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ट्रंप और जेडी वेंस के सत्ता में आने की संभावना से जिन देशों को है डर

हमें फॉलो करें ट्रंप और जेडी वेंस के सत्ता में आने की संभावना से जिन देशों को है डर

BBC Hindi

, गुरुवार, 18 जुलाई 2024 (07:58 IST)
जेस पार्कर और जेम्स वाटरहाउस, बर्लिन और कीएव से बीबीसी संवाददाता
डोनाल्ड ट्रंप अगर फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो यूरोप पर इसका क्या असर पड़ेगा? अमेरिका में संभावित सत्ता परिवर्तन को लेकर यूरोप के नेता और कूटनीतिज्ञ पहले से ही इस चुनौती से निपटने की तैयारी कर रहे हैं।
 
डोनाल्ड ट्रंप ने उपराष्ट्रपति के लिए ओहायो से सीनेटर जेडी वेंस को चुना तो यूरोप को एक स्पष्ट संदेश गया कि ट्रंप का रुख़ राष्ट्रपति बनने के बाद क्या होगा। यूक्रेन में रूसी हमले, सुरक्षा चिंताएं और कारोबार का मुद्दा यूरोप के लिए अहम है। इन मुद्दों पर ट्रंप का रुख़ राष्ट्रपति बनने के बाद क्या होगा, यूरोप की मुख्य चिंता है।
 
जेडी वेंस यूक्रेन को दी जा रही आर्थिक मदद की आलोचना करने के लिए जाने जाते हैं। इस साल म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि यूरोप को ये समझना चाहिए कि अमेरिका को "अपना ध्यान" पूर्वी एशिया की ओर केंद्रित करना होगा। उन्होंने कहा था, "अमेरिका की सुरक्षा नीति से यूरोप की सुरक्षा कमज़ोर हुई है।''
 
जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ शॉल्त्स की पार्टी के एक वरिष्ठ सीनेटर और जर्मन संसद में सोशल डेमोक्रेट्स की विदेश नीति प्रमुख निल्स श्मिड ने बीबीसी को बताया कि उन्हें भरोसा है कि रिपब्लिकन पार्टी की सरकार बनने के बाद भी अमेरिका नेटो में रहेगा, भले ही जेडी वेंस "अधिक अलग-थलग" रुख़ अपनाए रहें और डोनाल्ड ट्रंप "अप्रत्याशित" बने रहें।
 
हालांकि उन्होंने ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार के दौर में नए ट्रेड वॉर शुरू होने की चेतावनी दी है।
 
यूरोप को क्यों है डर?
यूरोपीय संघ के एक वरिष्ठ कूतनीतिज्ञ ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप चार साल राष्ट्रपति रह चुके हैं, ऐसे में कोई भी भोला नहीं है। उन्होंने कहा, ट्रंप के एक बार फिर सत्ता में आने का क्या मतलब होगा ये हम समझते हैं। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उनके साथ उपराष्ट्रपति के तौर पर कौन हैं।
 
उन्होंने यूरोपीय संघ की तुलना तूफ़ान की तैयारी कर रही एक नाव के साथ की और नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा कि वो चाहे जो भी क़दम उठा लें, उनके लिए आने वाले वक़्त में स्थिति कठिन ही रहने वाली है।
 
बीते दो सालों से युद्ध की मार झेल रहे यूक्रेन का सबसे बड़ा सहयोगी अमेरिका है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इसी सप्ताह कहा था, 'ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का मुझे डर नहीं है, मुझे उम्मीद है कि हम मिलकर काम करेंगे।'
 
ज़ेलेंस्की ने ये भी कहा कि वो मानते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी के अधिकांश नेता यूक्रेन और इसके नागरिकों का समर्थन करते हैं।
 
यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन साझे दोस्त हैं। बोरिस जॉनसन यूक्रेन के लिए आर्थिक मदद का समर्थन करते हैं। हाल ही में जॉनसन ने रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाक़ात की थी।
 
इस मुलाक़ात के बाद उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा था, उन्हें इस बात में कोई शक़ नहीं है कि ट्रंप उस देश का समर्थन और गणतंत्र की रक्षा करने के मामले में मज़बूत और निर्णायक फ़ैसले लेंगे। लेकिन ये भावना अगर सच भी है तो भी ज़रूरी नहीं कि ये वेंस पर भी लागू हो।
 
यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के 'सैन्य अभियान' के शुरू होने के कुछ दिन पहले एक पॉडकास्ट में वेंस ने कहा था कि उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि यूक्रेन में क्या होता है। यूक्रेन को दी गई 60 अरब डॉलर के अमेरिका की सैन्य सहायता पैकेज में देरी में वेंस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
 
यूक्रेन को लेकर ट्रंप का रुख़ क्या रहेगा?
कीएव में मौजूद थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ़ वर्ल्ड पॉलिसी के कार्यकारी निदेशक येवहेन महदा कहते हैं, 'हमारे लिए ज़रूरी है कि हम कोशिश करें और उन्हें समझाएं।'
 
वो कहते हैं, 'इराक़ युद्ध में ट्रंप की पार्टी की सरकार शामिल थी। हम ट्रंप को यूक्रेन का दौरा करने के लिए निमंत्रित कर सकते हैं ताकि वो ख़ुद ये देख सकें कि वहाँ क्या हो रहा है और अमेरिका की दी गई आर्थिक मदद का वहां कैसे इस्तेमाल हो रहा है।'
 
यूक्रेन के लिए सवाल ये होगा कि वो किस हद तक अमेरिका के नए राष्ट्रपति को प्रभावित कर सकता है। येवहेन महदा इस बात से सहमत हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप का अप्रत्याशित रवैया रखना यूक्रेन के लिए समस्या बन सकता है।
 
यूरोपीय संघ में ट्रंप और वेंस की जोड़ी के सबसे प्रबल समर्थक हैं, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान। ओरबान ने हाल ही में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात की थी, जिसके बाद उन्होंने अमेरिका में ट्रंप से मुलाक़ात की। पुतिन के साथ ओरबान के गहरे संबंध हैं।
 
यूरोपीय संघ के नेताओं को लिखी एक चिट्ठी में ओरबान ने कहा था कि अगर ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं तो वो पद की शपथ लेने तक का इंतज़ार नहीं करेंगे और जल्द रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता की मांग करेंगे। ओरबान ने अपनी चिट्ठी में लिखा, उनके पास इसकी विस्तृत और ठोस योजना है।
 
वहीं वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इसी सप्ताह कहा था कि इस साल नवंबर में होने वाले संभावित शांति सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी शामिल होना चाहिए। उन्होंने वादा किया था कि नवंबर में उनके पास इसकी एक "पूरी योजना तैयार होगी"। हालांकि उन्होंने ये भी साफ़ किया कि उन पर पश्चिमी मुल्कों का किसी तरह का दबाव नहीं है।
 
हाल ही में ओरबान ने कथित "शांति मिशन" के तहत रूस और चीन का दौरा किया था, जिसके बाद उन पर ये आरोप लगाया गया कि वो यूरोपीय काउंसिल की छह महीने की अध्यक्षता का दुरुपयोग कर रहे हैं। ओरबान की हरकतों को देखते हुए यूरोपीय कमिशन के अधिकारियों से कहा गया है कि वो हंगरी में होने वाली बैठकों में शामिल न हों।
 
इसी साल एक जुलाई को हंगरी को यूरोपीय काउंसिल की छह महीने की अध्यक्षता मिली थी। इसके बाद से ओरबान यूक्रेन, रूस, अज़रबैजान, चीन और अमेरिका का दौरा कर चुके हैं। वो इसे "शांति मिशन" के लिए दुनिया का दौरा कह रहे हैं।
 
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व्यापार के भविष्य को लेकर चिंता
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान यूरोपीय संघ से होने वाले स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर अमेरिका ने आयात कर लगाया था। हालांकि उनके बाद सत्ता में आए जो बाइडन के प्रशासन ने इन आयात करों पर रोक लगा दी थी। लेकिन ट्रंप ने सत्ता में आने पर सभी तरह के आयात पर 10 फ़ीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया है।
 
व्यापार को लेकर अमेरिका के साथ नए सिरे से आर्थिक टकराव की आशंका को यूरोप के अधिकांश मुल्कों में एक बुरे, यहां तक ​​कि विनाशकारी परिणाम के रूप में देखा जाएगा।
 
