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असह्य दर्द के उपचार में भारत विफल: ह्यूमैनराइट्स वॉच

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हमें फॉलो करें असहनीय दर्द
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमैनराइट्स वॉच ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में हर वर्ष लाखों मरीज अनावश्यक रूप से असहनीय दर्द झेलते हैं।

BBC
रिपोर्ट में कहा गया है कि दवाइयों के सीमित नियमन, स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के प्रशिक्षण के अभाव और एक समन्वित देखभाल की कमी के कारण उन रोगियों को अनावश्यक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है क्योंकि उनकी पहुँच महँगी और प्रभावशाली दर्द निवारक औषधियों तक नहीं है।

अपनी 102 पन्नों की रिपोर्ट असहनीय दर्द: उपशामक देखभाल सुनिश्चित कराने में भारत की जिम्मेदारी में पाया गया है कि भारत में कैंसर के कई अस्पताल ऐसे हैं जहाँ रोगियों को मॉरफीन तक नहीं दिया जाता जबकि तथ्य यह है कि इनमें से 70 प्रतिशत रोगियों के ठीक होने की कोई संभावना नहीं है और उन्हें दर्द निवारक और उपशामक देखभाल की जरूरत है। एचआईवी से पीड़ित लोगों को सेवा उपलब्ध करा रहे स्वास्थ्य केंद्रों में मॉरफीन नहीं है या नुसखा लिख कर उसे उपलब्ध कराने के लिए प्रशिक्षित चिकित्सक नहीं हैं।

ह्मूमैनराइट्स वॉच के वरिष्ठ स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार शोधकर्ता डीड्रिक लोहमैन का कहना है, 'भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में भीषण पीड़ा झेल रहे अनेक रोगियों की अवहेलना होती है। उन्हें दर्द से जूझने के लिए छोड़ दिया जाता है। उनमें से कई ने हमसे कहा कि उनका दर्द इतना तीव्र है कि वे मर जाना पसंद करेंगे।'

तीव्र पीड़ा कैंसर के रोगियों में आम है। विशेषकर रोग के अंतिम चरण में। एक अनुमान के अनुसार भारत में किसी एक वर्ष में दस लाख से अधिक कैंसर रोगी तीव्र पीड़ा झेलते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कई रोगी, जिनमें एचाईवी, टीबी या अन्य संक्रमणों से ग्रस्त रोगी भी हैं, तीव्र या दीर्घकालीन तेज दर्द झेलते हैं।

तीन बाधाओं की पहचान : रिपोर्ट में दर्द निवारक एवं उपशामक देखभाल के मार्ग में बाधा बन रहे तीन मुख्य अवरोधकों की पहचान की गई है।

सीमित औषधि नियमन: कई भारतीय राज्यों में नारकोटिक को लेकर अत्यधिक कड़े नियम हैं जिनके कारण अस्पतालों और फार्मेसी में मॉरफीन की उपलब्धता बाधित होती है। 1998 में केंद्र सरकार ने सुझाव दिया था कि राज्य संशोधित नियम अपनाएँ किंतु भारत के आधे से अधिक राज्यों ने ऐसा नहीं किया है।

डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने में विफलता: अधिकतर मेडिकल छात्रों और युवा डॉक्टरों को दर्द के निवारण एवं उपशामक उपचार का या तो कोई प्रशिक्षण नहीं मिलता या बहुत कम मिलता है क्योंकि सरकार इस प्रकार के निर्देश पाठ्यक्रम में शामिल नहीं कराती। इसके परिणामस्वरूप, भारत में अधिकतर डॉक्टर यह नहीं जानते कि तीव्र पीड़ा की कैसे पहचान की जाए और कैसे उसका उपचार हो।

स्वास्थ्य सेवाओं में उपशामक देखभाल सम्मिलित करने में कमी: राष्ट्रीय कैंसर एवं एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में सार्थक उपशामक देखभाल से जुड़े अंश शामिल नहीं हैं जिसके कारण इसे सरकारी धनराशि से वंचित रहना पड़ता है और इसका दर्जा गौण हो जाता है।

लोहमैन का कहना है, 'भारत विश्व में वैध रूप से अफीम के उत्पादन में सबसे आगे है जो कि मॉरफीन बनाने में प्रयुक्त होती है। लेकिन वह सभी निर्यात कर दी जाती है जिसके फलस्वरूप कई लाख, यदि दसियों लाख नहीं भी हों, भारतीय अनावश्यक रूप से पीड़ा झेलते हैं।'

दर्द निवारक उपचार की कमी :
रिपोर्ट में कैंसर के रोगियों के लिए दर्द निवारक औषधियों की उपलब्धता पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें कहा गया है कि मॉरफीन के इस्तेमाल की आधिकारिक रिपोर्टों के आधार पर कहा जा सकता है कि बढ़े हुए कैंसर से जूझ रहे रोगियों के केवल चार प्रतिशत को ही उपयुक्त दर्द निवारक उपचार सुलभ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कैंसर के लिए सरकारी राशि में वृद्धि में भी उपशामक देखभाल के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

लोहमैन का कहना है, 'भारत सरकार को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों और में निवेश किया और कैंसर पर नियंत्रण पाने के लिए दी जाने वाली राशि में वृद्धि की। किंतु बिना यह प्रयास किए कि सभी कैंसर अस्पताल दर्द की उपचार कर सकें और वहाँ उपशामक उपचार की सुविधा हो, यह राशि बढ़े हुए, असाध्य कैंसर से उत्पन्न पीड़ा से छुटकारा दिलाने में रोगियों की कोई सहायता नहीं कर रही है।'

यह किसी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन द्वारा तैयार की गई पहली ऐसी रिपोर्ट है जो दर्द निवारक औषधि तक पहुँच की एक सही परिप्रेक्ष्य में जाँच करती है। ह्यूमैनराइट्स वॉच का मानना है कि यह सरकारों का दायित्व है कि वे मॉरफीन सहित अन्य आवश्यक औषधियाँ रोगियों को उपलब्ध हों और स्वास्थ्य कर्मचारियों को उनके इस्तेमाल का पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार की यह सुनिश्चित कराने में विफलता स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है।

ह्यूमैनराइट्स वॉच ने यह भी तर्क दिया है कि सरकार की यह सुनिश्चित कराने में विफलता कि कैंसर के अस्पताल दर्द निवारण का उपचार मुहैया कराएँ, उत्पीड़न एवं क्रूरता तथा अमानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार पर प्रतिबंध का उल्लंघन है क्योंकि इससे असहनयी पीड़ा को जन्म मिलता है। ह्मूमैनराइट्स वॉच का कहना है कि बुनियादी और सस्ते उपचार से इस पीड़ा से बचा जा सकता है।

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