पूनम कौशल (बीबीसी हिन्दी)
नई-नवेली ट्रेन के दरवाज़ों पर आत्मविश्वास से लबरेज़ युवतियां यात्रियों के स्वागत के लिए हाथ जोड़े खड़ी हैं। उतावले यात्री सेल्फ़ी और तस्वीरें खींचने के लिए उन्हें घेर लेते हैं। बिना उनकी अनुमति के मोबाइल कैमरे क्लिक करते हैं और वो अपने अंदर सिमटती हैं, सिकुड़ती हैं।
इस अनचाहे आकर्षण से असहज होने के बावजूद वो अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती हैं। ये नज़ारा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म 9 का है, जहां तेजस एक्सप्रेस लखनऊ रवाना होने के लिए तैयार खड़ी है।
काले-पीले रंग की बदन से चिपकती चुस्त पोशाक पहने खड़ी ये लड़कियां भारत की इस पहली प्राइवेट ट्रेन की होस्टेस हैं। हाल ही में शुरू हुई तेजस एक्सप्रेस का संचालन भारतीय रेल की ही निजी कंपनी आईआरसीटीसी के हाथ में हैं।
हवाई सेवा की तरह
इसे रेल सेवा को भारत की पहली निजी या कॉर्पोरेट सेवा भी कहा जा रहा है। आईआरसीटीसी ने तेजस को रेलवे से लीज़ पर लिया है और इसका कमर्शियल रन किया जा रहा है। आईआरसीटीसी अधिकारी इसे प्राइवेट के बजाए कॉर्पोरेट ट्रेन कहते हैं।
ये तेज़ रफ़्तार ट्रेन आधुनिक सुविधाओं से लैस है और देश की राजधानी से उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीच 511 किलोमीटर का सफ़र 6.30 घंटे में पूरा कर लेती है। यूं तो इस ट्रेन में कई ख़ास बातें हैं लेकिन इसकी सबसे ख़ास बात ये ट्रेन होस्टेस ही हैं।
भारत में ये पहली बार है, जब किसी रेल सेवा में हवाई सेवा की तरह होस्टेस तैनात की गई हैं। इसलिए यात्रियों में उनके प्रति जिज्ञासा और आकर्षण नज़र आता है। तेजस एक्सप्रेस में तैनात इन होस्टेस का काम यात्रियों के खाने-पीने और अन्य ज़रूरतों के अलावा सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखना है।
उत्साहित लड़कियां
लखनऊ की रहने वाली श्वेता सिंह अपनी इस नई नौकरी को लेकर बेहद उत्साहित हैं। चेहरे पर मुस्कान के साथ वो कहती हैं, 'मुझे देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस में काम करने पर गर्व है। हम भारत की पहली महिलाएं हैं, जो ट्रेन में होस्टेस हैं। मैं अपना सपना जी रही हूं।'
वो कहती हैं, 'हम हर दिन नए यात्रियों से मिलते हैं, बात करते हैं, ये अच्छा लगता है। हर तरह के लोग मिलते हैं, उन्हें संतोषजनक सेवा देना ही सबसे बड़ा चैलेंज होता है।' तेजस एक्सप्रेस के 10 डिब्बों में श्वेता जैसी 20 कोच क्रू तैनात हैं। इन सभी ने लखनऊ के एक इंस्टीट्यूट से एविएशन हॉस्पिटेलिटी और कस्टमर सर्विस में डिप्लोमा किया है। ये सभी आईआरसीटीसी की कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि एक अन्य प्राइवेट कंपनी के ज़रिए इनकी सेवाएं ली जा रही हैं।
तीन दौर की चयन प्रक्रिया
श्वेता बताती हैं, 'तीन दौर की चयन प्रक्रिया के बाद हमें ये काम मिला है। मेरे परिजनों को गर्व है कि मैं तेजस एक्सप्रेस में काम कर रही हूं।' मूल रूप से उन्नाव की रहने वाली वैशाली जायसवाल सर्विस ट्रॉली सजा रही हैं। उन्होंने भी श्वेता की ही तरह एयर होस्टेस बनने की तैयारी की थी। वो अपने काम को बिलकुल एयर होस्टेस के काम जैसा ही मानती हैं।
वैशाली कहती हैं, 'जो काम विमान में केबिन क्रू करते हैं वही काम हम करते हैं। फ़र्क यही है कि एयर होस्टेस हवा में काम करती हैं, हम पटरी पर हैं।' वो कहती हैं, 'हम एक चलती ट्रेन में हैं और यहां कई बार परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं। हमें उनसे निबटने का प्रशिक्षण दिया गया है।'
आगे के लिए सबक
