Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

G-20 समिट से क्या भारत एक ताकत के रूप में उभरेगा?

Advertiesment
हमें फॉलो करें modi

BBC Hindi

, शुक्रवार, 8 सितम्बर 2023 (07:42 IST)
ज़ोया मतीन, बीबीसी न्यूज, दिल्ली
आम दिनों में भारत की सड़कों के किनारे ऐसे बिलबोर्ड दिखाई देंगे, जिनमें बॉलीवुड स्टार अलग-अलग चीज़ों के विज्ञापन करते नज़र आते हैं। पिछले एक साल से पूरे देश में इन विज्ञापनों की जगह जी-20 सम्मेलन से जुड़े विज्ञापनों ने ले ली है। ये विज्ञापन बिजली के खंभों से लेकर ई रिक्शा तक पर नज़र आते हैं। जी-20 के विज्ञापन बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन पर भी दिखाए जा रहे हैं।
 
इन पोस्टरों पर भारत का आधिकारिक जी-20 लोगो प्रमुखता से नज़र आता है। इसके अलावा उस पर ग्लोब और एक खिलता हुआ कमल दिखाया गया है। कमल भारत की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न भी है। इन विज्ञापनों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी फोटो है। इन विज्ञापनों के ज़रिए केंद्र सरकार यह संदेश देना चाहती है कि भारत अब वैश्विक मंच पर आ गया है।
 
जी-20 सम्मेलन के आयोजन पर कितना खर्च
जी-20 के आयोजन पर 10 करोड़ डॉलर से अधिक का खर्च आने का अनुमान है। देश के 50 से अधिक शहरों में जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले क़रीब 200 बैठकों का आयोजन हुआ। इनमें योग, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा ख़ास तौर पर तैयार खाने का मेन्यू शामिल रहा।
 
पिछले कई महीनों से भारत के टीवी न्यूज़ चैनलों पर जी-20 के बैठकों की लगातार कवरेज हो रही है। इसका मक़सद लोगों को लुभाना है, जो आमतौर पर विदेश नीति की बारीकियों से अनजान होते हैं।
 
जी-20 की मुख्य बैठक में अब एक दिन का ही समय ही शेष है। राजधानी दिल्ली को देश में सालों में एक बार होने वाले ऐसे हाई-प्रोफाइल आयोजन के लिए तैयार किया गया है।
 
शहर में चारों ओर शानदार फव्वारे, फूल के गमले और राष्ट्रीज ध्वज लगाए गए हैं। शहर के दर्जनों ऐतिहासिक स्मारकों को रोशन किया गया है। इनमें जी-20 का लोगो भी प्रमुखता से प्रदर्शित है।
 
इन जगहों पर सेल्फी लेने के लिए लोग उमड़ रहे हैं। शहर के प्रमुख उद्यानों को नया रूप दिया गया है। उनके पत्तों की ताजा काट-छांट की गई है। उनमें जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे देशों के झंडे लगाए गए हैं।
 
इस सौंदर्यीकरण का एक दूसरा पहलू भी है। शहर की कई झुग्गी-झोपड़ियों को छिपाने के लिए उनके किनारे कपड़े लगाकर उन्हें ढंक दिया गया है। कुछ जगहों पर तो वहां रहने वालों को हटा दिया गया है। शहर के प्रमुख स्थानों से भिखारियों को हटा दिया गया है। यह नहीं पता चल पाया है कि उन्हें पहुँचाया कहाँ गया है।
 
सरकार ने दिल्ली में तीन दिन के लिए छुट्टी की घोषणा की है। इस दौरान अधिकांश स्कूल और दफ्तर बंद रहेंगे।
 
कुछ सड़कों पर यातायात भी रोक दिया गया है। सम्मेलन से पहले हज़ारों सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। इनके अलावा सैकड़ों उड़ानों और ट्रेन को कैंसिल कर दिया गया है। भारत ने कभी भी एक साथ इतने अंतरराष्ट्रीय नेताओं की मेज़बानी नहीं की है।
 
webdunia
क्या दिल्ली में भी छाएगा यूक्रेन का मुद्दा
भारत के एक पूर्व राजदूत जितेद्र नाथ मिश्रा कहते हैं, ''भारत विदेशी मामलों और घरेलू राजनीति के बीच की रेखा को धुंधला करने की कोशिश कर रहा है। जी20 इसे हासिल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मंच है। सरकार को इस बात का अहसास है।''
 
भारत के पास यह सुनिश्चित करने का संवेदनशील काम होगा कि कार्निवल जैसे माहौल में भी यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दे उसकी महत्वाकांक्षाओं को पटरी से न उतारे, जैसा कि पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान गहरे मतभेद नज़र आए थे।
 
जितेद्र नाथ मिश्रा कहते हैं, '' भारत को इस बात की उम्मीद होगी कि सारा ध्यान यूक्रेन जैसे विभाजनकारी मुद्दों पर चर्चा की बजाय सहमती वाले मुद्दों पर बात हो। ऐसा कर पाने में वह अब तक सक्षम नहीं रहा है, लेकिन अब वह बेहतर दिखना चाहेगा।"
 
