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उत्तर प्रदेश में समाज की ‘फ़ॉल्ट लाइन’ को अनजाने में छेड़ गए योगी आदित्यनाथ?

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BBC Hindi

, शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021 (07:42 IST)
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश में अगले साल फ़रवरी महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। यानी चुनाव के लिए सिर्फ़ चार महीने बचे हैं और भारतीय जनता पार्टी के सामने अब दुविधा ये है कि वह नाराज़ चल रहे जाट, गुर्जर और राजपूत वोटरों के बीच 'बैलेंस' कैसे बनाए रखे।
 
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर चल रहे किसानों के प्रदर्शन में जाट बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। इनमें हरियाणा और राजस्थान के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट किसान भी बड़ी तादात में शामिल हैं।
 
किसानों का आन्दोलन सिर्फ़ दिल्ली की सरहदों पर प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं है क्योंकि किसान संगठनों के लोग, जिसमें भारतीय किसान यूनियन के जाट नेता राकेश टिकैत भी शामिल हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूमकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बना रहे हैं और कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ समर्थन जुटा रहे हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता इसलिए भी है क्योंकि समाजवादी पार्टी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मज़बूत आधार रखने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन हो सकता है। ये गठबंधन कितना प्रभावी होगा ये तो चुनाव बाद ही तय होगा, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इससे भाजपा की परेशानी ज़रूर बढ़ेगी।
 
विश्लेषक मानते हैं कि 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर में हुए दंगों के बाद जाटों का रुझान भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ बढ़ा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 20 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां जाटों की आबादी 14 प्रतिशत के आसपास है और इसलिए इन क्षेत्रों में उनका वोट भी बहुत मायने रखता है।
 
'सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़' यानी 'सीएसडीएस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 77 प्रतिशत जाटों का वोट मिला था जो 2019 के लोकसभा के चुनावों में बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया।
 
विश्लेषक कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 110 सीटों में से लगभग 90 ऐसी सीटें हैं जहाँ जाटों के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
 
मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के बाद जाटों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की बड़ी आबादी के बीच दरार पड़ गयी थी। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर के सिसौली में किसानों की महापंचायत में जाट और मुसलमान एक साथ आये और दोनों समुदायों ने अपनी अपनी 'ग़लतियों को मानकर उन्हें सुधारने' का संकल्प भी लिया।
 
महापंचायत के मंच से जाट किसान नेताओं ने चौधरी अजीत सिंह का समर्थन नहीं करने के लिए ख़ेद भी जताया। इस महापंचायत के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति ने करवट ले ली और भाजपा की चिंताएं बढ़ा दीं।
 
जब कृषि क़ानूनों को लेकर वार्ता के कई दौर विफल हो गए और इन क़ानूनों पर गतिरोध बढ़ने लगा तो जाटों ने खुलकर भाजपा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी। नतीजा ये हुआ कि चुनाव के क़रीब आते आते, भाजपा अपनी रणनीति पर विचार करने पर मजबूर होने लगी।
 
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र भट्ट ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जाटों के रवैये को देखकर भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दूसरे बड़े समाज, यानी गुर्जरों को रिझाने की कोशिश की। इसी वजह से राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ग्रेटर नोएडा के दादरी के मिहिर भोज इंटर कॉलेज प्रांगण में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण के लिए तैयार हो गए।
 
ये कार्यक्रम गुर्जर विद्या सभा द्वारा आयोजित किया गया था और सम्राट मिहिर भोज की एक बड़ी प्रतिमा प्रांगण में लायी गयी थी। 22 सितंबर को कार्यक्रम में शामिल होने योगी आदित्यनाथ भी पहुँचे थे।
 
मगर शिलापट्ट पर लिखे 'गुर्जर' शब्द पर आपत्ति कर रहे राजपूत करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने न सिर्फ़ इसका विरोध किया बल्कि शिलापट्ट पर लिखे गुर्जर शब्द पर स्याही पोत दी। करणी सेना का दावा है कि सम्राट मिहिर भोज राजपूत थे और शिलापट्ट पर 'गुर्जर' शब्द लिखा जाना सही नहीं है।
 
इससे तनाव पैदा हो गया क्योंकि घटना के विरोध में 26 सितंबर को अखिल भारतीय वीर गुर्जर समाज ने महापंचायत बुलाई। स्थानीय प्रशासन ने घटना को लेकर प्राथमिकी भी दर्ज की। महापंचायत तो नहीं हुई लेकिन अगले ही दिन समाज के लोगों ने शिलापट्ट से मुख्यमंत्री और भाजपा के नेताओं का नाम हटा दिया।
 
