ईरान के सैन्य कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी के जनाज़े में शामिल होने के लिए शनिवार को इराक़ की राजधानी बग़दाद में लोगों की भारी भीड़ सड़कों पर उतर आई।
शुक्रवार को अमेरिकी हमले में क़ासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी। बग़दाद हवाई अड्डे के बाहर हुए हवाई हमले में सुलेमानी समेत पाँच ईरानी और पाँच इराक़ी लोग मारे गए थे।
सुलेमानी ईरान की बहुचर्चित कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख थे। यह फ़ोर्स ईरान द्वारा विदेशों में चल रहे सैन्य ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए जानी जाती है।
सुलेमानी ने वर्षों तक लेबनान, इराक़, सीरिया समेत अन्य खाड़ी देशों में योजनाबद्ध हमलों के ज़रिये मध्य-पूर्व में ईरान और उसके सहयोगियों की स्थिति को मज़बूत करने का काम किया था।
सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता रहा। उनकी मौत के बाद ये माना जा रहा है कि ईरान इसका बदला ज़रूर लेगा।
शनिवार को बग़दाद शहर में एक विशाल शोक सभा के बाद सुलेमानी के शव को ईरान भेजा जाएगा। फिर सुलेमानी के गृह ज़िले केरमान (केंद्रीय ईरान) में जनाज़े की नमाज़ के बाद उनके शव को दफ़्न किया जाएगा।
बग़दाद में जमा भीड़ कमांडर अबु महदी अल-मुहांदिस की मौत का भी शोक मना रही है। कमांडर अबु ईरान के समर्थन वाले कताइब हिज़्बुल्लाह गुट के प्रमुख थे।
हालांकि इराक़ में एक तबका ऐसा भी है जिसने सुलेमानी की मौत की ख़बर पर जश्न मनाया। इनके अनुसार सुलेमानी पर बीते कुछ महीने में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोकतंत्र समर्थक लोगों पर हिंसक कार्रवाई करवाने का आरोप था। सुलेमानी के जनाज़े में शामिल होने के लिए सुबह के घंटों में ही बग़दाद की सड़कों पर भीड़ जमा होनी शुरू हो गई थी।
'तीन दिन का शोक'
भीड़ में शामिल लोगों ने हाथों में इराक़ के झंडे थाम रखे हैं, कुछ के हाथों में क़ासिम सुलेमानी और ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई की तस्वीरें हैं। ये लोग रह-रहकर 'अमेरिका मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे हैं।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार सुलेमानी के शव को शनिवार शाम विमान से ईरान ले जाया जाएगा जहाँ तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जा चुकी है। इन रिपोर्टों के अनुसार सुलेमानी के शव को मंगलवार को दफ़्न किया जाएगा।
बीबीसी की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संवाददाता लीज़ डुसेट के अनुसार अब ईरान के नेताओं की प्राथमिकता यह होगी कि वे क़ासिम सुलेमानी की मौत पर एक ठोस संदेश दें जिससे पता चल सके कि ईरान के लिए सुलेमानी कितने महत्वपूर्ण थे।
सुलेमानी एक सैन्य अधिकारी के तौर पर ईरान के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। वे एक महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया अधिकारी थे। उन्हें ईरान का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक चेहरा कहना भी ग़लत नहीं होगा।
क़ासिम सुलेमानी को मध्य-पूर्व में ईरान की महत्वाकांक्षा के मास्टरमाइंड और बात जब युद्ध और शांति की हो तो वास्तविक विदेश मंत्री के रूप में देखा जाता था।
इसलिए अब ईरान अपने सभी बड़े शहरों में एक लोकप्रिय नेता की मौत पर जुलूस आयोजित करने की कोशिश करेगा। साथ ही उन्हें एक शहीद के रूप में प्रस्तुत करने की भी कोशिश होगी।
इस बीच इराक़ के सरकारी टीवी चैनल ने कहा है कि शुक्रवार को सुलेमानी की हत्या के 24 घंटे बाद इराक़ में एक और हवाई हमला हुआ।
इराक़ी फ़ौज के एक सूत्र ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि शनिवार सुबह हुए इस दूसरे हवाई हमले में छह लोग मारे गए हैं।
हालांकि अमेरिकी सेना के एक प्रवक्ता ने कहा है कि दूसरे हवाई हमले के पीछे अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन का हाथ नहीं है।
अमेरिकी ने कहा है कि सुलेमानी की मौत के बाद ईरान की किसी भी कार्रवाई का जवाब देने के लिए उसने मध्य-पूर्व में तीन हज़ार अतिरिक्त सैन्य बलों की तैनाती का फ़ैसला किया है।
सुलेमानी को दुश्मन क्यों मानता था अमेरिका
अमेरिका ने क़ुद्स फ़ोर्स को 25 अक्टूबर 2007 को ही आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था और इस संगठन के साथ किसी भी अमेरिकी के लेनदेन किए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया।
सद्दाम हुसैन के साम्राज्य के पतन के बाद 2005 में इराक़ की नई सरकार के गठन के बाद से प्रधानमंत्रियों इब्राहिम अल-जाफ़री और नूरी अल-मलिकी के कार्यकाल के दौरान वहां की राजनीति में सुलेमानी का प्रभाव बढ़ता गया। उसी दौरान वहां की शिया समर्थित बद्र गुट को सरकार का हिस्सा बना दिया गया। बद्र संगठन को इराक़ में ईरान की सबसे पुरानी प्रॉक्सी फ़ोर्स कहा जाता है।
2011 में जब सीरिया में गृहयुद्ध छिड़ा तो सुलेमानी ने इराक़ के अपने इसी प्रॉक्सी फ़ोर्स को असद सरकार की मदद करने को कहा था जबकि अमेरिका बशर अल-असद की सरकार को वहां से उखाड़ फेंकना चाहता था। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध और सऊदी अरब, यूएई और इसराइल की तरफ़ से दबाव किसी से छुपा नहीं है।
और इतने सारे अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच अपने देश का प्रभाव बढ़ाने या यूं कहें कि बरक़रार रखने में जनरल क़ासिम सुलेमानी की भूमिका बेहद अहम थी और यही वजह थी कि वो अमेरिका, सऊदी अरब और इसराइल की तिकड़ी की नज़रों में चढ़ गए थे। अमेरिका ने उन्हें आतंकवादी भी घोषित कर रखा था।