एंबर में कैद प्राचीनतम मकड़ी का जाला
ब्रिटेन में समुद्र तट से मिले एंबर में कैद मकड़ी के जाले को प्राचीनतम जाला घोषित कर दिया गया है। अंबर पेड़ से निकली वो गोंद है जो लाखों सालों बाद जीवाश्म रूप ले लेती है, बिल्कुल उसी तरह जैसे लाखों सालों में कोयला हीरा बन जाता है। एंबर पीले या नारंगी रंग का होता है और इसका इस्तेमाल गहनों में या जवाहरात के रूप में भी किया जाता है।जीवाश्मों की खोज करने वाले ब्रिटन के जेमी हिसकॉक्स और उनके भाई ने ब्रिटन के ईस्ट ससैक्स के समुद्र तट से इस मकड़ी के जाले की खोज की। बाद मे पता चला कि अंबर मे फँसे ये मकड़ी के जाले क्रेटेशियस काल के यानि लगभग 10 करोड़ 40 लाख साल पुराने हैं।ब्रिटेन के जीवाश्म वैज्ञानिक प्रोफेसर मार्टिन ब्राजियर का कहना है कि अंबर में कैद ये मकड़ी के जाले, जीवाश्मों के रिकॉर्ड में दुनिया के सबसे पहले जाले कहे जा सकते हैं।प्रोफेसर मार्टिन ब्राजियर के अनुसंधान के नतीजे जियोलॉजिकल सोसाइटी पत्रिका में छपे हैं।अनोखा जाला : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी प्रोफैसर ब्राजियर का कहना है, 'मकड़ी के जाले वाला ये अंबर अनोखा है। क्रेटेशियस काल के शुरुआती समय का ये एंबर दुनिया के प्राचीनतम जीवाश्मों में गिना जाता है।'प्रोफेसर ब्राजियर का कहना था, 'इन मकड़ियों की खासियत ये है कि अपना जाला बुनते समय ये उसके धागों में बीच-बीच में चिपकने वाली नन्हीं बूंदे छोड़ दती हैं, जिनमें चिपककर इनका शिकार फँस जाता है।'प्रोफेसर ब्राजियर का ये भी कहना है कि कौनिफर यानि शंकुवृक्ष से रिसे गोंद से ये जीवाश्म बना है, 'इस अंबर में हमने वास्तव में वह चिपकने वाली बूंदे पाई हैं, जो अंबर के जीवाश्म में संरक्षित हैं। ये एक ऐसी खासियत है, जो इसे दुनिया के सबसे पुराने जाले के रिकॉर्ड में ले आई है।'वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी दावानल या जंगल में लगी आग के कारण कौनिफर यानि शंकुवृक्ष से रिसे गोंद में ये जाला फँसा होगा, और उस गोंद के अंबर में बदलने के बाद उसमें जीवाश्म बन कर रह गया होगा।