सरोज सिंह (बीबीसी संवाददाता)
कोरोना महामारी के बीच भारत की अर्थव्यवस्था अब भी बीमार पड़ी है। सोमवार को जारी हुए जीडीपी के आंकड़ों में थोड़ा सुधार दिख रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जहां क़रीब 8 फ़ीसदी गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा था। वहीं यह आंकड़ा 7.3 प्रतिशत पर ही थम गया है। और इसी अवधि की चौथी तिमाही में यानी जनवरी से मार्च के बीच जहां 1.3% बढ़त का अंदाज़ा था, वहां 1.6% बढ़त दर्ज हुई है। लेकिन इन आंकड़ों के आधार पर अब भी स्थिति ऐसी नहीं लगती कि अर्थव्यवस्था तुरंत खड़ी होकर दौड़ने लगे।
अर्थव्यवस्था किस हद तक बीमार है और उसका इलाज कितना ज़रूरी है, इसका अंदाजा चार-पांच पैमानों से लगाया जा सकता है। जीडीपी के आंकड़े (जो सोमवार को जारी किए गए) बेरोजगारी दर (जो लगातार बढ़ रही है) महंगाई दर (खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं) और लोगों के खर्च करने की क्षमता (आमदनी नहीं तो खर्च कहां से करें)।
इन सभी पैमानों पर पिछले 1 साल में सूरत में बहुत बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है। यही है भारत की बीमार अर्थव्यवस्था के कारण।
हालांकि ख़ुद को अर्थव्यवस्था का डॉक्टर बताने वाली मोदी सरकार ने बीमारी के इलाज की काफी कोशिशें की है। लेकिन सरकार बीमार को ठीक करने में सफ़ल नहीं हुई। इसलिए पता लगाने की ज़रूरत है कि ग़लती कहां हुई।
बीमार पड़ी अर्थव्यवस्था आईसीयू में ना पहुंचे इसके लिए कोरोना की पहली लहर में मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की थी।
सोमवार को जो आंकड़े आए, वो जनवरी से मार्च महीने के हैं जब कोरोना का डर लोगों में ना के बराबर था। सरकार भी महामारी पर काबू की बात कर रही थी और लगभग सभी आर्थिक गतिविधियां पर पाबंदियां हट चुकी थी।
तो ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी के 20 लाख करोड़ के मेगाबूस्टर डोज का बस यही असर है और अगर जवाब नहीं है तो उस राहत पैकेज का आख़िर हुआ क्या और उसका असर कब दिखाई देगा? और क्या सरकार उतना ख़र्च कर पाई जितना उसने वादा किया था?
20 लाख करोड़ का लेखा-जोखा
26 मार्च 2020- भारत में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के बाद के प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज की घोषणा की गई थी ताकि मज़दूरों को जीने-खाने और घर चलाने संबंधी बुनियादी दिक़्क़तों का सामना ना करना पड़े। इस पैकेज में ग़रीबों के लिए 1.92 लाख करोड़ ख़र्च करने की योजना थी।
13 मई 2020- वित्तमंत्री ने पहले दिन 5।94 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ब्यौरा दिया था जिसमें मुख्य रूप से छोटे व्यवसायों को क़र्ज़ देने और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा बिजली वितरण कंपनियों को मदद के लिए दी जाने वाली राशि की जानकारी दी गई।
14 मई 2020- इस दिन 3।10 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणाएं की थी।
15 मई 2020- लगातार तीसरे दिन 1.5 लाख करोड़ रुपए ख़र्च करने का ब्यौरा दिया था जो खेती-किसानी के लिए था।
16 मई और 17 मई 2020- चौथे और पांचवें दिन संरचनात्मक सुधारों के लिए होने वाले 48,100 करोड़ रुपए ख़र्च का ब्यौरा दिया। इनमें कोयला क्षेत्र, खनन, विमानन, अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर शिक्षा, रोज़गार, व्यवसायों की मदद और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के लिए सुधार के उपाय शामिल थे। साथ ही राज्यों को अतिरिक्त मदद देने की भी घोषणा की गई।
वहीं रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी 8,01,603 करोड़ रुपए के उपायों का एलान किया था। उसे भी इसी पैकेज का हिस्सा माना गया।
ऊपर लिखे तमाम पैकेज को जोड़कर सरकार ने 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर पैकेज नाम दिया था।
कहां-कहां कितना ख़र्च हुआ?
