Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

यूक्रेन पर रूस के हमले की आशंका: यूरोप और युद्ध के बीच कितना फ़ासला है?

Advertiesment
हमें फॉलो करें Russia

BBC Hindi

, शुक्रवार, 21 जनवरी 2022 (07:47 IST)
कात्या एडलर, बीबीसी न्यूज़
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को कहा कि उन्हें लगता है कि उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में 'दखल देंगे' लेकिन एक 'मुकम्मल जंग' से बचना चाहेंगे।
 
इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने चेतावनी दी है कि रूस 'जल्द ही' यूक्रेन पर हमला कर सकता है।
एंटनी ब्लिंकेन की शुक्रवार को रूसी विदेशी मंत्री के साथ मुलाकात होनी है। उधर, यूक्रेन की सीमा पर रूस ने बड़े पैमाने पर सेनिकों की तैनाती कर रखी है।
 
मैंने जब इस बारे में यूरोपीय संघ के एक सीनियर डिप्लोमैट से जब बात की तो उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "पूर्व युगोस्लाविया के विघटन के बाद यूरोप पहली बार जंग के मुहाने पर खड़ा है।"
 
दूसरी तरफ़, ब्रसेल्स में माहौल तनावपूर्ण है। इस बात का डर सचमुच महसूस किया जाने लगा है कि यूरोप बीते कई दशकों में सबसे ख़राब सुरक्षा संकट की तरफ़ बढ़ता दिख रहा है।
 
यूरोपीय संघ की चेतावनी
लेकिन चिंता केवल यूक्रेन को लेकर रूस के साथ बड़े पैमाने पर और लंबी लड़ाई की वजह से ही नहीं है। यूरोप में कम ही लोग इस बात पर यकीन कर रहे हैं कि रूस के पास ज़रूरी सैनिक ताक़त है।
 
काफ़ी कुछ इस अभियान पर होने वाले खर्च और रूस को घरेलू मोर्चे पर इसके लिए मिल रहे समर्थन पर भी निर्भर करेगा।
 
ये सच है कि यूरोपीय संघ ने रूस को चेतावनी दी है कि अगर उसने अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर मिलिट्री कार्रवाई की तो उसके 'गंभीर नतीज़े' भुगतने पड़ सकते हैं।
 
जर्मनी के नए विदेश मंत्री अन्नालेना बाएरबॉक पिछले दिनों कीव और मॉस्को में थे। सोमवार को उन्होंने ठीक इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था।
 
webdunia
पारंपरिक युद्ध की संभावना
स्वीडन ने पिछले हफ़्ते अपने सैकड़ों सिपाहियों को बाल्टिक सागर में स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गोटलैंड द्वीप पर तैनात कर दिया था। डेनमार्क ने भी कुछ दिनों पहले इस इलाके में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है।
 
रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव ने फिनलैंड और स्वीडन दोनों ही मुल्कों में इस बहस को भी फिर से हवा दे दी है कि क्या उन्हें फिलहाल नेटो में शामिल होना चाहिए या नहीं?
 
लेकिन पश्चिमी देशों, अमेरिका, नेटो, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की प्रमुख चिंता यूक्रेन को लेकर किसी पारंपरिक युद्ध की संभावना को लेकर नहीं है बल्कि उन्हें इस बात की फ़िक्र है कि रूस यूरोप को बांटने और अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है जिससे महाद्वीप का सत्ता संतुलन क्रेमलिन के पक्ष में किया जा सके।
 
पोलैंड के प्रधानमंत्री मैतिउस्ज़ मोरावीकी ने पिछले साल के आख़िर में रूस के इरादों पर मुझसे कहा था कि 'पश्चिमी देशों को अपने रणनीतिक आलस्य से जागना' होगा। यूरोपीय संघ के दूसरे देश अब ये कहेंगे कि वे जाग गए हैं और सामने खड़ी समस्याओं को वो देख सकते हैं।
 
लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, विदेश नीति के मुद्दों पर जब बात आती है तो यूरोपीय संघ के नेता इस बात पर सहमति नहीं बना पाते कि आख़िर क्या फ़ैसला लिया जाए और क्या कार्रवाई की जाए।
 
दूसरी तरफ़ रूस ने यूक्रेन से लगने वाली सीमा पर भले ही बड़े पैमाने पर सैनिकों की तैनाती कर दी हो लेकिन अभी भी वो इस बात से इनकार कर रहा है कि उसकी योजना सैन्य हमले की है। लेकिन रूस ने नेटो को अपनी सुरक्षा मांगों की एक लिस्ट भेजी है।
 
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 'नेटो पर क्षेत्रीय सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करने का' खुलेआम आरोप लगाते हुए कहा कि दूसरी बातों के अलावा नेटो यूक्रेन और सोवित संघ के पूर्व घटक दशों को इस संगठन का सदस्य बनने से रोके।
 
नेटो ने रूस की मांग को सख़्ती से इनकार कर दिया। हालांकि पिछले हफ़्ते रूस और नेटो के बीच तीन बार बैठकें हो चुकी हैं लेकिन मतभेद सुलझाने के लिए आम राय नहीं बनाई जा सकी।
 
