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की अलग-अलग राय जाहिर की
  • अब ये मामला बड़ी बेंच के पास जाएगा
  • कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को सही ठहराया था जिसमें स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहनने पर पाबंदी लगाई गई थी
  • हाई कोर्ट के इसी फ़ैसला को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी
हिजाब-ए-इख़्तियारी यानी एक महिला की हिजाब को चुनने की पसंद। कर्नाटक से लेकर ईरान तक हर तरफ़ ये नारा सुनाई दे रहा है। ईरान में हज़ारों महिलाएं उस क़ानून के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं जो उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य करता है। वहीं भारत के कर्नाटक प्रांत में कॉलेज छात्राएं हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर रही हैं।
 
ये दोनों ही विचार एक दूसरे के विरोधी प्रतीत हो सकते हैं लेकिन इनका तर्क एक ही है- एक महिला के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वो तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है। उसे अपने जिस्म के साथ क्या करना है ये अधिकार उसके पास होना चाहिए।
 
भारत में सुप्रीम हिजाब विवाद पर फ़ैसला करेगा। ये फ़ैसला तय करेगा कि कर्नाटक में कॉलेज और स्कूल जाने वाली छात्राएं कैंपस के अंदर हिजाब पहन पाएंगी या नहीं। इस मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट इसी सप्ताह फ़ैसला दे सकता है।
 
अब तक क्या हुआ है?
पिछले साल कर्नाटक के उडुपी ज़िले में एक जूनियर कॉलेज ने छात्राओं पर स्कूल में हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी थी।
 
01 जुलाई 2021 को गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स ने तय किया था कि किस तरह की पोशाक को कॉलेज यूनिफॉर्म स्वीकार किया जाएगा और कहा था कि छात्राओं के लिए दिशानिर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।
 
जब कोविड लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से खुला तो कुछ छात्राओं को पता चला कि उनकी सीनियर छात्राएं हिजाब पहनकर आया करती थीं। इन छात्राओं ने इस आधार पर कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी।
 
उडुपी ज़िले में सरकारी जूनियर कॉलेजों की पोशाक को कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है और स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं।
 
बीजेपी विधायक रघुवीर भट्ट ने मुसलमान छात्राओं की मांग नहीं मानी और उन्हें क्लास के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं मिली।
 
इस साल फ़रवरी में बीबीसी से बात करते हुए रघुवीर भट्ट ने कहा था, "ये अनुशासन का विषय है, हर किसी को यूनिफॉर्म के नियमों का पालन करना चाहिए।"
 
जब उनसे पूछा गया था कि क्या उनका ये निर्णय पार्टी की विचारधारा से प्रभावित है तो उन्होंने कहा था, "राजनीति के लिए और बहुत सी चीज़ें हैं, ये शिक्षा का मामला है।" नए दिशानिर्देशों के तहत मुसलमान छात्राओं के हिजाब पहनने पर रोक लगा दी गई थी।
 
दिसंबर 2021 में छात्राओं ने हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया था। इन लड़कियों ने इसके बाद कॉलेज प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया था और जनवरी 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर कर दी थी।
 
प्रदर्शन, नारेबाज़ी और हिंसा
ये मामला शुरू तो उडुपी ज़िले से हुआ था लेकिन जल्द ही जंगल की आग की तरह बाक़ी ज़िलों में भी फैल गया।
शिवमोगा और बेलगावी ज़िलों में भी हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली मुसलमान छात्राओं पर रोक लगा दी गई।
भगवा गमछा पहने छात्रों ने हिजाब पहने छात्राओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी। कोंडापुर और चिकमंगलूर में प्रदर्शन और प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ हिंदू और मुसलमान छात्रों के प्रदर्शन शुरू हो गए।
 
एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें हिजाब पहने कॉलेज जा रही छात्रा मुस्कान ख़ान के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी कर रहे छात्र दिख रहे थे। भगवा गमछा डाले युवा छात्रों की ये भीड़ हिजाब पहने मुस्कान ख़ान का जय श्री राम का नारा लगाता हुए पीछा कर रही थी। इनकी प्रतिक्रिया में मुस्कान ने भी अल्लाह हू अकबर का नारा लगा दिया। ये घटना कर्नाटक के मंड्या ज़िले में हुई थी।
 
हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू होने के तीन दिन पहले मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई की सरकार ने एक आदेश जारी करके सभी छात्रों के लिए कॉलेज प्रशासन की तरफ़ से तय यूनीफॉर्म को पहनना अनिवार्य कर दिया।
 
