दिव्या आर्य, बीबीसी संवाददाता, बनारस से
"महंगाई बहुत तेज़ भाग रहा है और रोज़गार मिल ही नहीं रहा तो बच्चों को पढ़ाएं क्या और दवा का इंतज़ाम कैसे करें?" "फ़्री में पहले सबको कनेक्शन दिया, फिर गैस इतना महंगा कर दिया कि टंकी हम लोग वैसे ही रखे हैं, फिर चूल्हे पर ही आंख ख़राब कर खाना बना रहे हैं।" "सरसों का तेल, दालें, सब इतना महंगा हो गया है कि जो रोज़ कमाने वाले हैं वो ठीक से खाना तक नहीं खा पा रहे हैं।"
उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस के एक 'आदर्श' गांव, नागेपुर, की औरतों के सामने माइक रखा तो शिकायतों का अंबार फूट पड़ा।
"प्रधानमंत्री आते हैं, इतनी बड़ी-बड़ी रैली करते हैं, वो पैसा कहां से आता है, हमारे पास तो खाने के लिए भी नहीं है, वो हमारा कुछ सोचते ही नहीं।"
राजनीति से परे मानी जानेवाली औरतों को अपने नेताओं और उनकी नीतियों का असर उनके रसोईघर और बच्चों से लेकर घर के बजट तक पर ख़ूब मालूम है और पूछे जाने पर वो अपनी राय रखने से नहीं चूकीं।
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में हवा का रुख़ औरतों की तरफ़ मुड़ रहा है। शुरुआत कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने की और औरतों के लिए घोषणा पत्र जारी किया। 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' का नारा दिया और औरतों के लिए सुरक्षा, शिक्षा, रोज़गार समेत कई योजनाएं लाने का वादा किया।
फिर मंगलवार की सुबह अख़बारों में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की तस्वीरों वाले विज्ञापन छपे और दिन में प्रयागराज में 'कन्या सुमंगला योजना' की शुरुआत की गई।
भाषण में कई दावे थे, जैसे समाजवादी पार्टी की सरकार में सड़कों पर 'माफिया राज' होना। मोदी ने कहा, " (तब) सड़कों पर गुंडों की हनक हुआ करती थी। इसकी सबसे बड़ी भुक्तभोगी महिलाएं थीं। उनका सड़क पर निकलना मुश्किल हुआ करता था। योगी जी ने इन गुंडों की सही जगह पहुंचाया है। आज यूपी में सुरक्षा भी है और अधिकार भी है। यूपी में व्यापार भी है।"
लेकिन उन्हीं के संसदीय क्षेत्र की महिलाएं अपनी ज़िंदगी की एक अलग तस्वीर पेश करती हैं।
'दाम बढ़े, रोज़गार घटा'
ऐसा नहीं कि बुनकरों के इस गांव में विकास नहीं हुआ है। नागेपुर गांव को प्रधानमंत्री मोदी ने आदर्श गांव बनाने का एलान किया था जिसके बाद यहां बिजली आई, शौचालय बने, पानी की व्यवस्था की गई और गैस सिलेंडर बंटे। पर औरतें कहती हैं बिजली के बिल बढ़े, गैस के दाम बढ़े और रोज़गार घट गया।
प्रमिला पटेल भी बुनकर परिवार में ब्याह कर यहां आईं। वो बोलीं, "अब कोई काम ही नहीं है, हम लोग घर बैठे हैं।" पास में बैठी सरोज कुमारी ने बताया वो बीए की पढ़ाई कर चुकी हैं पर बेरोज़गार हैं। सत्ता और विपक्ष दोनों से ही नाउम्मीद हुई हैं क्योंकि दलित औरतों के पास शिक्षा और रोज़गार दोनों के ही कम अवसर हैं।
उन्होंने कहा, "योगी जी को हमारी फ़ीस माफ़ करने और रोज़गार के मौके बनाने के बारे में सोचना चाहिए, मायावती जी औरत हैं और नेता हैं इसलिए हमें उन पर गर्व है पर वो किशोरियों के बारे में क्या सोचती हैं, उन्होंने कभी कुछ कहा ही नहीं।"
रोज़गार की बात बार-बार उठी। पढ़ी-लिखी लड़कियों ने कहा कि शादी के दबाव से बचने और अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए वो नौकरी करना चाहती हैं पर निजीकरण के चलते सरकारी नौकरियां हैं नहीं और प्राइवेट के लिए आवेदक बहुत ज़्यादा हैं।
पिछले महीने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने दावा किया था कि उनकी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में साढ़े चार लाख सरकारी नौकरियों के पद भरे हैं।
'कैसा विकास?'
