भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के शीर्ष सैन्य कमांडरों की संघर्षविराम करने पर जारी संयुक्त बयान की चर्चा शुक्रवार के सभी अख़बारों में है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़बर दी है कि इस ख़बर ने सबको हैरान किया मगर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल महीनों से इस्लामाबाद में अपने समकक्ष के साथ बैक-चैनल वार्ता कर रहे थे। अख़बार के मुताबिक़ इस घटनाक्रम से वाकिफ़ लोगों ने अपना नाम ज़ाहिर ना करने की शर्त पर ये जानकारी दी।
एक सूत्र ने बताया कि डोभाल और इमरान ख़ान के राष्ट्रीय सुरक्षा डिवीज़न के विशेष सहायक मोईद यूसुफ़ सीधे भी और खुफ़िया विभाग के मध्यस्थों के ज़रिए संपर्क में थे। सूत्र ने बताया कि संयुक्त बयान दोनों अधिकारियों के बीच हुई चर्चाओं का पहला परिणाम है जिनमें दोनों लोगों के बीच किसी तीसरे देश में कम-से-कम एक बार मुलाक़ात हुई।
उसने ये भी बताया कि इस बात की जानकारी सरकार के कुछ ही वरिष्ठ नेताओं को थी जिनमें प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर शामिल थे। हालांकि अख़बार के अनुसार मोईद यूसुफ़ ने इस तरह की किसी वार्ता में शामिल होने की ख़बरों से अलग होने की कोशिश करते हुए कई ट्वीट किए। उन्होंने लिखा, 'मेरी और मिस्टर डोभाल के बीच कोई बात नहीं हुई। एलओसी पर ये स्वागतयोग्य प्रगति डीजीएमओ स्तर पर हुई चर्चा का नतीजा है।'
दैनिक हिंदुस्तान में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि तेल की क़ीमतें कब कम होंगी, इसका जवाब उन्हें ख़ुद नहीं पता है और यह एक धर्म संकट है। पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत 100 रुपए प्रति लीटर के क़रीब पहुंच गई है और इसके ख़िलाफ़ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं। लोग यही पूछ रहे हैं कि तेल की क़ीमतें कब कम होंगी।
गुरुवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को भी इन सवालों का सामना करना पड़ा। अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान वित्त मंत्री से पूछा गया कि तेल की क़ीमतों को सरकार कब कम करेगी तो उन्होंने कहा कि वह नहीं बता पाएंगी कि कब, यह एक धर्म संकट है। इस अवसर पर वित्तमंत्री ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोल और डीज़ल पर करों को कम करने के लिए आपस में बात करनी चाहिए।
दैनिक जागरण की ख़बर के अनुसार जीएसटी की ख़ामियों को दूर करने और डीज़ल-पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों के ख़िलाफ़ 26 फ़रवरी को देश भर के व्यापारियों ने भारत बंद का आह्वान किया है। द कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने इस बंद का आह्वान किया है जिनका ट्रांसपोर्टरों और लघु उद्योग से जुड़े लोगों ने भी समर्थन किया है। कैट के अनुसार इस बंद में देश के क़रीब आठ करोड़ छोटे कारोबारी शामिल होंगे। इसके अलावा क़रीब एक करोड़ ट्रांसपोर्टर और लघु उद्योग और महिला उद्यमियों के भी इस बंद में शामिल होने का दावा किया जा रहा है।
ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन ने बंद के समर्थन में सुबह छह बजे से लेकर शाम आठ बजे तक चक्का जाम की घोषणा की है। बंद का आह्वान करने वालों का दावा है कि 1500 जगहों पर धरने का आयोजन किया जाएगा। अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू में छपी एक ख़बर के अनुसार भारत में क़रीब 37 करोड़ बच्चों पर कोरोना के दूरगामी असर होंगे।
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवार्नमेंट ने गुरुवार को एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि नवजात शिशुओं से लेकर 14 साल तक के क़रीब 37 करोड़ बच्चे अंडरवेट, शिशु मृत्यु दर, शिक्षा और काम के मौक़ों में कमी के शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में क़रीब 50 करोड़ बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ा, और उनमें से आधे से ज़्यादा बच्चे भारत के हैं।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने एक बयान में जारी कर कहा, 'कोविड-19 ने दुनिया के ग़रीबों को और ज़्यादा ग़रीब बना दिया है। 11 करोड़ से ज़्यादा लोग कोरोना के कारण और ग़रीबी के शिकार होंगे और उनमें से अधिकतर लोग दक्षिण एशिया में रहते हैं।'
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध किया है। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने अदालत में हलफ़नामा दाख़िल कर कहा कि भारत में शादी एक संस्था के रूप में पवित्रता से जुड़ी हुई है। देश के प्रमुख हिस्सों में इसे एक संस्कार माना जाता है। हलफ़नामे में केंद्र सरकार ने कहा, 'हमारे देश में एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह के संबंध की वैधानिक मान्यता पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करती है।'
केंद्र सरकार ने कहा कि समान सेक्स वाले व्यक्तियों के साथ यौन संबंध बनाने को पहले ही अपराध से बाहर कर दिया गया है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो शादी कर सकते हैं। हलफ़नामे में कहा गया है कि विपरीत लिंग के व्यक्तियों को ही विवाह की मान्यता देने में 'वैध राज्य हित' है।
केंद्र ने कहा कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह की संस्था की स्वीकृति को न तो मान्यता प्राप्त है और न ही किसी भी पर्सनल लॉ या किसी भी संवैधानिक क़ानूनों में इसे स्वीकार किया गया है। केंद्र ने ये भी कहा कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना अदालत का काम नहीं है, उस पर निर्णय विधायिका को लेना होता है। हलफ़नामें में कहा गया है कि भारत में शादी केवल दो व्यक्तियों के मिलन का विषय नहीं है, बल्कि एक 'जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच एक गंभीर संस्थान है।'
केंद्र सरकार ने कहा है कि विवाह के मौजूदा क़ानून में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से देश में विभिन्न पर्सनल लॉ में जो संतुलन बना हुआ है उसमें उथल-पुथल मच जाएगा। पिछले साल 3 याचिकाएं दायर की गईं थीं। उनमें से एक याचिका में डॉक्टर कविता अरोड़ा और अंकिता खन्ना ने अपने साथी चुनने के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित कराने की अपील की थी।
कविता और अंकिता ने दिल्ली में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने की अर्ज़ी दी थी लेकिन मैरिज ऑफ़िसर ने यह कहते हुए उनकी अर्ज़ी ख़ारिज कर दी थी कि वो दोनों समलैंगिक हैं। इसके बाद दोनों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। दूसरी याचिका पराग विजय मेहता और वैभव जैन ने दायर की थी। इन दोनों ने 2017 में वाशिंगटन में शादी की थी और फ़ॉरेन मैरिज एक्ट के तहत अपनी शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में अर्ज़ी दी थी जिसे दूतावास ने ख़ारिज कर दी थी। तीसरी याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा ने की थी और अपील की थी कि हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाए। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख़ 20 अप्रैल को तय की है।