इस आदेश में ये भी कहा गया कि तय पोशाक के अलावा कुछ और पहनने की अनुमति नहीं होगी। आदेश में कहा गया कि सरकारी कॉलेजों में कॉलेज की विकास समिति के पास यूनीफॉर्म तय करने को लेकर पूर्ण अधिकार होगा।
 
आदेश में ये भी कहा गया कि निजी शिक्षा संस्थान ये तय कर सकते हैं कि छात्राओं से यूनीफॉर्म पहनने के लिए कहा जाए या नहीं। इस आदेश के दो दिनों के भीतर ही प्रदर्शन राज्य भर में फैल गए और कई जगह हिंसक घटनाएं भी हुईं।
 
8 फरवरी 2022 को उडुपी के एमजीएम कॉलेज में सैकड़ों छात्रों की भीड़ ने हिजाब पहने लड़कियों के ख़िलाफ़ जय श्री राम का नारा लगाया। कर्नाटक के कई इलाक़ों में हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस छोड़नी पड़ी।
 
मुख्यमंत्री को एहतियात के तौर पर कई दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद मामला कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बैंच में पहुंचा।
 
हाई कोर्ट का फ़ैसला
हाई कोर्ट ने 11 दिनों तक इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने पाँच फ़रवरी को जारी राज्य सरकार के आदेश को बरक़रार रखा। इस आदेश के तहत उन स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर रोक लगाई जा सकती थी जहां यूनीफॉर्म पहले से ही तय थी। अदालत ने कहा कि 'स्कूल यूनीफॉर्म तय करना उचित प्रतिबंध है जो संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है।'
 
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण दीक्षित, जस्टिस जेएम काज़ी की पीठ ने ये कहते हुए याचिका ख़ारिज कर दी कि, "ये तर्क नहीं दिया जा सकता है कि हिजाब पोशाक का हिस्सा होने की वजह से इस्लाम की आस्था के मूल में है। ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का अगर पालन न किया जाए तो, जो लोग हिजाब नहीं पहन रहे हैं वो ग़ुनाहगार हो जाएंगे। या इस्लाम अपनी चमक खो देगा और धर्म नहीं रहेगा।"
 
अब हिजाब विवाद पर फ़ैसला करेगा सुप्रीम कोर्ट
हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और तुरंत अपील दायर कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट न अपनी सुनवाई पूरी कर फ़ैसला सुरक्षित कर लिया था। इस सप्ताह ये फ़ैसला आ सकता है।
 
कर्नाटक सरकार की तरफ़ से पेश होते हुए महाधिवक्ता तुषार मेहत ने कहा था, "कोई भी 2004 के बाद से हिजाब पहनकर क्लास रूम नहीं आ रहा है। ये सब दिसंबर 2021 में शुरू हुआ जब कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज आने लगीं। 2022 में इस्लामी संस्था पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया ने हिजाब पहनकर कॉलेज आने के समर्थन में अभियान चलाया।"
 
पीएफ़आई ने इन आरोपों को ख़ारिज किया था। सितंबर में भारत की केंद्र सरकार ने पीएफ़आई पर प्रतिबंध लगा दिया था।
 
तुषार मेहता ने का था, "ये छात्राओं का कोई अचानक शुरू किया गया अभियान नहीं है। छात्राएं बड़ी साज़िश का हिस्सा थीं। कोई उन्हें पीछे से नचा रहा था।"
 
मेहता ने ज़ोर देकर कहा कि ये धर्म का मामला नहीं है बल्कि ये छात्रों को बराबरी का अधिकार देने का मामला है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया कर रहे हैं।
 
ईरान से तुलना
भारत में हिजाब को लेकर सुर्ख़ियां बन ही रहीं थीं कि उधर ईरान में महिलाओं ने हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया।
 
22 वर्षीय कुर्द युवती महसा अमीनी की नैतिक पुलिस की हिरासत में मौत की घटना के बाद से ही समूचे ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं।
 
महसा अमीनी ईरान के सख़्त नियमों का उल्लंघन करते हुए बिना हिजाब के थीं। उनके परिवार का आरोप ह कि उनकी मौत पुलिस की पिटाई की वजह से हुई है लेकिन पुलिस का कहना है कि मौत की वजह हार्ट अटैक थी।
 
ईरान में महिलाएं इस समय देशभर में हिजाब और दूसरे मुद्दों के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट कर रही हैं। इंटरनेट पर शेयर किए जा रहे वीडियों में ईरानी महिलाएं हिजाब उतारती और अपने बाल काटती दिख रही हैं।
 
भारत में दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधारा के लोग समान रूप से ईरान की महिलाओं की मांग का समर्थन कर रहे हैं।

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