सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रोद्योगिकी और क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार, भारत में सोशल मीडिया कंपनियों ने दोहरे मापदंड अपना रखे हैं। उनका कहना है कि जब अमेरिका के कैपिटल हिल पर हिंसा होती है तो सोशल मीडिया वहाँ के राष्ट्रपति तक के अकाउंट को प्रतिबंधित कर देती है।
गुरुवार को राज्यसभा में रविशंकर प्रसाद ने कहा, "कैपिटल हिल की घटना के बाद ट्विटर की ओर से की गई कार्रवाई का समर्थन करते हैं। आश्चर्य है कि लाल क़िले की हिंसा पर उनका स्टैंड अलग है।"
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान रविशंकर प्रसाद ने कहा अगर सोशल मीडिया को ग़लत जानकारी और झूठी खबरें फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा तो सरकार क़ानूनी कार्रवाई ज़रूर करेगी।
गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने 'ट्रैक्टर परेड' का आयोजन किया था, जिस दौरान राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक वारदातें देखने को मिलीं। लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा लाल क़िले पर हुई हिंसा की हो रही है जिसके बाद सरकार ने ट्विटर को लगभग 1100 अकाउंट को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था।
सरकार का दावा है कि इनमें से ज़्यादातर अकाउंट खालिस्तान समर्थकों के हैं या फिर कुछ ऐसे लोगों के भी हैं जो कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन या फिर 26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं और ग़लत खबरें और सूचनाएं प्रसारित कर रहे हैं।
कॉर्पोरेट लॉ बनाम संविधान
सरकार के निर्देश के बाद ट्विटर ने कुछ अकाउंट ब्लॉक तो कर दिए, मगर उसने बाद में इनमें से कई अकाउंट्स को फिर से बहाल कर दिया।
इस बारे में ट्विटर की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि उसने मीडिया से जुड़े लोग, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के अकाउंट्स पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
बयान के मुताबिक़, "हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते रहेंगे और हम भारतीय क़ानून के अनुसार इसका रास्ता भी निकाल रहे हैं।"
लेकिन सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है, "आप जब एक प्लेटफ़ॉर्म बनाते हैं तो आप स्वयं एक क़ानून बनाते हैं जिससे ये तय किया जा सके कि क्या सही है और क्या ग़लत। अगर इसमें भारत के संविधान और क़ानून की कोई जगह नहीं होगी तो ये नहीं चलेगा और कार्रवाई होगी।"
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने हाल ही में अपने एक लेख में कहा है कि आजकल विदेशों के समाचार पत्र भारत में आंदोलन कर रहे किसानों पर ज्यादती, इंटरनेट पर पाबंदी और पत्रकारों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के मामलों से भरे पड़े हैं। उनका कहना है कि इससे भी तो देश की छवि ख़राब हो रही है।
ट्विटर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बेंगलुरु से बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्या कहते हैं कि ऐसा लग रहा है ट्विटर ख़ुद को भारत के क़ानून से ऊपर समझ रहा है। वो कहते हैं कि ट्विटर अपनी सुविधा अनुसार चुन रहा है कि कौन सा क़ानून वो मानेगा और कौन सा नहीं।
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष कहते हैं कि देश 'कॉरपोरेट लॉ' के हिसाब से नहीं बल्कि संविधान द्वारा बनाए गए क़ानून के हिसाब से चलेगा।
प्रतिक्रिया
इस ताज़ा विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफ़ी प्रतिक्रया देखने को मिल रही है। लोग इस विवाद को लेकर सरकार के पक्ष और विरोध में पोस्ट कर रहे हैं। विवाद को लेकर कई मीम भी सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं जिनमें ट्विटर की नीली चिड़िया को या तो पिंजरे में बंद दिखाया जा रहा है या उसके पर कटे हुए दिखाए जा रहे हैं।
बीबीसी से बात करते हुए साइबर क़ानून के विशेषज्ञ विराग गुप्ता कहते हैं कि ट्विटर के पास कोई चारा नहीं है। उसे भारत के क़ानून के हिसाब से ही चलना पड़ेगा। विराग गुप्ता के अनुसार भारत में ट्विटर की कार्यशैली पूरी तरह से पारदर्शी भी नहीं है है।
वो कहते हैं, "अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ ट्विटर ने ख़ुद ही कार्रवाई की जबकि भारत में सरकार को आदेश जारी करना पड़ा। लेकिन ट्विटर ने क्या किया - पहले अकाउंट्स सस्पेंड किए फिर उनकी बहाली कर दी।"
विराग गुप्ता के अनुसार इस विवाद ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। वो कहते हैं कि संविधान के अनुछेद 14 के हिसाब से सरकार को सभी सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए जिन पर आपत्तिजनक सामग्री धड़ल्ले से प्रसारित होती रही या हो रही है।
उनका ये भी कहना है कि विदेश से संचालित होने वाले सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म ने भारत के लिए क़ानूनी रूप से जवाबदेह अपने किसी अधिकारी को नहीं बनाया है। सरकार इसको लेकर भी अभी तक क़ानून नहीं बना पाई है।
वो कहते हैं कि अगर किसी पोस्ट पर सरकार को आपत्ति होती है तो फिर किसी 'डेज़िगनेटेड ऑफिसर' के नहीं होने की वजह से सरकार, पुलिस या अन्य अधिकारियों को अमेरिका और आयरलैंड संपर्क करना पड़ता है।
सोशल मीडिया का 'दुरुपयोग'
क़ानून की चर्चा करते हुए साइबर क़ानून के जानकार रक्षित टंडन कहते हैं कि "आई-टी एक्ट' में वर्ष 2008 के बाद से कोई संशोधन हुआ ही नहीं है। यही वजह है कि अब राज्य सरकारें मजबूर होकर ख़ुद अलग से क़ानून बनाने पर मजबूर हो रही हैं। उन्होंने उत्तराखंड सरकार के हाल के फ़ैसले का उदहारण भी दिया।"
टंडन ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा कि ये सही है कि सोशल मीडिया के ज़रिए समाज में लोगों के बीच नफ़रत भड़काने वाली या फ़र्ज़ी पोस्ट जम कर प्रसारित की जा रही हैं। इन्हीं सब पर नियंत्रण करने के लिए सरकार को इंटरनेट बंद करना पड़ता है तो सवाल उठने लगते हैं।
रविशंकर प्रसाद ने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया ने आम आदमी की अभिव्यक्ति को और ज्यादा बल प्रदान किया है मगर वो ये भी कहते हैं कि इसका दुरुपयोग भी किया जा रहा है।
वहीं कांग्रेस के नेता और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू ने विवाद पर 'ट्विटर सेंसरशिप' के हैशटैग के साथ लिखा, "क्या लिखूं, कलम जकड़ में हैं, कैसे लिखूं, हाथ तानाशाह की पकड़ में है।"
विपक्ष के नेताओं का आरोप है कि सरकार जो कर रही है वो सिर्फ़ अपनी आलोचना को रोकने के लिए कर रही है और उसके निशाने पर वो लोग हैं जो सरकार की कार्यशैली का विरोध करते हैं। कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि अगर क़ानून के हिसाब से कार्रवाई होती है तो ग़लत सूचनाएं प्रसारित करने के आरोप में सत्ता पक्ष के साथ नज़र आने वाले कई लोगों के अकाउंट भी सस्पेंड हो जाएंगे।