फ्रैंक गार्डनर, बीबीसी रक्षा संवाददाता
ज़मीन के नीचे रहस्यमयी विस्फोट, अनाम साइबर हमले और पश्चिमी देशों के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए चलाए जाने वाले दबे-छिपे ऑनलाइन कैंपेन। ये सब- 'हाइब्रिड खतरों' के हिस्से हैं। हाल में बीबीसी ने एक ऐसे सेंटर का दौरा किया, जो लड़ाई के नए तरीके पर काम कर रहा है। लेकिन हाइब्रिड युद्ध के इस तौर-तरीके ने नेटो और यूरोपियन यूनियन की चिंता बढ़ा दी है।
हाइब्रिड वॉरफेयर आखिर है क्या? इस सवाल के जवाब में यूरोपियन सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर काउंटरिंग हाइब्रिड थ्रेट्स (हाइब्रिड सीओई) की डायरेक्टर तिजा तिलिकेनन कहती हैं,''दरअसल हाइब्रिड वॉरफेयर इनफॉरमेशन स्पेस का मैन्युपुलेशन है। इसका मतलब किसी देश के अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हमला है। हेल्सिंकी (फिनलैंड) में इस सेंटर की स्थापना आज से चार साल पहले हुई थी।
तिलिकेनन कहती हैं, ''हाइब्रिड वॉरफेयर की धमकी काफी अस्पष्ट होती है। यही वजह है जिन देशों पर इस तरह के हमले होते है वो खुद को इससे बचाने और इसका जवाब देने में काफी मुश्किलों का सामना करते हैं।'' लेकिन हाइब्रिड लड़ाइयों के खतरों ने अब वास्तविक रूप ले लिया है इससे तमाम देशों की चिंता बढ़ी हुई है।
पिछले साल सितंबर बाल्टिक सागर में पानी के नीचे हुए विस्फोटों ने नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन में छेद कर दिया था। डेनमार्क और स्वीडन के तट के बीच इस पाइपलाइन को इससे काफी नुकसान पहुंचा था। ये पाइपलाइन रूस से जर्मनी तक गैस पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
विस्फोट के बाद रूस ने साफ कहा कि इस विस्फोट में उसका कोई हाथ नहीं है। लेकिन पश्चिमी देशों को शक था कि ये विस्फोट रूस ने करवाया होगा ताकि वो यूक्रेन को समर्थन करने वाले जर्मनी की गैस सप्लाई बंद कर उसे सजा दे सके।
चुनावों में दखल का खतरा
हाइब्रिड युद्ध के तहत चुनावों में भी दखल दिया जा सकता है। बहुत कम लोगों ने गौर किया था कि 2016 के अमेरिकी चुनाव के बाद रूस ने वहां की चुनावी प्रक्रिया में लगातार दखल देना शुरू किया था।
रूसी अभियान ने हिलेरी क्लिंटन को अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में इस तरह का अभियान चलाया था। हालांकि रूस इससे इनकार करता है।
कहा जाता है कि इसने पुतिन सरकार समर्थित साइबर कार्यकर्ताओं के नियंत्रण वाले अकाउंट्स के जरिये ऑनलाइन बोट्स (रोबोट्स) का इस्तेमाल कर खूब दुष्प्रचार किया गया।ये भी कहा जाता है इसके लिए सेंट पीटर्सबर्ग में 'ट्रोल फैक्ट्रियां' रात-दिन काम कर रही थीं।
हाइब्रिड युद्ध का एक और अहम तरीका है दुष्प्रचार करना। इसके तहत आबादी के एक वर्ग को रास आने वाला वैकल्पिक और झूठे नैरेटिव का प्रचार किया जाता है। यूक्रेन पर रूस पर हमले के बाद ये परिघटना और तेज हो गई है।
