समीरात्मज मिश्र
बीबीसी हिंदी के लिए
20 अगस्त को उत्तरप्रदेश के गृह विभाग ने पिछले नौ साल के तुलनात्मक आंकड़ों को पेश करते हुए दावा किया कि राज्य में अपराधों की संख्या में काफ़ी कमी आई है और इसकी वजह ये है कि सरकार ने अपराध और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ 'ज़ीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाई है।
यह अलग बात है कि अख़बारों के पन्ने राज्य में होने वाले अपराधों और उनकी जघन्यता की ख़बरों से पटे पड़े रहते हैं और विपक्षी नेताओं के हर दूसरे-तीसरे ट्वीट राज्य में कथित तौर पर बढ़ रहे अपराधों के संदर्भ में ही रहते हैं।
राज्य सरकार की ओर से जब यह दावा किया गया तो उसके कुछ दिन पहले ही 15 अगस्त को लखीमपुर खीरी में 13 वर्षीय एक लड़की की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी।
सरकार के इस दावे के बाद इसी शहर में 25 अगस्त को एक अन्य लड़की की हत्या के बाद लाश को फेंक दिया गया था। दूसरे मामले में पकड़ा गया अभियुक्त लड़की को जानता था और पुलिस के मुताबिक एकतरफ़ा प्रेम की वजह से उसने घटना को अंजाम दिया।
इस घटना का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और घटना के दो दिन बाद राज्य सरकार ने अभियुक्त के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत एफ़आईआर दर्ज करने के निर्देश दिए।
हालांकि इस बात को लेकर एक अलग बहस छिड़ गई है कि क्या यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जो एनएसए लगाया गया है?
इन दो घटनाओं के अलावा सिर्फ़ अगस्त महीने में ही रेप, हत्या, लूट और डकैती जैसे अपराधों की न जाने कितनी वारदातें हो चुकी हैं और कई मामलों में पुलिस अभी अभियुक्तों की तलाश में ही है।
अगस्त महीने में अब तक सिर्फ़ हत्या की ही सौ से ज़्यादा घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें कई घटनाएं ऐसी हैं जहां एक ही परिवार के कई सदस्यों की हत्या हुई है।
अपराधी की घटनाएं राजधानी लखनऊ समेत लगभग हर ज़िलों में हुई हैं और कई मामलों में अब तक वारदात को अंजाम देने वाले अभियुक्त भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं।
कानपुर में संजीत यादव अपहरण कांड में पुलिस वालों ने किडनैपर्स को कथित तौर पर फ़िरौती की रक़म भी दिला दी, फिर भी संजीत की हत्या कर दी गई, बावजूद इसके किडनैपर्स का पता लगाने में उसे काफ़ी समय लग गया। संजीत के परिजन शव की तलाश में अब भी भटक रहे हैं और पुलिस से गुहार लगा रहे हैं।
कितना तर्कसंगत है सरकार का दावा
पिछले दिनों राज्य सरकार की ओर से जारी आंकड़ों की बात करें तो साल 2013 के मुक़ाबले साल 2020 में बलात्कार के मामलों में 25.94 फ़ीसदी और साल 2016 के मुकाबले 38.74 फ़ीसदी की कमी आई है।
दावे के मुताबिक़ अन्य प्रकार के अपराधों में भी काफ़ी कमी आई है। सरकार के मुताबिक पॉक्सो एक्ट के मामलों में प्रभावी पैरवी की वजह से 1 जनवरी 2019 से इस साल 30 जून तक 922 मुक़दमों में अभियुक्तों को सज़ा हुई है जिनमें से पांच को मृत्युदंड की सज़ा दी गई है।
सरकार का दावा है कि विभिन्न अपराध में शामिल अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अन्य धाराओं के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए के तहत भी कार्रवाई हुई है, लेकिन जिस तरह आपराधिक घटनाओं में तेज़ी दिख रही है, उनके आधार पर क्या इन आंकड़ों को तर्कसंगत ठहराया जा सकता है?
इस सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं कि न सिर्फ़ अपराध की घटनाओं में कमी आई है बल्कि इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी लोगों के आने के बावजूद अपराध घटे हैं।
शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं- यह सरकार की तेज़ और गंभीर कार्रवाई का नतीजा है कि बड़े-बड़े माफ़िया के यहां छापेमारी हो रही है। अपराध की कुछ घटनाएं हुई ज़रूर हैं लेकिन संगठित अपराध बिलकुल बंद हैं, जैसा कि पिछली सरकारों में होता रहा था। आप जिन भी आपराधिक घटनाओं की बात कर रहे हैं उनमें ज़्यादातर ऐसी हैं जो कि घरेलू विवाद या फिर आपसी विवाद के चलते हुई हैं। इन्हें रोक पाना मुश्किल होता है, फिर भी अभियुक्तों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है।
सरकार अपराध घटने या फिर अपराध रोकने का दावा भले ही करे, लेकिन लगातार आपराधिक घटनाओं की वजह से वह विपक्ष के निशाने पर भी बनी हुई है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इस दौरान इस संबंध में कई ट्वीट कर चुकी हैं।
25 अगस्त को अपने एक ट्वीट में उन्होंने पिछले दो दिनों में हुई आपराधिक घटनाओं की सूची जारी करते हुए लिखा है- यूपी के सीएम सरकार की स्पीड बताते हैं और अपराध का मीटर उससे दोगुनी स्पीड से भागने लगता है। प्रत्यक्षं किम प्रमाणम। ये यूपी में केवल दो दिन का अपराध का मीटर है। यूपी सरकार बार-बार अपराध की घटनाओं पर पर्दा डालती है मगर अपराध चिंघाड़ते हुए प्रदेश की सड़कों पर तांडव कर रहा है।
इस मामले में प्रियंका गांधी ने यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को एक पत्र भी लिखा है और महिला होने के नाते महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों का संज्ञान लेने की अपील की है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी प्रमुख मायावती भी राज्य सरकार को बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर घेर चुकी हैं।
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पॉलिटिकल एडिटर सुभाष मिश्र सरकारी दावे को सही नहीं मानते।
उनका कहना है- अपराध में कमी संबंधी आंकड़े हर सरकार पेश करने की कोशिश करती है, लेकिन योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद ये कहा करते थे कि हम आंकड़ों में ही नहीं, सामने जो होगा उसे मानेंगे, लेकिन अब तो वे भी वही मान रहे हैं जो आंकड़े उनके सामने रखे जा रहे हैं। ये ज़रूर है कि आम जनता इन्हें नहीं मान रही है और अपराध की तस्वीर वही दिख रही है जो ज़मीन पर हो रहा है। किडनैपिंग और फ़िरौती मांगने की घटनाएं लंबे समय से सुनने में नहीं आती थीं लेकिन ये घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। ऐसे में अपराध कम हुए हैं, ये कैसे माना जा सकता है।
अपराधियों में क़ानून का भय आया है?