तेज़ रफ़्तार से चलती और हिलती-डुलती ट्रेन में अंशिका गुप्ता पूरे विश्वास से सर्विस ट्रॉली को थामे हुए हैं। अभी तक भारतीय ट्रेनों में ये काम मर्द ही करते रहे थे। अंशिका कहती हैं, 'हम अभी सीख ही रहे हैं। ये पहली बार है जब भारत में हम जैसी लड़कियां ट्रेन में सेवाएं दे रही हैं। हमारे सीखे सबक आगे काम आएंगे।'
इस ट्रेन की अधिकतर क्रू मेंबर 20 साल की उम्र के आसपास की हैं और मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं। रेलवे में निजीकरण के इस प्रयोग ने उनके लिए नौकरी के अवसर पैदा किए हैं। अंशिका कहती हैं, 'मेरी मां हमेशा कहती थीं कि मैं कुछ ना कुछ कर लूंगी, वो अब मुझे यहां देखकर बहुत ख़ुश हैं।'
महिला सशक्तीकरण
सीने पर महिला सशक्तीकरण का बिल्ला लगाए ये लड़कियां पारंपरिक तौर पर पिछड़ी मानी जाने वाली आधी आबादी के लिए नई मिसाल भी पेश कर रही हैं। कोच क्रू की ज़िम्मेदारी संभाल रहीं संध्या सिंह यादव लखनऊ से हैं, जहां उनके पिता ऑटो चलाते हैं। संध्या का यहां तक पहुंचने का सफ़र बहुत आसान नहीं रहा।
वो कहती हैं, 'मेरे पिता ने तो पूरा सहयोग किया और जो मैं चाहती थी वो करने दिया लेकिन लोगों ने बहुत ताने मारे।' 'जब मैंने होस्टेस बनने की बात कही तो बार-बार मेरे पापा से कहा गया कि ये लड़कियों के करने का काम नहीं है। उन्हें सलाह दी गई कि बेटी को किसी सुरक्षित सरकारी नौकरी की तैयारी करवाओ।'
रिश्तेदारों ने बहुत ताने मारे...
सुंबुल फ़ातिमा की कहानी भी ऐसी ही है। उनके पिता सरकारी नौकरी से रिटायर हैं। होस्टेस बनने के लिए उनके घरवाले तो राज़ी हो गए लेकिन रिश्तेदारों ने बहुत ताने मारे। सुंबुल कहती हैं, 'अब लड़कियां किसी से पीछे नहीं हैं। वो ज़िम्मेदारी संभाल सकती हैं। मैंने किसी के तानों की परवाह नहीं की, मैं जानती हूं मैं जो काम कर रही हूं वो सही है।'
शुभांगी श्रीवास्तव तेजस में तैनात कोच क्रू की मैनेजर हैं। उनके साथ दो कैप्टन और एक सहायक मैनेजर भी हैं। ट्रेन की व्यवस्था और पूरी टीम को संभालने की ज़िम्मेदारी उनकी ही है। शुभांगी बताती हैं कि अभी तेजस में मर्द स्टाफ़ भी हैं लेकिन आगे चलकर इस ट्रेन को पूरी तरह महिलाओं के हाथ में सौंपे जाने की योजना है।
महिलाओं के लिए सुलभ
शुभांगी बताती हैं कि उनकी टीम का ज़ोर इस बात पर भी है कि इस ट्रेन को महिलाओं के लिए सुलभ बनाया जाए। वो कहती हैं, 'ट्रेन में महिला क्रू मेंबर्स का होना महिला यात्रियों में भरोसा पैदा करता है। जो महिलाएं अकेले यात्रा करती हैं, वो हमारी उपस्थिति में अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं।' इस ट्रेन में सैनिटरी नैपकिन और महिलाओं की ज़रूरत की अन्य चीज़ों की भी व्यवस्था की गई है। क्रू को गर्भवती महिलाओं का विशेष ध्यान रखने के निर्देश दिए गए हैं।
शुभांगी कहती हैं, 'कई बार महिलाओं को अचानक पीरियड्स हो जाते हैं, उनके पास सैनिटरी पैड नहीं होते। हमारे पास ये उपलब्ध रहते हैं। ऐसी स्थिति में महिलाएं होस्टेस के साथ आराम से बात कर सकती हैं।'
वो कहती हैं, 'छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रही महिलाओं का भी हम ख़ास ख्याल रखने की कोशिश करते हैं। हम बच्चों को गोद में भी ले लेते हैं।'
पोशाक पर विवाद
4 अक्टूबर को जब इस रेल सेवा का उद्घाटन किया गया तो ये मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा में रही। बदन से चिपकता कॉस्ट्यूम पहने यात्रियों पर फूल बरसाती ट्रेन होस्टेस की तस्वीरें जब प्रकाशित हुईं तो सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनकी पोशाक पर सवाल उठाए।
