जाति के आधार पर भेदभाव बरता जाना भारत में आम बात है, लेकिन अब इस बात के प्रमाण मिले हैं कि ब्रिटेन में बसे हिन्दू और सिख समुदायों में यह प्रथा जारी है।
पहले ब्रिटेन के मंत्रियों ने कहा था कि उनके विचार में तथाकथित निचली जातियों के लोगों के साथ ब्रिटेन में भेदभाव नहीं बरता जाता। लेकिन बैरोनेस थॉर्नटन का कहना है कि इस बात के प्रमाण हैं कि यहाँ भी भेदभाव बरता जाता है। उन्होंने इस दिशा में और खोज किए जाने के आदेश दिए हैं।उन्होंने यह टिप्पणी तब की जब ब्रिटेन की संसद के ऊपरी सदन हाउस ऑफ लॉर्ड्स में समान अधिकार वाले विधेयक में संशोधन स्वीकार किया गया। इस विधेयक से जाति के आधार पर भेदभाव बरतना गैर-कानूनी हो जाएगा।हिन्दू अभियानकर्ता एक लम्बे समय से यह कहते रहे हैं कि ब्रिटेन में बसे एशियाई समुदाय की दूसरी पीढ़ी में भी दलितों को कथित ऊँची जातियों के लोगों के हाथों भेदभाव सहना पड़ता है।बैरोनेस थॉर्नटन ने हाउस ऑफ लॉर्ड्स को बताया कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनोमिक एंड सोशल रिसर्च जुलाई या अगस्त में अपनी रिपोर्ट पेश करेगा।बैरोनेस थॉर्नटन ने कहा, 'हमने जातिगत भेदभाव के प्रमाण जुटाने की कोशिश की है और हमें लगता है कि ऐसे प्रमाण मिल सकते हैं। इसीलिए इस शोध के आदेश दिए गए हैं।'लिबरल डैमोक्रैट पार्टी के सांसद लॉर्ड एबरी जिन्होंने संशोधन विधेयक पेश किया था कहा कि यह अनुसंधान निर्णायक रूप से यह प्रमाणित कर सकेगा कि जाति के आधार पर भेदभाव होता है।अगर यह विधेयक कानून की शक्ल लेता है तो हर तरह के छोटे-बड़े संगठन और संस्थाओं को समानता को बढ़ावा देने और कार्यस्थल में भेदभाव रोकने की दिशा में प्रयास करना होगा।इस समय जो कानून मौजूद है उसमें लिंग, नस्ल, विकलाँगता, यौन झुकाव, धर्म या आस्था, या फिर आयु के आधार पर भेदभाव बरतना गैर कानूनी है। मंत्रियों को आशा है कि इस कानून में और पारदर्शिता लाने से महिलाओं और पुरुषों के वेतन में जो असमानता है उससे निपटने में भी मदद मिलेगी।नेशनल सैक्युलर सोसायटी के कार्यकारी निदेशक कीथ पोर्टियस का कहना है कि जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव की दिशा में अनुसंधान का निर्णय एक ऐतिहासिक क्षण है।कीथ पोर्टियस ने कहा, 'जाति के आधार पर भेदभाव का यह अभिशाप जिसमें भारत में लाखों लोगों को अस्पृश्य माना जाता है इस देश में भी चुपचाप चला आया है।'