ओसामा बिन लादेन आठ साल पहले या तो अफगानिस्तान के तोराबोरा इलाक़े में हुई लड़ाई में मारे गए या फिर गुर्दे की बीमारी ने उनकी जान ले ली। ये एक ऐसी परिकल्पना है, जिस पर बीबीसी ने एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया है।
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सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए हमलों के बाद से ये अनुमान लगाए जाते रहे हैं कि अमेरिकी खुफिया विभाग अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को न्यायोचित ठहराने के लिए जब तब बिन लादेन के वक्तव्य जारी करता रहता है जिससे बिन लादेन का भूत जिंदा रहे। तो दुनिया को जिस आदमी की सबसे ज्यादा तलाश है क्या वह जीवित है?ये शक इसलिए पैदा होता है क्योंकि ओसामा बिन लादेन दुनिया की महाशक्तियों को चकमा देकर और बड़े पैमाने पर हो रही तलाश के बावजूद पिछले 10 साल में सबको झांसा देने में कामयाब रहे हैं।राष्ट्रपति बराक ओबामा की अफगानिस्तान और पाकिस्तान नीति की समीक्षा करने वाले दल के अध्यक्ष ब्रूस रेडैल कहते हैं, 'हमें कुछ पता नहीं वो कहाँ है।'और किसी ठोस खुफिया जानकारी के अभाव में ओसामा बिन लादेन का मिथक और अफवाहों में घिर गया है।'
ओसामा के टेप जाली' पिछले कई सालों में ओसामा बिन लादेन के कितने ही ऑडियो और वीडियो टेप जारी किए गए हैं, लेकिन उनकी प्रामाणिकता पर हमेशा सवाल उठाए जाते रहे हैं।ब्रह्मविद्या के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर डेविड रे ग्रिफिन सभी वीडियो की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। यही नहीं वो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमलों के कुछ हवालों पर भी सवाल उठाते हैं।प्रोफ्रेसर ग्रिफिन कहते हैं, 'अभी तक जारी टेपों में तीन ऐसे हैं जिनको जाली साबित किया जा सकता है और अगर कोई बिन लादेन के जाली वीडियो बना रहा है तो यह शक होना स्वाभाविक है कि बाक़ी के टेप भी जाली होंगे।'पहला वीडियो टेप दिसंबर 2001 में अमेरिका के प्रतिरक्षा विभाग ने जारी किया था जिसमें बिन लादेन 11 सितंबर के हमलों की जिम्मेदारी स्वीकार करते दिखाई देते हैं। लेकिन प्रोफ्रेसर ग्रिफिन का तर्क है कि अल कायदा ने शायद ही कभी आतंकवादी हमलों की जिम्मेदारी स्वीकार की हो।उनका ये भी कहना है कि इस टेप में बिन लादेन पहले के मुकाबले मोटे दिखाई देते हैं, उनकी अँगुलियाँ भी छोटी हैं और वो गलत हाथ से लिख रहे हैं।अक्टूबर 2004 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले जो वीडियो जारी किया गया उसमें धार्मिक व्याख्यान का अभाव था। प्रोफ्रेसर ग्रिफिन का मानना है कि इस वीडियो ने जॉर्ज बुश की दूसरी बार जीत सुनिश्चित कर दी।पश्चिमी षड़यंत्र : लेकिन सबसे अधिक सवाल उठते हैं सितंबर 2007 में जारी हुए तीसरा वीडियो टेप पर। इस टेप में बिन लादेन की खिचड़ी दाढ़ी के स्थान पर काली दाढ़ी दिखाई देती है और कई जगह उनकी तस्वीर तो स्थिर हो जाती है लेकिन आवाज आती रहती है.अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक भूतपूर्व अधिकारी रॉबर्ट बेयर भी इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं, लेकिन यह नहीं मानते कि इसके पीछे पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों का हाथ है। उनका मानना है कि स्वयं अल कायदा ने यह जाली वीडियो बनाया है।बीबीसी ने ब्रिटन की वायुसेना के एक भूतपूर्व छाया विश्लेषक ऐंडी लॉज को 1998 में जारी किए गए बिन लादेन के वीडियो टेप की न्यायिक जाँच करने और कथित जाली टेपों से उसकी तुलना करने को कहा।ऐंडी लॉज का कहना है कि बिन लादेन इसलिए मोटे दिखाई दे रहे हैं क्योंकि एडिटिंग की प्रक्रिया में जब सब-टाइटिल्स जोड़े जाते हैं तो छवि दब जाती है।उनका कहना है कि तीनों वीडियो एक ही व्यक्ति के हैं बिन लादेन के। ऐंडी लॉज कहते हैं, 'यह बड़ा मुश्किल है कि अमेरिकी सेना जाली टेप बनाए और किसी को पता न चले।'ऐंडी लॉज कहते हैं, 'तकनीक की दृष्टि से आज के जमाने में इस तरह के वीडियो बनाना संभव है, लेकिन चुपचाप नहीं। क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत से लोग शामिल होते हैं और अब तक किसी न किसी स्रोत से बात बाहर निकल आती।'अमेरिका पर हुए हमलों के बाद से बिन लादेन के कोई 40 वक्तव्य सामने आ चुके हैं। पिछले साल आए दो वक्तव्यों में राष्ट्रपति बराक ओबमा की चर्चा थी।सीआईए के भूतपूर्व अधिकारी माइक श्योर मानते हैं कि ओसामा बिन लादेन जिंदा हैं। उनका कहना है कि ओसामा के ऑडियो टेपों में ताजा हालात का जिक्र होता है। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी और ब्रिटन की सरकार के संपर्क मुख्यालय दोनों आवाज पहचानने की महारत रखते हैं।माइक श्योर का तर्क है कि अगर ये बिन लादेन की आवाज नहीं है तो ये दोनों एजेंसियाँ अपनी-अपनी सरकारों को इस बात की जानकारी जरूर देतीं।सीआईए के एक और अधिकारी आर्ट कैलर कहते हैं कि किसी भी चीज को षड़यंत्र कह देना आसान है जबकि सच्चाई का सामना करना मुश्किल है।