कई लोगों ने रेलमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को टैग करके ट्वीट किए और कहा कि होस्टेस को साड़ी पहनाई जाए। सवाल उठाने वालों का तर्क था कि भारतीय रेल में कार्यरत इन होस्टेस को पश्चिमी स्कर्ट पहनने के बजाए भारतीय संस्कृति की प्रतीक साड़ी पहनी चाहिए। शुभांगी कहती हैं कि ये तर्क सांस्कृतिक या पारंपरिक रूप से तो सही लग सकता है लेकिन व्यावहारिक रूप से नहीं।
साड़ी पहनना व्यावहारिक नहीं
शुभांगी कहती हैं, 'हम पेशेवर पोशाक पहन रहे हैं जिसे हमारे काम की ज़रूरत के हिसाब से डिज़ाइन किया गया है। ट्रेन में जगह कम होती है, पैसेंजर ज्यादा होते हैं। हिलती- डुलती ट्रेन में साड़ी पहनकर यात्रियों को सेवाएं देना व्यावहारिक नहीं है।'
'साड़ी को संभालना ही अपने आप में एक काम हो जाता है। कई बार साड़ी पहनकर हम ही नहीं संभल पाते तो हम दूसरो को कैसे संभालेंगे। यदि कोई आपात स्थिति आती है तो इस पोशाक में हमारी क्रू अपने से पहले यात्री को रख सकती हैं।'
वहीं पोशाक को लेकर हुए विवाद पर श्वेता कहती हैं, 'हमारी ड्रेस हमें पूरी तरह से ढंक रही है। ये हमारे काम की ज़रूरत के हिसाब से बनाई गई है। साड़ी पहनकर ये काम करना बहुत मुश्किल होगा।' वैशाली जायसवाल कहती हैं कि भारतीय समाज का एक वर्ग ऐसा है जिसे महिलाओं पर टिप्पणी करनी ही है।
वो कहती हैं, 'अगर हमने साड़ी भी पहनी होती तब भी वो किसी न किसी बात पर टिप्पणी करते ही। समस्या हमारी ड्रेस में नहीं है बल्कि ऐसे लोगों की सोच में है।'
बेवजह परेशान करते यात्री
तेजस एक्सप्रेस में हर सीट के ऊपर एक कॉल बटन है जिसे दबाकर होस्टेस को बुलाया जा सकता है। लेकिन कई बार लोग बेवजह ही ये कॉल बटन दबा देते हैं। संध्या कहती हैं, 'कई यात्री बस होस्टेस को देखना चाहते हैं।'
सुंबुल फ़ातिमा कहती हैं कि कई बार यात्री बेवजह कॉल बटन दबाकर उन्हें बुलाते हैं और जब वो पहुंचती हैं तो कहते हैं कि हम देख रहे थे कि ये काम करता है या नहीं। मैनेजर शिवांगी कहती हैं, 'एक कोच में 70 यात्री होते हैं जबकि 2 क्रू मेंबर होती हैं। बेवजह घंटी बजाए जाने से उन यात्रियों को सुविधा देने में दिक्कत होती है जिन्हें वास्तव में ज़रूरत होती है।'
संध्या बताती हैं कि कई यात्री ऐसे भी आते हैं, जो ग़लत निग़ाहों से देखते हैं या टिप्पणी करते हैं। वे कहती हैं, 'ऐसी परिस्थिति में हमें संयम बनाए रखना होता है। हमें हर बार ये साबित करना है कि हम लड़कों से कम नहीं है।'
वीडियो बनाने से होती है परेशानी
ट्रेन होस्टेस के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण उन लोगों का व्यवहार है, जो बिना पूछे तस्वीरें लेते हैं या वीडियो बनाते हैं। सुंबुल कहती हैं, 'कई यात्री कॉल करके बुलाते हैं और पहले से ही कैमरा चालू रखते हैं। हम उन्हें सर्व कर रहे होते हैं और वो हमारा वीडियो बना रहे होते हैं। ये हमें अच्छा नहीं लगता लेकिन हम कुछ कह नहीं पाते।'
दो दिन पहले ही क्रू में शामिल हुई सिमरन कहती हैं कि ये लड़कियों के पास अपने आप को साबित करने का एक बहुत अच्छा मौका है लेकिन कई बार यात्रियों का व्यवहार असहज कर देता है। वो कहती हैं, 'बिना पूछे हमारे वीडियो बनाए जाते हैं, जो वायरल हो सकते हैं और परिवार के सामने हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।'
संध्या को ऐसे वीडियो बनाने वाले से बहुत दिक्कत है। वो कहती हैं, 'लोग फ़ेसबुक पर लाइव कर देते हैं, टिकटॉक के लिए वीडियो बनाते हैं, बिना हमारी मर्ज़ी के यूट्यूब पर पोस्ट कर देते हैं।' ट्रेन मैनेजर शुभांगी कहती है, 'ये एक नई ट्रेन है। लोगों के अंदर ट्रेन के साथ और हमारी होस्टेस के साथ तस्वीरों खींचने का बहुत उत्साह है। लेकिन इससे हमारी होस्टेस असहज होती हैं।'
हमारी मेहनत को देखना चाहिए...
