अमिताभ भट्टासाली, बीबीसी न्यूज बांग्ला, कोलकाता
सुंदरबन इलाक़े के संदेशखाली द्वीप पर पहुंचने के लिए जिस कालिंदी नदी को पार करना पड़ता है, वह बांग्लादेश से घुसपैठ का लोकप्रिय रास्ता है। नदी के इस पार जिस धामाखाली घाट से नाव के ज़रिए संदेशखाली जाना पड़ता है, वहीं पर कुछ साल पहले मैंने घुसपैठ के आरोप में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) के हाथों गिरफ्तार कुछ महिला-पुरुषों से बात की थी।
बीएसएफ़ ने उस शाम तीन नावों में भरकर सीमा पार से आए डेढ़ सौ से अधिक बांग्लादेशी लोगों को पकड़ा था। धामाखाली के उस तट से नदी के पार बसा संदेशखाली नज़र आ रहा था।
हाल तक शांत रहा यही द्वीप फ़िलहाल भारतीय राजनीति में सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। कुछ सप्ताह पहले इस द्वीप पर महिलाओं की ओर से बड़े पैमाने पर शुरू प्रदर्शन ने इसे राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया है।
महिलाएं अपने हाथों में लाठी और झाड़ू लेकर सड़कों पर उतरी थीं। वो शाहजहां शेख़, शिबू हाजरा और उत्तम सरदार की गिरफ्तारी की मांग कर रही थीं। महिलाओं का आरोप था कि राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ये तीन नेता और उनके सहयोगी लंबे समय से इलाक़े के लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं।
उन पर यौन उत्पीड़न और खेती की ज़मीन पर जबरन कब्ज़े का आरोप भी लगा था। शिबू हाजरा और उत्तम सरदार फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में हैं। वहीं शाहजहां शेख़ फ़रार हैं। इसलिए इन आरोपों पर उनकी टिप्पणी नहीं मिल सकी है।
पीठा-पुली बनाने के लिए बुलाते थे
जो लोग ऐसे आरोप लगा रहे हैं, वो कहां मिलेंगे। इस सवाल पर संदेशखाली बाज़ार में एक दुकानदार ने कहा, "संदेशखाली का लगभग हर आदमी यह आरोप लगा रहा है। आप किसी भी मोहल्ले में चले जाइए, आपको सुनने को मिलेगा कि कुछ सालों से कैसा अत्याचार चल रहा है।"
बैटरी-चालित रिक्शे से कुछ दूर जाने पर कुछ महिलाएं और पुरुष सड़क के किनारे बांस काटते नज़र आए। लेकिन साथ में कैमरा देख कर वे किसी भी शर्त पर बातचीत के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। एक महिला ने कहा, "मीडिया में हमारे चेहरे नज़र आने पर हमले का डर है। इससे पहले जिन लोगों ने मीडिया से बात की है उन पर हमले हुए हैं और धमकियां मिली हैं।"
लेकिन कुछ देर बाद उनमें से एक महिला मुंह ढक कर बात करने के लिए राज़ी हो गई। उन्होंने कहा, "महिलाओं को पीठा-पुली (बंगाल का एक ख़ास तरह का पकवान है जिसे चावल के आटे में खोवा भर कर बनाया जाता है।) बनाने के लिए ले जाते थे। क्या उनके घर मां-बहन नहीं है? क्या उनके घर कोई पीठा-पुली नहीं बनाता? सुंदर माताओं-बहनों को ले जाकर पीठा-पुली क्यों बनवाया जाता था? कभी पीठा-पुली बनाने के बहाने तो कभी मांस और भात के पिकनिक के नाम पर तो कभी पार्टी की मीटिंग के नाम पर बुला लिया जाता था। इन बुलावों का कोई निर्धारित समय नहीं होता था।"