न सिर्फ रूस बल्कि पश्चिमी दुनिया के भी कुछ देश भी रूस के इस तर्क को सही मानने लगे हैं कि यूक्रेन पर उसका हमला आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई है।
नेटो और यूरोपियन यूनियन ने हाइब्रिड युद्ध के खतरे को पहचानने और उन्हें इनसे बचने में मदद करने के लिए फिनलैंड में हाइब्रिड सीओई बनाया है। इस लिहाज से फिनलैंड का चयन दिलचस्प है। फिनलैंड 1940 में रूस से एक संक्षिप्त लड़ाई में हार के बाद निष्पक्ष बन गया था।
लेकिन रूस और फिनलैंड के बीच 1300 किलोमीटर की लंबी सीमा है। लिहाजा फिनलैंड डरा हुआ है और तेजी से पश्चिमी देशों के करीब जा रहा है। पिछले साल फिनलैंड ने नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था।
कैसे काम कर रहा है हाइब्रिड युद्ध विरोधी सेंटर
एक ठंडी, बर्फीली सुबह मैंने हाइब्रिड सीओई का दौरा किया। ये फिनलैंड के रक्षा मंत्रालय के नजदीक ही एक दफ्तर से काम करता है। ये सोवियत रूस के जमाने की बिल्डिंग में बने रूसी दूतावास के भी नजदीक है।
सेंटर की डायरेक्टर तिजा तिलिकेनन यहां 40 विश्लेषकों और संबंधित विषयों के जानकारों की एक टीम के साथ काम करती हैं और उनका नेृतृत्व भी करती हैं।
ये सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स नेटो और यूरोपियन यूनियन के देशों के हैं। इसमें ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय के भी एक एक्सपर्ट शामिल हैं, जिन्हें थोड़े दिनों के लिए वहां से बुलाया गया है।
वो बताती हैं कि फिलहाल उनका फोकस एरिया आर्कटिक हैं। वहां उन्होंने भविष्य में इस तरह के हाइब्रिड युद्ध की धमकियों की संभावना दिखी है। ''
वो बताती हैं, '' इस वक्त कई एनर्जी स्रोत उभर रहे हैं। इस बात की काफी संभावना है कि दुनिया की बड़ी ताकतें अपने हितों रक्षा के लिए ज्यादा सक्रिय दिखें। इसके साथ ही इस वक्त सूचनाओं को तोड़ने-मोड़ने का सिलिसिला भी काफी चल रहा है''
वो कहती हैं, '' रूसी नैरेटिव ये है कि संघर्ष क्षेत्र से बाहर आर्कटिक एक खास क्षेत्र है, जहां कुछ भी बुरान नहीं हो रहा है। लेकिन वास्तविकता ये है कि रूस यहां अपने मिलिट्री बेस बना रहा है। ।''
तिजा तिलिकेनन का कहना है कि वास्तविक युद्ध से हाइब्रिड युद्ध को अलग करने वाली एक विशेषता ये है कि इसमें कभी भी आमने-सामाने साक्षात लड़ाई नहीं होती।
ऐसी लड़ाई, जिसमें कोई बिल्कुल सामने आकर गोली मार रहा हो। ये बिल्कुल ढका-छिपा होता है और ये अंदर ही अंदर चलता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये कम खतरनाक है।
इस तरह की लड़ाई छद्म होती है। ये पता करना मुश्किल होता है कि इन हमलों के पीछे किसका हाथ है। 2007 में एस्टोनिया में हुआ भयावह साइबर हमला ऐसी ही लड़ाई का हिस्सा है।
खतरा कितना बड़ा ?