इससे तनाव पैदा हो गया और इंटर कॉलेज को सील कर दिया गया है। अब गुर्जर समाज ने दिल्ली में फिर एक महापंचायत का आह्वान किया है।
 
गुर्जर विद्या सभा के राधा चरण भाटी कहते हैं कि सभा ने प्रस्ताव पारित किया जिसमें 'वीर गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगाने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।' वह कहते हैं कि गुर्जर विद्या सभा ने ही मुख्यमंत्री से मिलकर उनको अनावरण के लिए आमंत्रित किया था।
 
वह बताते हैं, "कार्यक्रम बेहद सफल था क्योंकि भारी संख्या में गुर्जर समुदाय के लोगों के इसमें शामिल होने के लिए राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदश और अन्य प्रदेशों से दादरी आने की सूचना थी। हमारे गुर्जर समाज से ही भाजपा के राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र नागर ने दबाव बनाया कि वह समारोह की अध्यक्षता करना चाहते हैं जबकि कार्यक्रम विद्या सभा का था और मैं उसकी अध्यक्षता कर रहा था। फिर मुझे हटा कर उन्होंने अध्यक्षता कर ली और कार्यक्रम को भी भाजपा का बना दिया।"
 
लेकिन करणी सेना के अध्यक्ष करण ठाकुर के नेतृत्व में राजपूतों का एक प्रतिनिधि मंडल दादरी के अपर पुलिस अधीक्षक विशाल पाण्डेय से मिला और उन्होंने मुख्यमंत्री और अन्य नेताओं के नाम शिलापट्ट से हटाये जाने पर विरोध दर्ज कराया।
 
सेना का कहना है कि मुख्यमंत्री का नाम शिलापट्ट से हटाने वालों के ख़िलाफ़ अगर वैधानिक कार्रवाई नहीं हुई तो फिर राजपूत समाज के लोग सड़कों पर उतरेंगे।
 
दादरी में चल रहे घटनाक्रम के बाद इलाके में तनाव तो है ही साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को गुर्जर समाज की नाराज़गी का सामना करना पड़ रहा है।
 
गाज़ीपुर में चल रहे किसान आन्दोलन के संयोजक और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के नेता आशीष मित्तल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि धर्म और जाति का ध्रुवीकरण राजनीतिक दलों और नेताओं का पारंपरिक तरीका रहा है और वे सब वही कर रहे हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि मौजूदा हालात को देखकर निष्कर्ष पर पहुंचना भी जल्दबाजी होगी।
 
वहीं जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मालिक मानते हैं कि सभी जाट ना तो भाजपा के साथ थे और ना ही ख़िलाफ़ हैं। वह कहते हैं कि आन्दोलन अपनी जगह पर है, मगर वोट डालने के समय दूसरे ही मापदंड सामने आ जाते हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र भट्ट कहते हैं कि भाजपा के लिए जाटों और गुर्जरों की नाराज़गी चुनौती तो बन गयी है, मगर सबसे बड़ी चुनौती योगी आदित्यनाथ के सामने भी है। वह कहते हैं कि 'अब ये भी पता चल जाएगा कि राजपूतों पर उनकी कितनी पकड़ है। अगर है तो फिर वो विरोध कर रहे राजपूत संगठनों को ऐसा करने से मना करेंगे ताकि गुर्जर समाज के लोग मान जाएँ।'
 
भट्ट कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूतों की आबादी भी काफ़ी है और वे राजनीतिक रूप से बहुत मज़बूत भी हैं। इसलिए देखना होगा कि वो राजपूत संगठनों से कैसे निपटते हैं।
 
भट्ट् के मुताबिक़, "ऐसा लगता है कि गुर्जरों को रिझाने की कोशिश के बीच अनजाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाज की जाति वाली 'दोष रेखा' यानी 'फ़ॉल्ट लाइन' को छेड़ दिया है। वह मूर्ति के अनावरण में शामिल नहीं भी हो सकते थे। लेकिन ये सब अनजाने में हो गया है। इसलिए अब भाजपा के नेता इसपर फूँक-फूँक कर क़दम रख रहे हैं और किसी भी तरह का बयान देने से कतरा रहे हैं।"
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि वे तीनों समाज के लोगों से बातचीत के दौर में हैं। वो ये भी दावा कर रहे हैं कि मामले सुलझा लिए जायेंगे।
 
उनका ये भी दावा है कि संगठन, किसान आन्दोलन के गुर्जरों और राजपूतों में हो रहे तकरार को लेकर अपनी रणनीति भी बना रहे हैं। कुछ नेता मानते हैं कि अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संगठन को नुक़सान की संभावना होती भी है तो प्रदेश के दूसरे इलाकों से भाजपा के खाते में अच्छी सीटें आएँगी।

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