ये तो हुई घोषणाओं की बात। लेकिन धरातल पर इसमें से कितना ख़र्च हुआ? यही जानने के लिए हमने बात की पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि इसमें से 10 फ़ीसद भी 'असल ख़र्च' नहीं हुआ।
उनके मुताबिक़, 'आरबीआई का 8 लाख करोड़ का लिक्विडिटी पैकेज था जिसे इसमें जोड़ा ही नहीं जाना चाहिए था। लिक्विडिटी आरबीआई ने अपनी तरफ़ से ऑफ़र किया, लेकिन बैंकों ने ली नहीं। इसका सबूत है कि क्रेडिट ग्रोथ। इस बार का क्रेडिट ग्रोथ अब भी 5-6 फ़ीसदी के बीच ही है, जो एतिहासिक रूप से कम है।'
पूर्व वित्त सचिव का मानना है कि 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में राहत की बात केवल 4-5 लाख करोड़ की ही थी, जो सरकार को ख़र्च करना था। इसमें से सरकार ने प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज के तहत प्रवासी मजदूरों के लिए ही 1 लाख करोड़ से 1.5 लाख करोड़ ख़र्च किया। इसके अलावा कुछ और मदों में हुए ख़र्च को जोड़ कर देखें तो केंद्र ने 2 लाख करोड़ से ज़्यादा इस पैकेज में ख़र्चा नहीं किया है।'
भारत सरकार के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन भी सुभाष चंद्र गर्ग की बात से कुछ हद तक सहमत दिखते हैं, पर पूरी तरह से नहीं।
वो मानते हैं कि 20 लाख करोड़ के पैकेज में 15 लाख करोड़ कर्ज़ लेना और ऋण चुकाने के तौर पर ही था। इस हिस्से से सरकार ने बहुत हद तक ख़र्च किया भी। इससे ये हुआ कि जो लघु, मध्यम और बड़े उद्योग बंद होने की कगार पर थे, उनके बंद होने की नौबत नहीं आई। लॉकडाउन खुलने के बाद वहां कामकाज दोबारा से शुरू हो सका। इसमें दिक़्क़त नहीं आई। अर्थव्यवस्था को इस लिहाज से आत्मनिर्भर भारत पैकेज ने मदद की।
सरकार को 5 लाख करोड़ तक ही असल ख़र्च करना था जिसमें से 2-3 लाख करोड़ सरकार ने ख़र्च ग़रीबों के अकाउंट में डाल कर, मनरेगा में, उनको मुफ़्त अनाज बांटने में ख़र्च किया।
प्रणव सेन कहते हैं, '20 लाख करोड़ के पैकेज का नाम सुन कर लोगों को लगा कि मार्केट में 20 लाख करोड़ रुपए एक साथ आ जाएंगे, वो लोगों का वहम था। असल में केवल 2.5- 3 लाख करोड़ ही आए।'
प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज
केंद्र सरकार ने सिंतबर 2020 में आंकड़ा जारी कर कहा था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 42 करोड़ ग़रीबों पर 68 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च किए।
इसमें सरकार ने जन धन खाते में पैसा डालने से लेकर पीएम-किसान योजना, मनेरगा और प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना सब जोड़ कर अपना हिसाब दिखाना।
कोरोना के दूसरी लहर के बीच अप्रैल में केंद्र सरकार ने 80 करोड़ ग़रीबों को मुफ़्त अनाज देने की घोषणा की और बताया कि इस पर 26 हज़ार करोड़ ख़र्च किया जाएगा।
प्रणब सेन कहते हैं, मुफ़्त में अनाज देने से एक अच्छी बात ये हुई कि ग़रीबों का पैसा आपने बचाया, जो वो दूसरी जगह ख़र्च कर पाए। इस तरह से मार्केट में पैसा आया।
सरकार की योजना का लाभ छोटे व्यापारियों को कितना मिला ये जानने के लिए हमने बात की कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल से। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, 'मुश्किल दौर में व्यापारियों ने सप्लाई चेन को बनाए रखा था। लेकिन जब बारी व्यापारियों की मदद की थी तो उन्हें राहत पैकेज से कोई राहत नहीं मिली।'
राहत पैकेज लागू करने से जुड़ी समस्या को गिनाते हुए वो कहते हैं कहीं नियम आड़े आए तो कहीं काग़जों की कमी। जिनके लिए योजनाएं बनी, उन तक पहुंच ही नहीं पाई।
इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम
सुभाष चंद्र गर्ग, प्रणब सेन और प्रवीण खंडेलवाल की बात पर मुहर एक आरटीआई से भी लगती है।
पुणे के बिजनेसमैन प्रफुल्ल सारडा ने पिछले साल दिसंबर में सरकार से आत्मनिर्भर पैकेज के तहत किए गए ख़र्चे का हिसाब मांगा था। इसका आरटीआई के जवाब में वित्त मंत्रालय ने कहा कि इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम जिसमें 3 लाख करोड़ की रकम कर्ज़ के तौर पर दी जानी थी, उसमें से केवल 1.2 लाख करोड़ ही दी गई थी।
बीबीसी से बात करते हुए प्रफुल्ल सारडा ने बताया कि ये पैकेज एक जुमला था। इससे किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने दिसंबर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बारे में अलग से घोषणा की थी कि किस क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के तहत कितना पैसा ख़र्च किया गया। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में इनकम टैक्स रिफंड को भी आत्मनिर्भर पैकेज का हिस्सा बताया गया था।
पैकेज की घोषणा के 6 महीने बाद भी कई योजनाओं के लिए नियमों तक नहीं बनाए गए थे। ज़्यादातक रकम ढांचागत सुधार के क्षेत्र में दिखाए गए जिससे मजदूरों और दूसरे छोटे काम धंधा करने वालों को लाभ नहीं मिला।
समाधान क्या है?
पूर्व वित्त सचिव एससी गर्ग कहते हैं, 'सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐसे पैकेज की ज़रूरत है जिससे लोगों के हाथ में पैसा मिले। बिजली कंपनी को पैसा देने से कुछ नहीं होगा। बिजनेस को, मजदूरों को जितना नुक़सान होता है, उनको इस पैकेज कि ज़रूरत है ताकि वो अपने ख़र्चे सपोर्ट कर सकें। अगर सरकार मदद करेगी, तो ही ऐसे लोग ख़र्च कर पाएंगे। इसी को असल राहत पैकेज कहते हैं।
इस बार कोरोना की दूसरी लहर में पूर्ण लॉकडाउन नहीं हुआ, इस वजह से दिक़्क़त उतनी नहीं हुई। लेकिन मजदूरों और छोटे और मध्यम व्यापारों को आज भी राहत पैकेज की ज़रूरत है, ताकि वो ख़र्च कर सकें।