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आगे का इरादा क्या है? इस पर अभी तस्वीर साफ़ नहीं है।
 
लेकिन पश्चिमी देशों का मानना है कि रूस ने यूक्रेन के मुद्दे पर इस तरह का रुख अपना लिया है कि बिना कुछ हासिल किए, उसका कदम वापस खींचना मुश्किल लगता है।
 
उधर, बाइडन प्रशासन इस बात का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है कि यूरोपीय संघ रूस पर संभावित प्रतिबंधों के मामले में मजबूत रुख अपनाए।
 
काफी कुछ रूस पर भी निर्भर करता है कि वो आगे किस तरह से कदम बढ़ाता है। यूक्रेन में सीधी सैनिक कार्रवाई, साइबर हमले, फ़ेक न्यूज़ कैम्पेन या फिर हाइब्रिड हमलों जैसा कुछ जिसमें सारे विकल्प आजमा लिए जाएं।
 
प्रतिबंधों पर राज़ी हो सकता है यूरोपीय संघ
24 जनवरी को यूरोपीय संघ के देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक है। आशावादी रुख रखने वाले ये मान रहे हैं कि इस बैठक में रूस पर कई प्रतिबंध लगाने पर सहमति बन सकती है। हालांकि, ये प्रतिबंध लग ही जाएंगे, ये बात पक्के तौर पर नहीं की जा सकती है।
 
आशंका ये भी है कि यूरोपीय संघ में शामिल कई देश इन प्रतिबंधों को लगाने पर राज़ी नहीं होंगे, क्योंकि इसकी कीमत इन देशों की अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ सकती है। रूस से होने वाली गैस आपूर्ति को लेकर भी यूरोपीय संघ के देशों में चिंता है, खासतौर पर ऐसे समय में जब यूरोपीय देशों में सर्दियों के मौसम के दौरान पहले ही गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं।
 
अमेरिका का कहना है कि वो ऐसे उपाय खोज रहा है जिससे ऊर्जा की आपूर्ति पर असर को कम-से-कम किया जा सके।
 
अमेरिका चाहता है कि प्रतिबंधों को लेकर यूरोपीय संघ के देश जल्दी ही ठोस रुख अपनाएं। हालांकि, विदेश नीति के मामले में किसी भी आख़िरी फ़ैसले तक पहुंचने से पहले सभी सदस्य देशों की मंज़ूरी मिलना भी ज़रूरी है।
 
ब्रिटेन की प्रतिबद्धता
यदि ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच रिश्ते बेहतर होते, तो ये उम्मीद की जा सकती थी कि लंदन, जर्मनी और फ्रांस के बीच इस समय रूस पर कार्रवाई के लिए एक साझा योजना बनाने को लेकर ज्यादा कूटनीतिक प्रयास हो रहे होते।
 
ब्रसेल्स में मौजूद राजनयिकों का मानना है कि ब्रिटेन फिलहाल घरेलू राजनीतिक विवादों में इस कदर उलझा हुआ है कि वैश्विक राजनीति से जुड़े विषय उसकी प्राथमिकताओं की सूची में नीचे हैं।
 
हालांकि, इन लोगों का यह भी मानना है कि नेटो का सदस्य रहते हुए, ब्रिटेन, रूस-यूक्रेन मसले पर सहयोग देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
 
सोमवार को, ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने एलान किया था कि उनका देश आत्मरक्षा के लिए यूक्रेन को कम दूरी की एंटी-टैंक मिसाइलें भेजेगा। उन्होंने कहा था कि ब्रिटिश सैनिकों की एक छोटी सी टीम यूक्रेन को प्रशिक्षण भी देगी। पूर्व में, वॉलेस ने यूक्रेन पर हमला करने की स्थिति में मॉस्को को 'परिणाम भुगतने' की चेतावनी भी दी थी।
 
वहीं, अमेरिका का कहना है कि अब ज़ाया करने के लिए वक्त नहीं बचा है। अमेरिका का कहना है कि रूस यूक्रेन पर चढ़ाई करने के लिए 'फाल्स फ्लैग' ऑपरेशन का सहारा ले सकता है, जिसका अर्थ है कि मॉस्को किसी बहाने से यूक्रेन पर हमला बोल देगा और इसके लिए उसे जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, क्रेमलिन ने वॉशिंगटन के इन दावों को खारिज कर दिया है।
 
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि मॉस्को साल 2014 में अपनाए उसी पैटर्न को दोहरा रहा है, जब उसने क्रीमिया पर कब्जा करने के लिए अपनी सेना भेजने से पहले कीव पर आरोप लगाने शुरू कर दिए थे।
 
क्रीमिया में रूसी भाषी लोग बहुमत में हैं। क्रीमिया को रूस में शामिल करने के लिए जनमत संग्रह भी कराया गया था, जिसे यूक्रेन और पश्चिमी देश अवैध मानते हैं। इस दौरान छिड़े संघर्ष में हज़ारों लोगों की जान गई थी। फिलहाल पश्चिमी देश आगे उठाए जाने वाले कदमों की तैयारी में जुटे हुए हैं।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

यूपी में क्या एक बार फिर मंडल बनाम कमंडल की राजनीति लौट रही है