वैश्विक महाशक्तियों के बीच भारत
जी20 की अध्यक्षता संभालने के बाद भारत ने कहा कि वह उन मुद्दों को सम्मेलन के एजेंडे में रखना चाहता है जो विकासशील देशों को असंगत रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, विकासशील देशों पर बढ़ता कर्ज़ का बोझ, डिज़िटल ट्रांसफॉर्मेशन , बढ़ती महंगाई और खाद्य-ऊर्जा सुरक्षा।
 
हैप्पीमान जैकब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय नीति पढ़ाते हैं। वो कहते हैं कि यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब 'ग्लोबल साउथ' अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में ख़ुद को एक प्रमुख हिस्सेदार के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहा है।
 
वहीं पश्चिमी देशों को इस बात का अहसास हुआ है कि उनका विशिष्ट क्लब अकेले पूरी दुनिया की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है।
 
बढ़ती असमानता, खाने के सामान और तेल की ऊंची क़ीमतें और जलवायु परिवर्तन के बीच कई देश अब जी-20 जैसे पश्चिम देशों के प्रभुत्व वाले मंच की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाते हैं। उनका दावा है कि यह शक्ति के पुराने वैश्विक वितरण पर आधारित है।
 
प्रोफेसर जैकब कहते हैं कि यह कोरोना महामारी के दौरान साफ़ तौर पर नज़र आया, जब भारत ने अफ्रीका, दक्षिण एशिया और चीन तक की मदद की, वहीं पश्चिमी देश केवल अपनी चिंता में ही लीन रहे।
 
प्रोफेसर जैकब कहते हैं, " घरेलू आबादी और ग्लोबल साउथ के लिए संदेश यह है कि हम आपके साथ हैं। हम आगे बढ़कर नेतृत्व करने को तैयार हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए संदेश यह है कि भारत के नेतृत्व में दुनिया के इस हिस्से से आ रही चिंताओं को आप नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं।"
 
इसका उदाहरण देते हुए जितेंद्र नाथ मिश्रा कहते हैं कि जी20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करने का प्रस्ताव विकासशील देशों का समर्थन करने की भारत की इच्छा का परिचायक है।
 
दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की वजह से भारत यह भी महसूस करता है कि उसके पास इसे हासिल करने की क्षमता और साधन, दोनों है।
 
लेकिन विकसित और विकासशील देशों के बीच पुल बनने की कोशिश करना भारत के लिए आसान नहीं होगा, जो भूराजनीतिक रूप से नाजुक स्थिति में है।
 
जी-20 सम्मेलन और भारत की घरेलू राजनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जी20 शिखर सम्मेलन के आयोजन में भारी निवेश किया है। वह दिखाना चाहेंगे कि वह दुनिया में भारत की स्थिति मजबूत बनाने में सक्षम है, ख़ासकर अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले।
 
भारत की चुनानी राजनीति में परंपरागत रूप से विदेश नीति कोई बड़ी भूमिका नहीं होती है, जब तक कि वह पड़ोसी पाकिस्तान या चीन और अमेरिका का मामला न हो।
 
लेकिन पीएम मोदी की सरकार में यह बदल रहा है। भारतीय महत्वाकांक्षी हैं, वे दुनिया में अपनी छवि की परवाह करते हैं और मोदी भी ऐसा ही कर रहे हैं।
 
प्रोफेसर जैकब कहते हैं, ''उन्होंने ख़ुद को एक वैश्विक राजनेता के रूप में स्थापित किया है। जी-20 का एक बड़ा और सफल शो उनकी उस छवि को और चमकाएगा।''
 
वहीं मिश्रा कहते हैं कि भले ही इस शिखर सम्मेलन को यूक्रेन के ज़रिए परेशान किया गया हो, लेकिन लोग इस शिखर सम्मेलन को एक ऐसे आयोजन के रूप में देखेंगे, जिसने भारत के अंतरराष्ट्रीय कद को बढ़ाया है।
 
लेकिन पीएम मोदी को अपने घरेलू मोर्चे पर अभी और बहुत कुछ करने की ज़रूरत है, जैसे कि लाखों लोगों के लिए रोजगार पैदा करना।
 
मानवाधिकार से जुड़े सवाल भी हैं। विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से मुसलमानों और अन्य लोगों के ख़िलाफ हेट क्राइम बढ़ा है।
 
वहीं मोदी सरकार इन आरोपों से इनकार करती रही है। उसका कहना है कि उसकी नीतियां सभी भारतीयों के लिए समावेशी हैं। यही संदेश पीएम मोदी शिखर सम्मेलन के दौरान देश और दुनिया के लोगों को देना चाहते हैं।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जिनपिंग के दिल्ली न आने क्यों खुश हैं इटली की PM मेलोनी?