पिछले साल बाल्टिक सागर के अंदर से गुजर रही पाइपाइलन में विस्फोट हुआ था। इसे अंजाम देने वालों इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि कोई सुबूत न छूटे।
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे इस तरह के नुकसान पहुंचाए जा सकते हैं। सेंटर में एक हैंडबुक में चित्र के जरिये ये दिखाया गया है। इसमें समुद्र में हाइब्रिड युद्ध की धमकी देने के संभावित तरीकों का ब्योरा दिया गया था। इसमें काल्पनिक से लेकर संभावित युद्ध के दस हालातों का जिक्र किया गया था।
इनमें पानी के अंदर के हथियारों के छिपे तरीके से इस्तेमाल से लेकर द्वीप के चारों ओर एक कंट्रोल जोन घोषित करने और किसी समुद्र में किसी संकीर्ण पट्टी को बंद करने जैसी रणनीति का जिक्र था।
इस सेंटर में काम कर रही टीम ने एक वास्तविक हालात का जायजा लिया था।ये घटना थी यूक्रेन पर हमले से पहले अज़ोव सागर में रूस की कार्रवाई।
2018 अक्टूबर और इसके बाद यूक्रेनी जहाजों को मारियोपोल और बर्दियांस्क के अपने घरेलू बंदरगाह से केर्च जलडमरूमध्य के जरिये आगे बढ़ने के लिए रूसी अधिकारियों के निरीक्षण से गुजरना पड़ा था।
वलनरबिलिटीज एंड रेजिलिएंस के डायरेक्टर जुक्का सेवोलेनेन का कहना था कि इस निरीक्षण की वजह से यूक्रेनी जहाजों को लंबे वक्त यहां तक यानी लगभग दो सप्ताह तक रुकना पड़ा। इससे यूक्रेन को भारी आर्थिक घाटा हुआ होगा।
भारी दुष्प्रचार
लेकिन दुष्प्रचार के इस दौर में इस सेंटर के विशेषज्ञों को आश्चर्यजनक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। यूरोप में हुए कई ओपिनियन पोल के नतीजों को मिलाने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कई नेटो देशों की एक खासी आबादी के बीच रूस सूचना (दुष्प्रचार) का ये युद्ध जीतता दिख रहा है।
जैसे जर्मनी में एक बड़ी आबादी के बीच ये धारणा बनती जा रही है कि यूक्रेन पर रूस का हमला नेटो की भड़काने वाली कार्रवाई के जवाब में हुआ है। दोनों देशों के बीच चल रही इस लड़ाई के बीच रूस के इस तर्क को लोग सही मानते जा रहे हैं।
स्लोवाक में रायशुमारी में शामिल 30 फीसदी से ज्यादा लोगों ने माना कि यूक्रेन की लड़ाई पश्चिमी देशों की भड़काने वाली कार्रवाई का नतीजा है। हंगरी में 18 फीसदी लोग मानते हैं कि यूक्रेन में रूसी बोलने वाली आबादी पर अत्याचार की वजह से ये लड़ाई भड़की है।
चेक रिपब्लिक के एक सीनियर एनालिस्ट जेकब कालेंस्की रूस के दुष्प्रचार अभियान को दबाने के लिए पानी से जुड़े उदाहरण देते हैं।
वो कहते हैं, '' मैं रूस के दुष्प्रचार अभियान को परिष्कृत नहीं मानता। उन्हें सफलता साइबर स्पेस मेंआकर्षक संदेशों की वजह से नहीं बल्कि संख्या बल की वजह से मिल रही है। ऐसे लोगों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्सेस देने का कोई तुक नहीं बनता। हर कोई नए जल क्षेत्र में पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन हम उन्हें इस पानी की जहरीला बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।''
तिलिकेनन कहती हैं उनके सेंटर की भूमिका सिर्फ इस तरह के हाइब्रिड युद्ध के खतरों के मुकाबले का तरीका ईजाद करने तक सीमित नहीं है। इसकी जिम्मेदारी इस तरह के खतरे के आकलन के बाद इसकी सूचना देना और इसके मुकाबले की ट्रेनिंग देने की है।
बहरहाल, यूरोप में इस तरह की चुनौती लगातार बढ़ रही और इसका सामना करना जरूरी हो गया है।