असद रिज़वी, बीबीसी हिन्दी के लिए
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद से प्रशासनिक फेरबदल शुरू हो गया। योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बड़ा फेरबदल 25 जून को किया गया, जब 12 ज़िलों के ज़िलाधिकारियों को (डीएम) को एक साथ बदल दिया गया। इसके अलावा पुलिस विभाग समेत लगभग सभी विभागों में भी ताबड़तोड़ तबादले हो रहे हैं।
इसी 25 जून को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के आठ अधिकारियों के तबादले हुए। इस फेरबदल में सात ज़िलों को नए एसपी मिले।
राजनीतिक विश्लेषक प्रदेश में विभिन्न विभागों में हो रहे प्रशासनिक फेरबदल को बीजेपी का लोकसभा चुनावों ख़राब प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। उनका मानना है कि जिन लोकसभा सीटों पर बीजेपी को हार मिली है, अधिकतर वहीं के अधिकारियों का तबादला हुआ है।
जिन 12 ज़िलों में ज़िलाधिकारी बदले गए, उनमें से 11 में बीजेपी चुनाव हारी है। इन सात ज़िलों में, जहाँ नए पुलिस कप्तान नियुक्त हुए, उसमें पांच जगह बीजेपी चुनाव हारी थी।
फेरबदल का 'चुनाव कनेक्शन'
सीतापुर, सहारनपुर, बस्ती, संभल, लखीमपुर खीरी, बांदा, मुरादाबाद, कौशांबी, चित्रकूट, हाथरस और श्रावस्ती के डीएम बदले गए हैं। इसमें केवल हाथरस में बीजेपी चुनाव जीती है। सीतापुर और सहारनपुर में कांग्रेस और बाक़ी सभी जगह संभल, लखीमपुर खीरी, बांदा, मुरादाबाद, कौशांबी, चित्रकूट, और श्रावस्ती में सपा चुनाव जीती है।
इसके अलावा मेरठ, आजमगढ़, बरेली, सहारनपुर, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, चंदौली को नए पुलिस कप्तान मिले हैं। इसमें भी पांच जगह, आजमगढ़, सहारनपुर, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, चंदौली में बीजेपी चुनाव में नाकाम रही थी।
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दो दशक से अधिक से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नावेद शिकोह कहते हैं कि जिन ज़िलों में बीजेपी चुनाव हारी, वहां के आधिकारी बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की आवाज़ को अनदेखा कर रहे थे।
वह मानते हैं कि अब डीएम और पुलिस कप्तान हटाकर बीजेपी सरकार कार्यकर्ताओं और नेताओं को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही है।
शिकोह कहते हैं कि ज़मीन पर सक्रिय बीजेपी नेता लगातार इन अधिकारियों की शिकायतें पार्टी के आलाकमान से करते रहे, लेकिन उनकी बात पर तवज्जो नहीं दी जाती थी।
उनके अनुसार, इसकी वजह यह थी कि बीजेपी को भरोसा था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व, चुनाव जीतने के लिए काफ़ी है।
बीजेपी क्या कह रही है?
हालांकि, प्रदेश में हो रहे इन प्रशासनिक फेरबदल को बीजेपी नेता एक समान्य प्रक्रिया बताते हैं। बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यह फेरबदल समान्य है और हमारी सरकार में प्रत्येक वर्ष जून माह में तबादले किए जाते हैं। वह कहते हैं, तबादलों से अधिकारियों में नई ऊर्जा आती है और वह बेहतर काम करते हैं।
त्रिपाठी के अनुसार, इस समय काफ़ी समय से एक जगह पर रुके अधिकारियों को हटाया जा रहा है ताकि सरकारी कार्य प्रणाली में और पारदर्शिता लाई जा सके।
चुनावों के नतीजे बीजेपी की उम्मीद से बिल्कुल विपरीत आए थे। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में आधे से अधिक 43 सीटों पर इंडिया गठबंधन को जीत मिली है।
बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को केवल 36 सीटें मिलीं। इसमे बीजेपी की अकेले केवल 33 सीटें ही हैं, जो 2019 में उसकी 62 सीटों मुक़ाबले लगभग आधी हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को नज़रंदाज़ किया है, जिसकी वजह से न केवल पार्टी को प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा बल्कि वह बहुमत हासिल करने में असफल रही है।
कहां के अधिकारी बदले जा रहे हैं?
