अब इस बात की पुष्टि हो गई है कि गंगा जल में स्वयं शुद्धि की अपार क्षमता के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों के सामूहिक स्नान से नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इलाहाबाद में गंगा जल की गुणवत्ता का विश्लेषण किया है। इससे पता चला है कि पिछली 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति के दिन गंगा में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर बढ़कर 7.4 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया था।
यह निर्धारित अधिकतम सीमा से चार गुना ज्यादा है। अनुमान है कि मकर संक्रांति के दिन प्रयाग में लगभग एक करोड़ लोगों ने 'अपने पापों से मुक्ति और सुखी जीवन के लिए' संगम और उसके आसपास गंगा स्नान किया था।
बोर्ड द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार नदी में अधिकतम बीओडी दो मिलीग्राम प्रति लीटर हो सकता है।
इस अध्ययन से पता चलता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा की ऊपरी धारा में रसूलाबाद घाट पर बीओडी 5.6 था। यह आगे शास्त्री पुल के पास बढ़कर सात हो गया और संगम पर यह 7.4 प्रतिशत था।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार चार्ट के मुताबिक़, मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को संगम के पानी में बीओडी का स्तर लगभग आधा यानी 4.4 दशमलव था।
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बढ़ते भक्त, बढ़ता प्रदूषण : जैसे-जैसे तीर्थयात्रियों की संख्या कम होती गई, प्रदूषण भी कम होता गया। उदाहरण के लिए 18 जनवरी को बीओडी का स्तर घटकर 4.8 पर आ गया।
संगम पर यमुना का पानी गंगा में मिलता है। माना जाता है कि इसलिए वहां पानी अधिक होने से प्रदूषण का असर कुछ कम हो जाता है वरना यह आंकड़ा और ज्यादा हो सकता था।
प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉक्टर मोहम्मद सिकंदर का कहना है कि मकर संक्रांति के दिन बड़ी संख्या में लोगों के सामूहिक स्नान के कारण संगम पर प्रदूषण का स्तर बढ़ा।
वे कहते हैं कि नदी में बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड बढ़ने का मतलब है पानी में गंदगी बढ़ गई है। इन दिनों कुंभ मेले में करीब 4-5 लाख लोग स्थाई रूप से गंगा तट पर रह रहे हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल कुंभ में बड़ी संख्या में लोगों के स्नान अथवा वहां रहने से गंगा में प्रदूषण बढ़ता हो। गंगा की ऊपरी धारा में पहले से ही शहरी मलजल और कल-कारखानों का दूषित कचरा गिरता है।
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महिमा गंगा जल की : साधु-संत और अनेक जन संगठन इस प्रदूषण के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं। कई लोगों ने अदालत में जनहित याचिका भी दाखिल की।
अदालत के आदेश से इन दिनों कुंभ के लिए नरौरा बैराज से गंगा में 2,500 क्यूसेक ज्यादा पानी छोड़ा जा रहा है। फिर भी ऊपर से गंगा और उसकी सहायक नदियों में इतना प्रदूषण आ रहा है कि अतिरिक्त पानी छोड़ने के बावजूद इलाहाबाद में गंगा का पानी साफ नहीं है।
इससे पहले कई वैज्ञानिकों ने परीक्षण करके इस जन विश्वास की पुष्टि की थी कि गंगा जल में स्वयं शुद्धि की अद्भुत क्षमता है।
इसीलिए सालों-साल रखने पर भी गंगा जल सड़ता नहीं। वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध किया था कि बीमारी फैलाने वाले जीवाणु गंगा में ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह पाते।
लेकिन अब कन्नौज से नीचे गंगा में प्रदूषण की मात्रा इतना अधिक बढ़ गई है कि शायद गंगा जल में स्वयं शुद्धि की क्षमता कम हो रही हो। शायद इसीलिए लोगों के स्नान मात्र से संगम पर प्रदूषण का स्तर बढ़ गया।
लेकिन इससे गंगा जी के प्रति लोगों की धार्मिक आस्था में कमी नहीं आई। लोग अब भी घर पर पूजा एवं अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों के लिए बोतल में भरकर गंगा जल ले जा रहे हैं।