शुभांगी कहती हैं, 'क्रू मेंबर सर्व कर रही होती हैं और लोग वीडियो बना रहे होते हैं। इससे उनके लिए काम करना भी मुश्किल हो जाता है।' वो कहती हैं, 'कई लड़कियां ऐसे परिवारों से हैं, जो उनके इस तरह के वीडियो बनाए जाने से असहज हैं। वो अपना काम कर रही हैं, उनकी भी प्राइवेसी है जिसका ख़याल रखा जाना चाहिए।'
सुंबुल कहती हैं, 'लोगों को हमें नहीं हमारे काम और हमारी मेहनत को देखना चाहिए।' संध्या यादव कहती हैं, 'कई यात्री मना करने के बावजूद वीडियो बनाते रहते हैं। उनका व्यवहार ऐसा होता है, जैसे उन्होंने हमें ख़रीद लिया हो।' वो कहती हैं, 'हमारी तस्वीर लेने से पहले हमारी मर्ज़ी पूछी जानी चाहिए। लड़कियां चाहें केबिन क्रू में हों या कॉलेज में, उन्हें सम्मान मिलना चाहिए।'
टिप देने की कोशिश करते हैं यात्री
कई होस्टेस का कहना है कि यात्री उन्हें टिप देने की कोशिश करते हैं, ना लेने पर ज़बरदस्ती हाथ में पैसे रख देते हैं। सुंबुल कहती हैं, 'कई यात्री कॉल बटन दबाकर हमें बुलाते हैं और टिप थमा देते हैं। न ही हमें टिप लेना अच्छा लगता है और न ही हमें इसकी अनुमति है।'
कुछ होस्टेस का ये भी कहना है कि कई बार यात्री अपना नंबर देकर दोस्ती करने तक का प्रस्ताव दे देते हैं। क्रू मेंबर शैला मिश्रा कहती हैं, 'कई लोग अपना नंबर और दोस्ती का प्रस्ताव देने की कोशिश करते हैं। वो सोशल मीडिया पर भी स्टॉक करते हैं। यात्रियों को समझना चाहिए कि ये सब हमारे काम का हिस्सा नहीं है।'
शुभांगी कहती हैं, 'क्रू मेंबर का यात्री से संबंध सिर्फ़ यात्रा के दौरान तक का ही है। कई बार पैसेंजर नंबर मांगते हैं। क्रू मेंबर को अपना नंबर देने की इजाज़त नहीं है।' वो कहती हैं, 'हमारी क्रू मेंबर बिना यात्री के सम्मान को ठेस पहुंचाए ऐसी स्थिति से निबटने के लिए प्रशिक्षित हैं।'
निजीकरण का प्रयोग
तेजस एक्सप्रेस आईआरसीटीसी का एक प्रयोग है, जो सफल हुआ तो अन्य रूट पर भी दोहराया जाएगा। इसी तर्ज पर मुंबई और अहमदाबाद के बीच ट्रेन चलाए जाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। तेजस का ये सफ़र कहां तक जाएगा, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा। लेकिन इसकी क्रू मेंबर्स ने यहां तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफ़र तय किया है।
संध्या यादव कहती हैं, 'हम लड़कियों की एक पीढ़ी को प्रेरित करना चाहती हैं। हमें साबित करना है कि लड़कियां बेहतर ढंग से ज़िम्मेदारी उठा सकती हैं।' वो कहती हैं, 'हम चाहते हैं कि और लड़कियां भी आगे आएं। ये छोटा कोई काम नहीं है, ये बहुत ज़िम्मेदारी का काम है। लड़कियों को उनके सपने पूरे करने के मौके दिए जाने चाहिए। मौका मिलने पर हमारे जैसे छोटे घरों की लड़कियों भी आगे बढ़ सकती हैं।'
कितना वेतन?
ये लड़कियां 1 दिन में 18 घंटे काम करती हैं और फिर अगले दिन आराम करती हैं। अभी ये सभी 6 महीने के प्रोबेशन पीरियड पर हैं जिसके बाद उन्हें कॉन्ट्रेक्ट दे दिया जाएगा। वेतन के सवाल पर वे कहती हैं, 'जो वेतन अभी हमें मिल रहा है, वो बहुत ज़्यादा तो नहीं है लेकिन हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी है। हम अपने सपने जी पा रहे हैं, ये हमारी असली कमाई है।'
कई का ये भी कहना था कि अभी उन्हें वेतन के बारे में जानकारी नहीं दी गई है। वो महीना ख़त्म होने और सैलरी मिलने का इंतज़ार कर रही हैं। (Photo Corstey : Twitter)