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केरल है भारत का 'केला गणतंत्र'

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- नितिन श्रीवास्तव, (तिरुअनंतपुरम से)

BBC
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में जब से आया हूँ, एक ही चीज आम तौर पर हर जगह दिख जाती है केले! ये पढ़कर हैरान मत होइएगा कि इस शहर में हर गली या नुक्कड़ या फिर बड़े बाजार या किसी शापिंग मॉल में आने का गेट ही क्यों न हो, हर तरफ एक ही चीज लटकी मिल जाती है, केले!

यहाँ आने से पहले मैंने भी केरल की तस्वीरों में दो ही चीज़ें देखी थीं। केरल के खूबसूरत बीच और हरे-भरे जंगलों के बीच केले के पेड़। लेकिन कभी सोचा भी नहीं था कि इस फल की बिक्री यहाँ पर ठीक उसी तरह दुकानों में होती है जैसे उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश या बिहार में पान या चाय की दुकान होती हैं।

पूरे माजरे को समझने के लिए मैं पैदल ही अपने होटल से निकल पड़ा।

तरह-तरह के केले : करीब 200 मीटर चलने के बाद ही एक पारचून की दुकान दिखी जिसमें शैम्पू, चाय के पाउच और सौंफ के पैकटों के बीच एक बड़ी-सी केले के पेड़ की डाल लहरा रही थी और उसमें करीब 50 से भी ज्यादा लाल रंग के केले थे।

लाल रंग के केले पहले यदा-कदा ही दिखे थे और वो भी छोटे आकार के, लेकिन यहाँ तो करीब सात-आठ इंच लंबे लाल केले हर दुकान की शोभा बढ़ा रहे होते हैं।

ऐसी ही एक दुकान के मालिक पुष्करण कहते हैं, 'केरल में केले को शुभ मानते हैं। इसके फल को भी और पत्तों को भी। केरल का वातावरण केले की फसल के लिए बहुत अनुकूल भी है। सबसे अच्छी बात ये की केला यहाँ पूरे भारत में सबसे सस्ता मिलता है।'

अपनी जिज्ञासा को थोड़ा बहुत दबाते हुए मैंने जब पुष्पकरण से एक केले का दाम पूछा तो हैरानी भी हुई और लालच भी बढ़ा। छह केलों की कीमत थी मात्र 6 रूपए!

सुबह केरल शहर का मुआयना करने निकला तो जिधर नजर घूमी केले ही दिखे।

महत्वपूर्ण हिस्सा : फर्क सिर्फ इतना था कि शहर के भीतर की दुकानों में लाल के साथ साथ हरे और पके हुए केले भी बिक रहे थे।

तिरुअनंतपुरम बस स्टैंड के पास एक छोटी-सी चाय की दुकान है जिसे विनोद कृष्ण कुमार चलाते हैं। उनका मानना है कि केले की बिक्री से उनकी और तमाम बिक्रियाँ भी बढ़ी रहती हैं। कृष्ण कुमार हिंदी तो नहीं बोल पाते, इसलिए मेरे टैक्सी ड्राइवर ने मलयाली में मेरा सवाल उन तक पहुँचाया।

कृष्ण कुमार कहते हैं, 'अगर उत्तर भारतियों को यहाँ इतने सारे केले के फल बिकते देख कर हैरानी होती है तो जायज है। पूरे दक्षिण भारत में केले के पते का प्रयोग घर-घर में खाना खाने के लिए होता है और इससे गंदगी भी नहीं होती। आखिर केले के पेड़ और पत्तों का इतना उपयोग होगा तो फिर फल भी होंगे ही। लोगों के नाश्ते और खाने का ये एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।'

कुछ अन्य दुकानों में बात करने के बाद पता चला कि केरल में केले की मंडियाँ भी बहुत कम ही हैं और लोग केलों को सीधे दुकानदारों को बेचने में भी काफी श्रद्धा रखते हैं।

लगभग सभी केरलवासियों की तरह ही दो दिन इस प्रदेश में बिता लेने के बाद अब मुझे भी यकीन हो चला है की केलों से सस्ता और टिकाऊ भोजन कम से कम यहाँ तो मौजूद नहीं है।

1. क्या वाकई कोई जी-स्पॉट होता है?

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