जानकारी बढ़ाती साइंस एक्सप्रेस
- नितिन श्रीवास्तव (तिरुअनंतपुरम से)
केरल की राजधानी तिरुअंतपुरम के निवासी इन दिनों 'साइंस एक्सप्रेस' को देखने के लिए उत्सुक हैं। यह ट्रेन आजकल तिरुअंतपुरम के त्रिवेंद्रम रेलवे स्टेशन पर डेरा डाले हुए है। इसका मक़सद भारत के करीब सभी छोटे-बड़े शहरों के स्कूली बच्चों और आम लोगों में विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाना।केंद्रीय विज्ञान और तकनीक विभाग ने 2007 में 16 वातानुकूलित डिब्बों वाली इस ट्रेन की शुरुआत की थी।विज्ञान और तकनीकी : साइंस एक्सप्रेस अब तक भारत के सौ शहरों में जा चुकी है। मंगलवार के दिन जब मैं इस ट्रेन में दाखिल हुआ तो यह देखकर हैरान हुआ कि ट्रेन के किसी एक भी डिब्बे में सोने के लिए बर्थ नहीं है।इस ट्रेन के डिब्बे किसी घर के कमरों की तरह नजर आते हैं। हर डिब्बे में विज्ञान और तकनीक जगत से जुडी चुनौतियों और उपलब्धियों का लेखा-जोखा दिया गया है। हर डिब्बे में एक एलसीडी स्क्रीन, जिसकी मदद से आप उस डिब्बे के विषय से जुड़ी हुई तस्वीरें, फिल्में और स्लाइड का लुत्फ उठा सकते हैं।ट्रेन के अंदर चलते हुए जब मैं चौथे डिब्बे में पहुँचा तो एक पेड़ के तने को देख कर हैरान रह गया। मेरे साथ चल रहे गाइड ने बताया कि यह असली पेड़ का तना है। गाइड ने बताया कि तने में जो काले धब्बे दिख रहे हैं वे जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन से वातावरण में आए बदलाव के निशान हैं।जलवायु संकट : इस डिब्बे में लगी इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन बता रही थी कि हर दस साल बाद दुनिया भर में समुद्र का जल स्तर किन-किन शहरों को निगल जाएगा। इस स्क्रीन के मुताबिक तिरुअंतपुरम और मुंबई जैसे भारतीय शहरों पर भी इस खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।ट्रेन के साथ चल रहे भारतीय विज्ञान और तकनीक विभाग के अधिकारी अनुज सिन्हा बताते हैं कि हर साल इस ट्रेन को चलाने की कीमत करीब 10 करोड़ रुपए तक आती है।उन्होंने कहा, 'हम लोग चाहते हैं की विज्ञान का जो उत्साह है वह, युवा वर्ग तक पहुँचा सकें, दिखा सकें। इसलिए ये चलती-फिरती प्रदर्शनी इस ट्रेन में मौजूद है। यह ट्रेन जहाँ भी जाती है बच्चों में तहलका मच जाता है और इसका स्वागत होता है।'जब मैं ट्रेन के पाँचवे डिब्बे में पहुँचा तो एक बड़ी टेलीस्कोप को देख कर जिज्ञासा बढ़ी। उसमे झाँक कर देखा तो अंतरिक्ष का एक बड़ा गोला स्लाइड के रूप में नजर आया।मंगल ग्रह और उत्सुकता : गाइड ने बताया की यह मंगल ग्रह का चंद्रमा है। उन्होंने बताया कि लोग मंगल ग्रह को को लेकर काफी उत्सुक हैं। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति यह जानना चाहता है की मंगल तक इंसान कब तक पहुँच पाएगा।साइंस एक्सप्रेस के सभी डिब्बों में घूमने के बाद मेरी विज्ञान में रुचि शायद और बढ़ गई है।ब्रह्माण्ड की शुरुआत और इसकी खोज कैसे हुई? बायोटेक्नोलॉजी क्या है? यह नैनो टेक्नोलॉजी से कैसे अलग है? कंप्यूटर विकास का विज्ञान में कितना महत्व है?साइंस एक्सप्रेस में जाने के बाद इन सवालों के बारे में और जानने की जिज्ञासा बढ़ गई। क्योंकि किताब से ज्यादा सरल और क्रियात्मक तरीके से इन तमाम सवालों के बारे में जानकारी मुझे भी इस ट्रेन में कुछ घंटे बिताने के बाद ही मिली।