कुछ देर बाद एक अन्य महिला ने कहा, "शाम को सात बजे, रात को नौ बजे, 10 बजे और यहाँ तक कि रात को 11 बजे तक भी बुलाते थे। तृणमूल कांग्रेस के दफ्तर में मीटिंग के लिए बुलाने पर जाना अनिवार्य था। जो लोग नहीं जाते थे उनके घर के पुरुषों के साथ अगले दिन मार-पीट की जाती थी।"
एक पुरुष ने कैमरे से मुंह फेर कर कहा, "मान लें कि अगर आज मीटिंग है तो उनको तृणमूल कांग्रेस के दफ्तर में ले जाते थे। सुंदर और कम उम्र वाली महिलाओं और युवतियों को चुन-चुन कर भीतर ले जाते थे। बच्चों और बुज़ुर्ग महिलाओं को बाहर बिठा देते थे। भीतर ले जार दरवाज़े बंद कर लेते थे। भीतर क्या होता था, यह नहीं बता सकता।"
भीतर आख़िर महिलाओं के साथ क्या होता था? इस सवाल पर लगभग सबका कहना है कि इस बारे में पूछने पर महिलाएं कहती थीं कि इस शर्मनाक बात को कैसे बताऊं।
एक अन्य महिला बताती हैं, "वहां महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया जाता था। क्या कोई महिला या युवती इस अत्याचार की बात अपने मुंह से कह सकती है? पुलिस के पास जाने पर वह उन नेताओं के पास जाकर ही विवाद ख़त्म करने की सलाह देती थी। पानी सिर के ऊपर से गुज़रने के बाद ही हम रास्ते पर उतरने पर मजबूर हुई हैं।"
संदेशखाली के विभिन्न गांवों में घूमकर हमें ऐसी कोई महिला नहीं मिली जो ख़ुद यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हो।
सामूहिक बलात्कार का आरोप
शुरुआत में इन आरोपों की सच्चाई पर कइयों के मन में संदेह हुआ था। सवाल उठ रहे थे कि सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में महिलाओं पर इतने दिन तक चले अत्याचारों के बावजूद कहीं से यह मामला किसी तरह बाहर क्यों नहीं आया?
संदेशखाली में बवाल शुरू होने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा था कि उस इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गढ़ है।
मुख्यमंत्री का कहना था, "उस इलाके में आरएसएस का संगठन है। सात-आठ साल पहले वहां दंगे भी हुए थे। वह इलाका दंगों के लिहाज़ से संवेदनशील है। हमने सरस्वती पूजा के दिन कड़ाई से परिस्थिति को नियंत्रण में लिया था। वरना योजना कुछ और ही थी।"
लेकिन मुख्यमंत्री जिस घटना के पीछे आरएसएस का हाथ होने की बात कह रही हैं, उसके प्रवक्ता डा। जिष्णु बसु उल्टे सवाल करते हैं, "अगर वहां हमारा संगठन इतना ताक़तवर होता तो क्या कोई ऐसा अमानवीय काम कर सकता था ?"
आख़िरकार प्रदर्शन शुरू होने के क़रीब दो हफ्ते बाद दो महिलाओं ने सामूहिक बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने संदेशखाली का दौरा किया है। उन्होंने खुद बताया है कि कम से कम दो महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है।
शर्मा का कहना था, "संदेशखाली में कई महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया गया है। मुझे खुद बलात्कार के दो मामलों की शिकायत मिली है। बलात्कार की एक शिकायत तो मैंने आज खुद खड़े होकर दर्ज कराई है।"
इससे पहले एक अन्य महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज गोपनीय बयान में बलात्कार का आरोप लगाया था।
कौन हैं शाहजहां, शिबू और उत्तम?
