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अलिफ लैला की हजार दास्तान

- मिर्जा एबी बेग (दिल्ली से)

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हमें फॉलो करें अलिफ लैला
BBC
आपने सिंदबाद के किस्से सुने होंगे, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से भी वाकिफ होंगे, अलादीन और जादुई चिराग के बारे में भी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह सब कहानियाँ कहाँ से आई हैं?

ये सारी कहानियाँ अरबी भाषा की महान दास्तान अल्फ लैला व लैला से ली गई हैं जिसे पश्चिमी दुनिया में 'अरेबियन नाइट्स' और भारत में हम 'दास्ताने अलिफ लैला' के नाम से जानते हैं।

अरबी में 'अल्फ' का मतलब हजार होता है और लैला का मतलब रात यानी इसमें एक हजार एक रात की कहानी है जो सारी दुनिया में बराबर लोकप्रिय है।

दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय में सारी दुनिया से लोग जमा हुए और एक हजार साल से ज्यादा पुरानी लोककथाओं पर आधारित इस लोकप्रिय दास्तान पर बात की।

इस तीन दिवसीय (21-23 फरवरी, 2010) सेमिनार के आयोजक और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अरबी भाषा साहित्य के शिक्षक डॉक्टर रिजवानुर्रहमान ने कहा कि अभी तक अलिफ लैला पर विश्व भर में होने वाले सेमिनारों में यह सबसे अधिक कामयाब इस लिए रहा कि इसमें सबसे ज्यादा देशों का प्रतिनिधित्व रहा।

यह कारनामा अपने आप में किसी जादुई कहानी से कम नहीं कि इतने सारे देश के विद्वान एक साथ एक कहानियों के एक ऐसे संग्रह पर बात करने आए थे जिस पर अरब जगत, फारस यानी ईरान और भारत का बराबर का दावा हो।

लोकप्रिय : इसमें अरब जगत अमेरिका, ब्रितानिया, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान समेत अफ्रीकी देश का भी प्रतिनिधित्व था।

डॉक्टर रिजवानुर्रहमान ने कहा, इस सेमिनार का आयोजन दुनिया भर में लोक कथाओं को नए सिरे से समझने और उसकी व्याख्या करने की नई कोशिश के सिलसिले में हुआ था, इससे पहले इसी शीर्षक के तहत, अरब और जापान में भी सेमिनार आयोजित हो चुके हैं।

अलिफ लैला की कहानियाँ बच्चों में भी उतनी लोकप्रिय है जितनी कि बड़ों में यहाँ तक सूफियों के यहाँ भी इस की परंपरा मिलती है। श्रीनगर से आने वाले निहाल अहमद ने कहा कि वास्तव में अरेबियन नाइट्स और सूफीवाद का चोली दामन का साथ है।

प्रसिद्ध कहानीकार और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डोरिस लेसिंग का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, 'वास्तव में अरेबियन नाइट्स की कहानियाँ सूफी परंपरा का हिस्सा हैं और यह वहीं से प्रचलित हैं।'

तेरहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध सूफी कवि रूमी की कहानियाँ यह बताती हैं कि दोनों में कितनी समानता है।

फ्रांस की पास्कल यूनिवर्सिटी से आने वाले कौसर जेजे थैबून ने कहा कि फ्रांस के ऐंटोनी ग्लांड ने पश्चिमी देशों में सबसे पहले अरेबियन नाइट्स की कहानियों को प्रस्तुत किया और इसके अनेक अनुवाद अंग्रेजी समेत कई पश्चिमी भाषाओं में हुए।

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सबका दावा : बच्चों के लिए वाल्ट डिज्नी ने तो इस पर आधारित कार्टून फिल्म ही बना डाली है जबकि किसी भी देश का सिनेमा जगत इसकी कहानियों से अछूता नहीं है।

भारत का मानना है कि यहाँ पहले से उनके पास इस प्रकार की कहानियाँ पंचतंत्र की शक्ल में मौजूद थीं इसलिए ज्यादा सही बात यही लगती है कि इस दास्तान में शामिल कहानियाँ भारत की ही हैं।

वैसे भी भारतीय कहानी पंचतंत्र का अनुवाद पहले अरबी भाषा में कलील-ओ-दमना नाम से हुआ फिर फारसी भाषा में यह आई।

सोफिया यूनिवर्सिटी से आने वाली डॉक्टर ब्यॉन रैहानोवा ने कहा कि इन कहानियों का मिजाज पूरी तरह से मुस्लिम दुनिया का है और जो लोकेशन है वह भी अरब जगत है जबकि इसमें भारत और चीन का भी नाम आता है।

पाकिस्तान लाहौर में विजिटिंग प्रोफेसर मोहम्मद यूसुफ सिद्दीक ने कहा कि इसे पूर्वी देशों से ज्यादा अमेरिका में लोकप्रियता मिली और इसने वहाँ के कहानी कहने के अंदाज को काफी प्रभावित किया।

कहानी : कहानी अपने आप में एक ऐसी घटना का नतीजा है जो जीवन के लिए संघर्ष को दर्शाता है। किसी जमाने में शहरयार नाम का एक बादशाह होता था जिसने अपनी पत्नी की बेवफाई के नतीजे में यह प्रण ले लिया था कि वह अपने राज्य की हर लड़की से शादी करेगा और दूसरे दिन उसे कत्ल कर देगा।

लोग उसका राज्य छोड़ कर भागने पर विवश हो जाते हैं फिर उसी के वज़ीर की बेटी शहरजाद एक योजना के तहत उससे शादी करती है।

उसकी बहन दुनियाजाद उसे आखिरी कहानी सुनाने के लिए कहती है कि कल तो उसका कत्ल हो जाएगा, बादशाह को भी कहानी सुनने की उत्सुकता होती है और वह इजाजत दे देता है, लेकिन शहरजाद कहानी कहना ऐसे समय में छोड़ देती है जब सबकी उत्सुक्ता अपने चरम पर होती है।

बादशाह कहानी का अंजाम सुनने के लिए उसकी मौत को एक दिन के लिए टाल देता है। फिर कहानी के अंदर से कहानी निकलती है और हर रात वह उसे ऐसी जगह छोड़ती है जिसे सुने बिना राजा को रहा नहीं जाता और वह उसकी मौत को टालता रहता है।

यहाँ तक की हजार रात तक कहानी चलती है और इस बीच शहरजाद को तीन बच्चे भी पैदा होते हैं और फिर अगली रात में वह कहानी खत्म करके अपनी तकदीर का फैसला बादशाह पर छोड़ देती है, और बादशाह को यह एहसास होता है कि सारी महिलाएँ एक सी नहीं होतीं।

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