देहरादून से राजेश डोबरियाल
उत्तराखंड में अब बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए उन्हें गर्भनिरोधक दवाएं खिलाई जाएंगी। देश में अपनी तरह का यह पहला प्रोजेक्ट होगा जिस पर उत्तराखंड वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं।
उत्तराखंड वन विभाग के लिए उप वन सरंक्षक आकाश वर्मा ने, जिन्होंने ये प्रोजेक्ट तैयार किया है, बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा कि प्रोजोक्ट पर अगले दो महीने में काम शुरू हो सकता है।
इसके ट्रायल के लिए देहरादून स्थित वन्यजीव संस्थान जो शहर और जंगल की सीमा पर है और जहां बंदरों के एक गुट विशेष का निवास है, के साथ ही हरिद्वार के चिड़ियापुर में वानर बंध्याकरण और पुनर्वास केंद्र जैसी जगहों पर विचार किया जा रहा है।
आकाश के अनुसार यह बंदरों की आबादी को नियंत्रित करने का सबसे मितव्ययी और मानवतावादी तरीका है क्योंकि इसके लिए न तो बंदरों को कैद करने की आवश्यकता होगी और न ही किसी तरह की सर्जरी की। वो बताते हैं कि मादा बंदरों को खाने में यह दवा मिलाकर दी जाएगी और उन पर निगाह रखी जाएगी।
हालांकि यह दवा किस मात्रा में होगी और किस खाद्य पदार्थ के साथ दी जाएगी इस पर शोध करेगा भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), जो इस प्रोजेक्ट में वन विभाग के साथ मिलकर काम करेगा।
डब्ल्यूआईआई में मानव-पशु संघर्ष (वानर) प्रोजेक्ट के प्रभारी और अन्वेषक डॉक्टर कमर कुरैशी इसकी पुष्टि करते हैं। वो बताते हैं कि वन विभाग के समानांतर भारतीय वन्यजीव संस्थान इस तरह के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और अब दोनों मिलकर काम करेंगे।
वो यह तो स्वीकार करते हैं कि मुंह से दिए जाने वाली दवाओं के ज़रिए बंदरों के गर्भनिरोध के लिए देश में पहली बार काम किया जा रहा है लेकिन वह आकाश वर्मा की इस बात से सहमत नहीं हैं कि यह सबसे मितव्ययी और मानवतावादी तरीका होगा।
डॉक्टर कुरैशी कहते हैं कि गर्भनिरोध के सभी तरीके मानवतावादी हैं, क्योंकि जो बंदरों पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वही इंसानों पर भी लागू हो रहे हैं। वह यह भी कहते हैं कि बंदरों की आबादी पर काबू पाने के लिए सभी तरीकों को अपनाना होगा जिसमें मादा बंदरों की नसबंदी, इंट्रायूट्रीन डिवाइस (आईयूडी, जैसे कि कॉपर टी) और वैक्सीन (जिसे खाने के साथ और इंजेक्शन दोनों तरह से दिया जाएगा) शामिल होंगे।
दिल्ली स्थित भारतीय प्रतिरक्षा संस्थान इस उद्देश्य से एक वैक्सीन विकसित कर चुका है और इस प्रोजेक्ट में वह उत्तराखंड वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ मिलकर काम करेगा। हालांकि डॉक्टर कुरैशी कहते हैं यह पूरी प्रक्रिया अभी शुरुआती दौर में है और इसके लिए अभी परीक्षण शुरू किए जाने हैं, जिसके बाद दो से तीन साल में उनके परिणाम सामने आ सकते हैं।
इसमें अपनाई जाने वाली प्रक्रिया भी अभी तय नहीं है। डॉक्टर कुरैशी के अनुसार अभी ओरल ड्रग या वैक्सीन का बंदरों पर असर भी देखा जाना है, जो कैद में रखे गए और खुले में रहने वाले, दोनों तरह के समूहों पर जांचा जाएगा.
वह यह भी बताते हैं कि प्रोजेक्ट उन शहरी और शहर-जंगल की सीमा वाले क्षेत्रों में लागू किया जाएगा जहां बंदर और इंसान आमने-सामने हैं।
हर इलाके में अक्सर बंदरों का एक समूह रहता है और चिह्नित क्षेत्र में रहने वाले समूह की मादा बंदरों को ओरल ड्रग दिया जाएगा।
योजना परीक्षण में शामिल सभी बंदरों पर कैमरों से निगरानी रखने और उनमें इलेक्ट्रॉनिक चिप लगाने की भी है।
डॉक्टर कुरैशी यह भी साफ़ कर देते हैं कि गर्भनिरोधक दवा सिर्फ़ मादा बंदरों को ही देने का प्रस्ताव है ताकि समूह में ढांचे (वयस्क नर के प्रमुत्व) पर कोई असर न पड़े।
हालांकि वह यह भी कहते हैं कि बंदरों की जनसंख्या नियंत्रण के लिए इंसानी आबादी के आस-पास फैले कूड़े, बंदरों को खाना देने की आदत पर भी रोक लगाने होगी और बाद में इस प्रोजेक्ट में नागरिक प्रशासन को भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
बहरहाल आकाश वर्मा आशा जताते हैं कि क्योंकि अब सभी सही दिशा में मिलकर चल रहे हैं तो बंदरों की आबादी पर नियंत्रण हो ही जाएगा और इससे पैदा होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।