शाहजहां और शिव प्रसाद हाजरा दोनों उत्तर 24-परगना ज़िला परषिद के सदस्य हैं। शेख़ ज़िला परिषद के मत्स्य और पशुपालन विभाग के प्रमुख हैं। यह दोनों संदेशखाली के दो अलग-अलग इलाकों में तृणमूल कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष हैं। उत्तम सरदार इनके सहयोगी हैं।
लेकिन शाहजहां शेख़ ही इलाके के एकछत्र नेता हैं। वे कभी सीपीएम में थे। लेकिन वाममोर्चा शासन के आख़िरी दिनों में तृणमूल कांग्रेस की ओर उनका झुकाव होता रहा और आखिर में वे औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल हो गए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी समय मछली पालने वाले भेरी या तालाब में मज़दूर या वैन रिक्शा चालक के तौर पर काम कर चुके शाहजहां शेख़ इस समय तीन महलनुमा मकानों, 17 गाड़ियों, मछली पालन के कई तालाबों और दो ईंट भट्ठों समेत अपार संपत्ति के मालिक हैं।
मीडिया में पहली बार उसका नाम बीती जनवरी में आया था। राज्य के राशन घोटाले के सिलसिले में पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं।
मल्लिक का करीबी होने की वजह से ईडी की टीम तलाशी के लिए बीती पांच जनवरी को शाहजहां शेख़ के घर गई थी। उस दिन वहां सैकड़ों लोग जमा थे। उन्होंने ईडी के अधिकारियों, उनके साथ मौजूद केंद्रीय बलों के जवानों और पत्रकारों के साथ मार-पीट कर उनको भगा दिया था।
इसके बाद से ही शाहजहां शेख़ फ़रार हैं। अब जिनकी खेती की ज़मीन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया था वह लोग सरकारी अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज करा रहे हैं।
खेती की ज़मीन में खारा पानी
स्थानीय लोगों का आरोप है कि शाहजहां शेख़ और उनके करीबी तृणमूल कांग्रेस नेताओं ने आम लोगों से छीन कर ही संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा अर्जित किया है। संदेशखाली के लोगों ने सामूहिक याचिका देकर ज़मीन पर जबरन कब्ज़े का आरोप लगाया है।
एक मोहल्ले में हमारी मुलाकात एक सरकारी टीम से हुई। वहां कई लोग अपनी ज़मीन के कागज़ात लेकर पहुंचे थे।
उन में उर्मिला दास नामक महिला भी थीं। उन्होंने कहा, "मेरे खेत में साल में तीन बार धान पैदा होता था। दो साल पहले शिबू हाजरा ने उसमें खारा पानी घुसा दिया। वहां अब मछली पालने के लिए तालाब बना दिया गया है। उसने लीज के बदले एक साल कुछ पैसे दिए थे। उसके बाद कुछ भी नहीं दिया है। मेरे पास बस उतनी ही ज़मीन थी। अब मज़दूरी करके पेट पालना होता है। पैसे मांगने के लिए जाने पर वह लोग अपमानित करते थे। सरकार से मेरी अपील है कि मेरी ज़मीन लौटाई जाए। हम वहां फिर से खेती करेंगे।"
कालिंदी नदी के किनारे बने बांध से गुज़रते समय गांव के एक व्यक्ति ने बताया, "शिबू हाजरा यहीं से नदी का खारा पानी खेती की ज़मीन में घुसा देता था। उन लोगों ने गांव में फुटबॉल के मैदान पर भी कब्ज़ा कर लिया है।"
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
तृणमूल कांग्रेस एक बेहद संगठित पार्टी है। एक ओर उसके पास मज़बूत संगठन है, जिसके ज़रिए तमाम सूचनाएं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच जाती हैं। वहीं दूसरी ओर पुलिस और खुफिया विभाग है।
तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता लंबे समय से संदेशखाली के लोगों पर कथित तौर पर अत्याचार करते रहे और वह सूचना शीर्ष नेतृत्व तक क्यों नहीं पहुंची? अगर पहुंची तो पार्टी ने पहले कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
यह सवाल जब पार्टी के प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती से पूछा तो इस पर उन्होंने कहा, "कथित रूप से दस साल से यह अत्याचार चलता रहा। लेकिन किसी भी व्यक्ति ने न तो फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखी और न ही कोई शिकायत दर्ज कराई। संदेशखाली से दस साल तक विधायक रहे सीपीएम नेता निरापद सरदार और बीजेपी नेता विकास सिंह भी तो एफआईआर दर्ज करा सकते थे! यह आरोप अब तक सामने क्यों नहीं आए थे?"