अमर उजाला के पूर्व संपादक कुमार भवेश चन्द्र, कहते हैं कि प्रदेश में अधिकारियों के रोज़ हो रहे तबादलों को चुनावों में बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा है।
वह कहते हैं, तबादला सूची से स्पष्ट होता है कि अधिकतर वहीं के अधिकारी बदले जा रहे हैं, जहाँ बीजेपी चुनाव हारी है।
भवेश चन्द्र मानते हैं, ''केवल कार्यकर्ताओं की नहीं बल्कि मंत्रियों की भी सुनवाई नहीं हो रही थी, अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे थे। योगी सरकार को लगता था कि राम मंदिर के उद्घाटन के बाद “हिंदुत्व” की लहर चलेगी और बीजेपी आसानी से चुनाव जीत जाएगी। इसलिए सरकार कार्यकर्ताओं और मंत्रियों की शिकायतों को लेकर कभी गंभीर नहीं हुई।''
भवेश चन्द्र कहते हैं, ''नतीजे नकारात्मक आने के बाद से बीजेपी में प्रदेश में क़रीब 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों से पहले डर है। लोकसभा चुनावों के बाद अगर उपचुनावों में हार होती है तो इससे 2027 विधानसभा का खेल भी बिगड़ सकता है। हार की समीक्षा के बाद ताबड़तोड़ अधिकारी बदले जा रहे हैं ताकि नए अधिकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की सुनें और उनका मनोबल बढ़ सके।''
तबादला होना कोई नई बात नहीं- पूर्व डीजीपी
हालांकि, प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (पूर्व डीजीपी) विक्रम सिंह कहते हैं कि चुनावों के बाद तबादला होना कोई नहीं बात नहीं है, ऐसा सभी सरकारें करती हैं।
वह कहते हैं कि वह 1980 से देख रहे हैं कि हर चुनाव के नतीजों के बाद प्रशासनिक बदलाव होते हैं।
हालांकि, पूर्व डीजीपी कहते हैं कि कभी भी ईमानदार अधिकारियों और सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय बन नहीं पाता है। इसका कारण वो बताते हैं कि कार्यकर्ताओं की इतनी अधिक मांगें और उम्मीद होती हैं, जिनको पूरा करना किसी भी अधिकारी के लिए संभव नहीं होता है।
पूर्व मुख्य सचिव को नहीं मिला सेवा विस्तार
यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा का सेवा विस्तार नहीं मिलना भी, इसी नज़र से देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि 1984 बैच के आईएएस मिश्ना को 2021 से अब तक तीन बार सेवा विस्तार मिला था।
लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले के रहने वाले मिश्ना को चौथी बार सेवा विस्तार नहीं मिला और 30 जून, 2024 को वह सेवानिवृत्त हो गए।
विपक्ष का कहना है कि मिश्ना के गृह ज़िले मऊ (घोसी) और उसके आस-पास के ज़िलों गाज़ीपुर और आज़मगढ़ में मिली हार से नाराज़ बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने मिश्ना की छुट्टी कर दी।
मऊ, घोसी और आज़मगढ़ तीनों सीटों पर इंडिया गठबंधन (समाजवादी पार्टी) के उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है। मऊ (घोसी) सीट से राजीव राय, गाज़ीपुर से अफ़ज़ाल अंसारी और आज़मगढ़ में धर्मेंद्र यादव की जीत हुई।
विपक्ष क्या कह रहा है?
जहां बीजेपी इस प्रशासनिक फेरबदल को एक समान्य प्रक्रिया का हिस्सा बता रही है, वहीं विपक्ष इसको अधिकारियों का उत्पीड़न बता रहा है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि बीजेपी जिन लोकसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन से हारी है, वहां के अधिकारियों को प्रताड़ित कर रही है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के अनुसार मिश्रा, दिल्ली में बैठे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के क़रीबी नौकरशाहों में से एक थे। लेकिन उत्तर प्रदेश विशेषकर पूर्वांचल में मिली हार से बीजेपी नेतृत्व का मिश्ना से मोहभंग हो गया और उनको सेवा विस्तार नहीं मिला।
सपा प्रवक्ता और पूर्व विधानमंडल सदस्य सुनील कुमार कहते हैं कि तबादला सूची से साफ़ होता है कि अधिकतर उन्हीं ज़िलों के डीएम और कप्तान बदले गए हैं, जहाँ बीजेपी हारी है।
उन्होंने ने कहा कि हार के बाद अधिकारियों को बदलने की परंपरा ग़लत है। पूर्व विधायक सुनील कुमार कहते हैं कि बीजेपी को लगता है, जिन ज़िलों में वह हारी है, वहां तैनात अधिकारियों को प्रताड़ित करना चाहिए और ये तबादले इसीलिए हो रहे हैं।
पूर्व आईएस अधिकारी अनीस अंसारी कहते हैं कि चुनावों के बाद अफसरों को हटाया जाता है, क्योंकि राजनीतिक दलों को लगता है कि प्रशासन से सहयोग न मिलने से उनकी हार हुई है। वह कहते हैं कि सबसे अधिक तबादले डीएम और पुलिस कप्तान के होते हैं।
अंसारी कहते हैं कि अधिकारियों पर सत्ताधारी दल का दबाव ज़रूर होता है लेकिन चुनावों में कोई मदद करना अधिकारियों के हाथ में नहीं होता। इसलिए सत्ताधारी दल नाराज़ होकर अक्सर तबादले कर देते हैं।