दिलनवाज़ पाशा (बीबीसी संवाददाता)
6 फुट लंबे संदीप सिंह फतेहगढ़ साहिब से 20 लोगों के साथ प्रदर्शन में शामिल होने आए हैं। 20 लोगों का उनका दल 2 ट्रॉलियों में आया है। उनके समूह से चार लोग वापस गांव जा रहे हैं और उनके बदले 8 लोग आ रहे हैं।
संदीप कहते हैं, 'मेरा 3 एकड़ गेहूं की बुआई रह गई थी। मेरे गांव के लोगों ने मेरे पीछे वो फसल वो दी है।' उन्होंने कहा है कि हम यहां डटे रहें, हमारे पीछे खेती के सारे काम होते रहेंगे। संदीप जैसे दसियों हज़ार किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को हरियाणा से जोड़ने वाली सीमाओं पर डेरा डाल दिया है। वो ट्रॉलियों और ट्रकों से आए हैं और सड़क पर ही जम गए हैं।
वो यहीं पका रहे हैं, यहीं खा रहे हैं और यहीं सो रहे हैं। ये किसान केंद्र सरकार के 3 कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। इन क़ानूनों से कृषि क्षेत्र में निजी सेक्टर के लिए रास्ता खुलेगा। सरकार का तर्क ये है कि ये क़ानून किसानों के हित में हैं और इनसे उनकी आय बढ़ेगी जबकि किसानों का मानना है कि ये सरकार का उनकी ज़मीन क़ब्जा करने के प्लान का हिस्सा हैं।
फंड कहां से आ रहा है?
किसानों के इस आंदोलन को लेकर एक सवाल उठ रहा है कि इसमें फंड कहां से आ रहा है? संदीप और उन जैसे जिन लोगों से हमने बात की, उनका कहना है कि यहां आने के लिए उन्होंने पैसे इकट्ठा किए हैं। संदीप कहते हैं, 'हम जिन ट्रैक्टर से आए हैं वो अधिक तेल खाते हैं। आने-जाने में ही 10 हज़ार का डीज़ल खर्च हो जाएगा। अभी तक मेरा और मेरे चाचा के ही 10 हज़ार रुपए ख़र्च हो चुके हैं।'
लेकिन संदीप को इन पैसों का अफ़सोस नहीं है बल्कि उन्हें लगता है कि उनका ये पैसा उनके भविष्य में लग रहा है। वो कहते हैं, 'अभी तो हमारे बस 10 हज़ार ही ख़र्च हुए हैं, यदि ये क़ानून लागू हो गए तो हम होने वाला नुक़सान का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।'
नृपेंद्र सिंह अपने दल के साथ लुधियाना ज़िले से आए हैं। उनके साथ आसपास के 3 गांवों के लोग हैं। नृपेंद्र सिंह के दल ने भी यहां पहुंचने के लिए चंदा किया है। वो कहते हैं, 'हमने ख़ुद पैसे इकट्ठा किए हैं, गांव के लोगों ने भी बहुत सहयोग किया है। मैं अकेले ही अब तक 20 हज़ार रुपए ख़र्च कर चुका हैं। बाकी जो लोग साथ आए हैं वो सब भी अपनी हैसियत से सहयोग कर रहे हैं।'
एनआरआई कर रहे हैं मदद
नृपेंद्र के मुताबिक विदेश में रहने वाले उनके एक एनआरआई दोस्त ने मदद भेजी है। वो कहते हैं, 'मेरे एक एनआरआई दोस्त ने खाते में 20 हज़ार रुपए डाले हैं और कहा है कि अगर आगे भी ज़रूरत होगी तो वो भेजेगा। उसने कहा है कि वो अपने दोस्तों से भी इकट्ठा करके भेजेगा। हमारे आंदोलन में पैसे की कमी नहीं आएगी।'
प्रदर्शन में शामिल कई लोग जिनसे हमने बात की, उनका कहना था कि उनके एनआरआई दोस्त आंदोलन के बारे में जानकारी ले रहे हैं और पैसों की मदद भी भेज रहे हैं। नृपेंद्र कहते हैं, 'मेरे एनआरआई वीरे का कहना है कि पीछे नहीं हटना है, डटे रहना है, फंड की कमी नहीं होगी।'
वो कहते हैं, 'हम किसान इतने गरीब नहीं है कि अपना आंदोलन न चला सकें। जैसे यहां लंगर चल रहे हैं, हम सदियों से ऐसे लंगर चलाते रहे हैं। मिलकर खाना हमारी संस्कृति है। इस आंदोलन में किसी तरह की कोई कमी नहीं आएगी।'
सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब से आए हज़ारों ट्रैक्टर और ट्रॉलियां खड़े हैं और हर बीतते दिन के साथ ये संख्या बढ़ती ही जा रही है। ट्रॉलियों में खाने-पीने का सामान लदा है और किसानों के रहने और सोने की व्यवस्था है। यहां दिनभर चूल्हे जलते रहते हैं और कुछ ना कुछ पकता रहता है। दिल्ली के कई गुरुद्वारों ने भी यहां लंगर लगाए हैं इसके अलावा दिल्ली के सिख परिवार भी यहां आकर लोगों को खाना खिला रहे हैं।
इंदरजीत सिंह भी अपना ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर प्रदर्शन में पहुंचे हैं। उनके साथ आए लोगों ने भी मिलकर चंदा किया है। वो कहते हैं, 'ट्रैक्टर मेरा अपना है, मैंने तेल डाला है। बाकी हम 15 लोग हैं साथ, सभी ने पैसा जुटाया है। हर किसान ने अपनी हैसियत के हिसाब से पैसे जमा किए हैं। जिसके पास ज़्यादा ज़मीन है उसने ज़्यादा दिए हैं।'