उनका कहना था कि 'अगर अपवाद स्वरूप ऐसी कोई घटना हुई है और किसी की ज़मीन पर जबरन कब्ज़ा किया गया है तो उसकी शिकायत की व्यवस्था है। पुलिस उसकी जांच करेगी। पुलिस की कार्रवाई का पता इसी बात से चलता है कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं समेत कई लोग गिरफ्तार किए गए हैं।'
अरूप चक्रवर्ती का कहना था कि "लोकसभा चुनाव नज़दीक आने पर सांप्रदायिक ताकतें अशांति पैदा करने का प्रयास करेंगी। बंगाल को बदनाम करने का प्रयास किया जाएगा। हर बार चुनाव में यही किया जाता है। यही बीजेपी का चरित्र है।"
वहीं संदेशखाली के लोगों का कहना है कि वो तो तृणमूल कांग्रेस के ही समर्थक हैं, वो ममता बनर्जी की पार्टी को ही वोट देते हैं।
इस समय पूरे संदेशखाली में भगवा झंडे लहरा रहे हैं। देखने से साफ पता चलता है कि उनको हाल में ही लगाया गया है। कुछ घरों पर छिपा कर 'जय श्रीराम' लिखा भी नज़र आता है। हालांकि बीजेपी या आरएसएस का नाम न तो झंडों पर है और न दीवारों पर।
भाजपा ने संदेशखाली मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा दिया है। उनके नेता रोज़ संदेशखाली जाने का प्रयास कर रहे हैं। पुलिस उन्हें जाने नहीं दे रही है। इसको लेकर रोज़ भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं और पुलिस में कहासुनी और धक्का-मुक्की होती है। इसकी तस्वीरें और वीडियो टेलीविजन चैनलों के ज़रिए पूरे देश में फैल रहे हैं।
बीजेपी प्रवक्ता केया घोष कहती हैं, "संदेशखाली में महिलाओं के उत्पीड़न की बात देशभर में पहुंचा कर हम चुनाव नहीं जीतना चाहते। हम स्थानीय महिलाओं की स्थिति को पूरे देश के सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि राज्य की महिला मुख्यमंत्री हैं जो कहती हैं कि बंगाल अपनी लड़की को ही चाहता है। लेकिन वो बंगाल की लड़कियों की दुर्दशा को सामने लाने में नाकाम रही हैं।"
उनका कहना था, "महिलाएं खुद कह रही हैं कि वो तृणमूल कांग्रेस की समर्थक हैं। इसके बावजूद अगर पीठा बनाने के नाम पर पार्टी के दफ्तर में बुला कर मनोरंजन के लिए उनका इस्तेमाल किया जाता है तो इससे ज़्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है?"
राष्ट्रीय मीडिया में मिलने वाली कवरेज और बीजेपी की ताकतवर आईटी सेल द्वारा संदेशखाली के मुद्दे पर सोशल मीडिया पर नियमित पोस्ट से यह मुद्दा पूरे देश में फैल गया है।
दबाव में तृणमूल कांग्रेस
यह समझना मुश्किल नहीं है कि संदेशखाली के कारण लोकसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस कुछ दबाव में है।
राजनीतिक विश्लेषक विश्वज्योति भट्टाचार्य कहते हैं कि बीते करीब दो साल से तृणमूल कांग्रेस के कई नेता और मंत्री भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में गिरफ्तार हो चुके हैं।
वो कहते हैं, "ऐसे हर मामले में पार्टी बीजेपी के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाती रही है। लेकिन इस बार ताकतवर स्थानीय नेताओं के ख़िलाफ़ आरोप स्थानीय लोगों ने ही लगाए हैं। इसलिए तृणमूल कांग्रेस काफी दबाव में है। इसके साथ ही केंद्रीय आयोग की टीमें लगातार राज्य का दौरा कर रही हैं और राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर रही हैं। मेरी राय में तृणमूल कांग्रेस पहली बार ऐसे विरोध और चुनौती का सामना कर रही है।"
संदेशखाली की घटनाओं से साफ है कि पार्टी और प्रशासन ने डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू कर दी है। उत्तर 24-परगना के दो ताकतवर मंत्री इलाके का दौरा कर चुके हैं। हर मोहल्ले में पुरुषों और महिलाओं को 'समझाया' जा रहा है।
ज़मीन पर कब्ज़े के आरोप की जांच के लिए सरकारी कर्मचारी गांव-गांव घूम रहे हैं। हर गांव में पुलिस का पहरा बिठाया गया है। खुद पुलिस महानिदेशक भी गांव में एक रात बिता चुके हैं। वे बैटरी-चालित रिक्शा से पूरे द्वीप में घूम चुके हैं।
शुक्रवार को संदेशखाली में नए सिरे से बवाल शुरू होने और तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय नेता के साथ मारपीट की घटना के बाद पुलिस महानिदेशक दोबारा मौके पर पहुंचे।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या तृणमूल कांग्रेस इस दबाव को संभाल पाने में कामयाब होगी? या बीजेपी को संदेशखाली का चुनावी फायदा मिलेगा? इन सवालों का जवाब तो चुनाव के बाद ही मिलेगा।