जर्मन संसद में सोशल डेमोक्रेट्स की विदेश नीति प्रमुख निल्स श्मिड कहते हैं, "जो एक चीज़ हम निश्चित तौर पर जानते हैं, वो ये कि यूरोपीय संघ पर दंडात्मक शुल्क लगाए जाएंगे और इसलिए हमें एक और दौर के व्यापार युद्ध के लिए तैयार रहना होगा।"
 
इससे पहले इसी साल जेडी वेंस ने सैन्य तैयारियों के लिए जर्मनी की आलोचना की थी। उनका इरादा जर्मनी की आलोचना करना नहीं था। उन्होंने कहा था कि हथियारों का उत्पादन कर रहे उद्योगों का आधार पर्याप्त नहीं है।
 
आने वाले वक़्त में वेंस का ये बयान यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पर यूरोपीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए और अधिक दबाव डाल सकता है।
 
फरवरी 2022 में यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के "सैन्य अभियान" के बाद जर्मन चांसलर ओलाफ़ शॉल्त्स ने संसद में दी अपनी स्पीच में इसे इतिहास बदलने वाली घटना कहा था। उन पर यूक्रेन को हथियार देने में हिचकिचाने के भी आरोप लगाए जाते रहे हैं।
 
यूक्रेन हमले के बाद संसद में दी गई अपनी स्पीच में ओलाफ़ ने हथियारों के निर्यात को लेकर पाबंदियां लगाई थीं। उन्होंने देश का रक्षा खर्च बढ़ाने और रूस से तेल और गैस ख़रीदने पर रोक लगाने की बात की थी। हालांकि जर्मनी के सहयोगी कहते हैं कि यूक्रेन को सैन्य सहायता देने वालों में अमेरिका के बाद अगर किसी का नंबर है तो वो जर्मनी ही है।
 
शीत युद्ध के ख़त्म होने के बाद पहली बार, भले ही शॉर्ट-टर्म बजट के ज़रिए, जर्मनी दो फ़ीसदी रक्षा बजट खर्च के लक्ष्य तक पहुँचने में सफल रहा है।
 
जर्मन संसद में सोशल डेमोक्रेट्स की विदेश नीति प्रमुख निल्स श्मिड कहते हैं, 'मुझे लगता है कि हम सही रास्ते पर हैं। हमें उस सेना का पुनर्निर्माण करना है, जिस पर बीते 15 से 20 सालों तक ध्यान नहीं दिया गया है।' लेकिन इन मामलों पर नज़र रखने वाले इस बात से सहमत नहीं हैं कि पर्दे के पीछे यूरोप की तैयारियां गंभीर या काफ़ी हैं।
 
ऐसे बहुत कम नेता हैं, जिनके पास एक अस्थिर यूरोपीय महाद्वीप के भविष्य की सुरक्षा को और मज़बूत करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है।
 
विदेश नीति मामलों में ओलाफ़ शॉल्त्स का अपना संयमित तरीक़ा है और वो इस मामले में नेतृत्व करने से बचते रहे हैं। वो राजनीतिक मामले में भी मुश्किलों से जूझ रहे हैं और हो सकता है कि अगले साल चुनावों में उन्हें सत्ता से बाहर जाना पड़े।
 
वहीं फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अचानक चुनावों की घोषणा की और बीते दिनों देश में संसदीय चुनाव करवाए, जिसके बाद वो ख़ुद कमज़ोर स्थिति में आ गए हैं। चुनाव के बाद देश में धुर दक्षिणपंथियों को उम्मीद के हिसाब से बढ़त नहीं मिल सकी है और देश फिलहाल पॉलिटिकल पैरालिसिस के दौर से जूझ रहा है।
 
वहीं पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रज़ेज डूडा ने मंगलवार को चेतावनी दी कि अगर यूक्रेन रूस के ख़िलाफ़ जंग हार जाता है, तो "पश्चिम के साथ रूस के युद्ध की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी।" उन्होंने कहा, "कब्ज़ा करने वाला ये रूसी राक्षस और हमले करना चाहेगा और लगातार हमले करना चाहेगा।"
 

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