इंदरजीत कहते हैं, 'हम घर से निकलने से पहले ये तय करके आए थे कि जब तक आंदोलन चलेगा लौटेंगे नहीं। किसी चीज़ की ज़रूरत होती है तो पीछे से आ जाती है। हमारे और आसपास के गांव के और लोग आ रहे हैं। वो सामान लेकर आते हैं।'
राजनीतिक फंड का सवाल
ये सवाल पूछा जा रहा है कि आंदोलन में फंड कहां से आ रहा है। राजनीतिक पार्टियों के भी फंड देने के सवाल उठे हैं। इस सवाल पर इंदरजीत और उनके साथ आए लोग कहते हैं, 'जो लोग ये कह रहे हैं कि इस आंदोलन को पार्टियों से फंड मिल रहा है वो इसका सबूत पेश करें। हमारे गांवों में वो लोग भी पैसा दे रहे हैं जो यहां आए ही नहीं है। कुछ लोगों ने तो 100-1000 रुपए तक दिए हैं।'
मंदीप सिंह होशियारपुर से आए हैं। वो आसपास के 3 गांवों के किसानों के दल के साथ आए हैं। ये लोग 2 ट्रैक्टर ट्रॉलियों और एक इनोवा कार से आए हैं। वो कहते हैं, 'मैंने 2100 रुपए दिए हैं, हम सबने फंड इकट्ठा किया है। हम यहां रहने, रुकने के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं।'
मंदीप सिंह को लगा था कि वो 4-5 दिन में लौट जाएंगे। लेकिन अब उन्हें लगता है कि आंदोलन लंबा चलेगा और वो यहीं टिके रहेंगे। मंदीप कहते हैं, 'अब लगता है कि यहां महीनों भी रहना पड़ सकता है। लेकिन हमें कोई चिंता नहीं है जिस चीज़ की भी ज़रूरत होगी, हमारे गांव वाले पहुंचाते रहेंगे।'
मंदीप को गेहूं की फसल बोनी थी। वो कहते हैं, 'गांव के लोग कह रहे हैं कि वो ही हमारी फसल बो देंगे। अगर मैं वापस गया तो तो मेरी जगह 2 लोग आ जाएंगे। हम सब ये समझते हैं कि ये बहुत बड़ा काम है जो हम कर रहे हैं। अगर ये काम पूरा नहीं हुआ तो हमारी पूरी नस्ल ही बर्बाद हो जाएगी। ये किसी एक बंदे की लड़ाई नहीं है, ये हम सबके भविष्य का सवाल है।'
महीनों से हो रही थी ज़मीन पर आंदोलन की तैयारी
पंजाब की 30 से अधिक किसान यूनियनों ने ये आंदोलन खड़ा किया है। यूनियन से जुड़े नेता बताते हैं कि वो बीचे 4 महीनों से इसके लिए ज़मीन पर काम कर रहे थे। कीर्ति किसान यूनियन से जुड़े युवा किसान नेता राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं, 'हमारी यूनियन अब तक इस आंदोलन पर पंद्रह लाख रुपए ख़र्च कर चुकी है और 15 लाख का फंड अभी हमारे पास है। अगर सभी यूनियनों की बात की जाए तो अब तक क़रीब पंद्रह करोड़ रुपए इस आंदोलन पर ख़र्च हो चुके हैं।'
राजिंदर सिंह कहते हैं कि इस आंदोलन में एनआरआई भी बढ़-चढ़कर हिस्सा भेज रहे हैं और वो फंड भेजने की पेशकश कर रहे हैं। वो कहते हैं, 'जहां तक फंड का सवाल है, पंजाब के किसान अपनी लड़ाई लड़ने में सक्षम है। लेकिन ये सिर्फ़ किसानों का ही सवाल नहीं है। इन क़ानूनों से मज़दूर और ग्राहक भी प्रभावित होंगे। जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ेगा, आम लोग और मज़दूर भी इससे जुड़ते जाएंगे।'
पैसों का पूरा हिसाब
इस आंदोलन से जुड़ी यूनियनों ने चंदा इकट्ठा करने के लिए गांव से लेकर ज़िला स्तर तक पर समीतियां बनाई हैं और आ रहे पैसों का पूरा हिसाब रखा जा रहा है।राजिंदर सिंह कहते हैं, 'हम एक-एक पैसे का हिसाब रख रहे हैं। जो लोग देखना चाहें वो यूनियन में आकर देख सकते हैं।'सिर्फ पैसों का ही नहीं, यूनियन के नेता आंदोलन में आ रहे लोगों का भी हिसाब रख रहे हैं। एक थिएटर ग्रुप से जुड़े युवा भी आपस में चंदा करके आंदोलन में शामिल होने पहुंचे हैं।
इसी में शामिल एक युवा का कहना था, 'बहुत ज़ाहिर सी बात है, जो पंजाब पूरे देश का पेट भर सकता है, वो ख़ुद भूखा नहीं मरेगा। हम सब अपनी व्यवस्था करके आए हैं। गांव-गांव में किसान यूनियनों की समीतियां हैं, हम सबने चंदा इकट्ठा है। ट्रॉली में भले ही एक गांव से 5 लोग आए हों, लेकिन पैसा पूरे गांव ने इकट्ठा किया है। हम अपनी नेक कमाई से इस आंदोलन को चला रहे हैं।' शाम होते-होते पंजाब की ओर से आए कई नए वाहन प्रदर्शन में पहुंचे। इनमें से रोटियां बनाने की मशीनें उतर रही थीं।