यूपी के लखीमपुर ज़िले में 10 दिन के भीतर रेप और उसके बाद हत्या की दो अलग-अलग घटनाएं हुईं। 26 अगस्त को हुई दूसरी घटना में 17 वर्षीय एक छात्रा का शव गांव के बाहर तालाब के किनारे खेत के पास पड़ा मिला। पुलिस ने इस मामले में दिलशाद नाम के एक युवक को गिरफ्तार किया है जो युवती को पहले से ही जानता था।
इस मामले में राज्य सरकार ने दो दिन बाद ही अभियुक्त के ख़िलाफ़ एनएसए लगाने के आदेश दिए। हालांकि 10 दिन पहले जिस 13 वर्षीय लड़की की हत्या हुई थी, वह भी जघन्य तरीक़े से की गई थी और दो अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया था। लखीमपुर के पुलिस अधीक्षक सतेंद्र कुमार सिर्फ़ एक ही मामले में एनएसए लगाने की वजह नहीं बताते हैं लेकिन शलभमणि त्रिपाठी इसकी वजह घटना का गंभीर प्रकृति का होना बताते हैं।
शलभमणि त्रिपाठी कहते हैं- लड़की दलित समुदाय से थी। बहुत ही वीभत्स तरीक़े से घटना को अंजाम दिया गया है। घटना की वजह से सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ। लड़की को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसने इस्लाम कुबूल नहीं किया। और मैं आपको बता दूं कि यह पहली घटना नहीं है जब रेप और हत्या के आरोपी पर एनएसए लगा हो बल्कि रायबरेली में भी इस तरह के एक मामले में एनएसए लग चुका है।
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र एनएसए लगाने की वजह अभियुक्त के किसी ख़ास धर्म से होने को मानते हैं। वे कहते हैं- "लखीमपुर के ही दोनों मामलों से तुलना करें तो जघन्य तरीक़े से दोनों ही हत्याएं हुई हैं और हत्या से पहले रेप हुआ है. लेकिन यहां अभियुक्त मुस्लिम समुदाय से संबंध रखता है इसलिए एनएसए की कार्रवाई इतनी तत्परता से की गई। ख़ैर, ये तो एक वीभत्स तरीक़े से की गई हत्या के अभियुक्त पर हुई कार्रवाई है लेकिन योगी सरकार ने तो प्रोफ़ेसर, डॉक्टर जैसे लोगों पर भी इतनी ही तत्परता से एनएसए लगाया है।
हालांकि क़ानूनी जानकारों का कहना है कि एनएसए उन परिस्थितियों या उन मामलों में लगाया जाता है जिनकी वजह से जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने की आशंका होती है या फिर हो गया होता है। यूपी के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एके जैन कहते हैं कि एनएसए लगाने का यदि कोई मज़बूत आधार नहीं होगा तो सलाहकारी परिषद में वह अपने आप ख़ारिज हो जाएगा।
उनके मुताबिक, "रेप और हत्या जैसे केसों में भी एनएसए लग सकता है लेकिन उसका आधार यह बताना होगा कि इससे पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब हो रहा है। सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने की स्थितियों में एनएसए के लिए मज़बूत आधार मिल जाता है।
यूपी में बढ़ रहे अपराधों के बारे में पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं कि अपराध होने के बाद पुलिस की कार्रवाई कितनी तत्परता और सही तरीक़े से होती है, वह मायने रखती है। एके जैन के मुताबिक, "यदि संगठित अपराधों को कम कर पा रही है, आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी घटनाओं में कमी है, अपराध करने के बाद अपराधी पकड़े जा रहे हैं तो क़ानून-व्यवस्था के लिहाज़ से इन स्थितियों को बेहतर कह सकते हैं।"
लेकिन जानकारों का यह भी कहना है कि क़ानून-व्यवस्था बेहतर होने का मतलब यह भी होता है कि क़ानून का भय भी होना चाहिए। ख़बर लिखे जाते वक़्त भी राजधानी लखनऊ के पॉश इलाक़े में जिस तरीक़े से दो लोगों की सरेराह गोली मारकर हत्या कर दी गई, उसे देखकर यह कहना बड़ा मुश्किल है कि अपराधियों में क़ानून का भय है।