महंगाई और रोज़गार का ये मुद्दा बनारस संसदीय क्षेत्र के नागेपुर गांव में ही नहीं बनारस शहर में भी बार-बार उठा। बनारस के लोकप्रिय घाटों पर फूल और पूजा की सामग्री बेचनेवाली औरतें जिनके पति नाव चलाकर या गोताखोरी से जीविका चलाते हैं, उनकी भी यही शिकायतें थीं।
"सिलेंडर में गैस भरने के पैसे नहीं", "स्कूल की फ़ीस देने के पैसे नहीं" और "बड़े हो रहे बच्चों के लिए रोज़गार नहीं"।
शिकायतों की फ़ेहरिस्त लंबी थी। कुछ परेशानियां केंद्र की नीतियों से और कुछ प्रदेश से पर जब दोनों जगह एक ही पार्टी है और बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है तो जनता के लिए वो एक ही सरकार थी। कई बार औरतें योगी की जगह मोदी और मोदी की जगह योगी बोलतीं।
दो बच्चों की मां रेणु बोलीं, "ऐसी सरकार कभी नहीं देखे हैं, मोदी जी पांच सौ का गैस एक हज़ार में कर दिए हैं, क्या करें अच्छी सड़कों का, विकास का, जब लकड़ी पर फूंक फूंक कर धूंए में काम करना पड़ रहा है।"
घाट से कुछ ही दूरी पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी रोज़गार की बात छिड़ी। बी।ए। कर रही मांड्वी मिश्रा ने कहा, "पहले किसी की नौकरी लगती थी तो सुनने में आ जाता था, अब मोहल्ले में सन्नाटा रहता है। मेरा भी आगे क्या होगा पता नहीं।"
सुरक्षा कहां और कैसी?
महंगाई और रोज़गार से बात आगे बढ़ी तो सुरक्षा पर जाकर ठहरी। मांड्वी ने कहा उसे सड़कों पर वक्त-बेवक्त निकलने में हिचकिचाहट नहीं होती।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी जब औरतों को प्रयागराज में संबोधित किया तो दावा किया था कि अब 'माफ़िया राज' ख़त्म हुआ है और औरतें सुरक्षित हुई हैं।
इस पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा, "दिक़्क़त, किल्लत व ज़िल्लत ने महिलाओं को भाजपा के ख़िलाफ़ कर दिया है। उत्तर प्रदेश की नारी भाजपा पर पड़ेगी भारी।"
इन दावों से दूर बनारस के नागेपुर में औरतों ने सुरक्षा को अलग तरीके से परिभाषित किया। वो सड़कों की नहीं, घर की बात करना चाहती हैं।
एक आंगनबाड़ी में काम करनेवाली सोनी ने कहा, "महिला सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर हम लोग जब घर में ही सुरक्षित नहीं हैं तो बाहर कैसे रहेंगे? रोज़ का काम कर के, पी कर आदमी घर आते हैं और फिर मारपीट करते हैं।"
सहमति में सिर हिलाते हुए कई औरतों ने शराब पीकर घरेलू हिंसा और पैसे की बर्बादी से होनेवाली परेशानियों की बात बताई और शराबबंदी की मांग रखी।
प्रयागराज में प्रधानमंत्री के केवल महिलाओं को संबोधित करने के बाद, इस विधानसभा चुनाव प्रचार में सबसे पहले महिला वोटरों की बात रखने वाली प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया, "उप्र की महिलाओं देख लो! आपने अंगड़ाई ली और प्रधानमंत्री आपके सामने झुक गए। मगर अभी तो पत्ता हिला है महिला शक्ति का तूफ़ान आने वाला है"।
कुछ ही दिन पहले नागेपुर में मिली सोनी की एक बात तब याद आई। महिला सशक्तीकरण और उनके आगे बढ़ने, राजनीति में आने के बारे में जब मैंने उनसे पूछा था तो मुस्कुरा दी थीं।
वो बोलीं, "इतनी महंगाई के दौर में, जब घर में पैसा कम होगा तो जितना भी होगा वो बेटों पर ही ख़र्च किया जाएगा, लड़कियों को थोड़ा-बहुत पढ़ा के ब्याह दिया जाएगा। मैं देखती हूं ऐसा ही होता है ज़्यादातर। लड़कियों को, औरतों को बढ़ना तो चाहिए आगे पर मौक़ा मिले तब तो।"