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'तुम फेंको हम खाएँ'

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हमें फॉलो करें ब्रिटेन समाज कल्याण चैरिटी संस्था
BBC
दुनिया भर में खाने की चीजों की बर्बादी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए ब्रिटेन की कुछ समाज कल्याण यानी चैरिटी संस्थाओं ने 16 दिसंबर को लंदन के मशहूर ट्रैफलगर स्क्वैयर पर पाँच हजार लोगों को मुफ्त खाना खिलाया।

चैरिटी संस्थाओं का अनुमान है कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका के धनी देशों में खाने-पीने की चीजों की जितनी आपूर्ति होती है उसमें से एक तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा फेंक दिया जाता है।

खाने-पीने की चीजों की इस मात्रा को अगर लिया जाए तो ऐसे करोड़ों लोगों का पेट भर सकता है जो हर दिन भूख का सामना करते हैं।

हालाँकि बुधवार को लंदन में इस मौसम की पहली बर्फबारी हुई, लेकिन उसकी वजह से लोग ट्रैफलगर स्क्वैयर पर आने से नहीं झिझके और गरमा-गरम खाना पाने के लिए हजारों लोग कतार में देखे गए। इस खाने में सब्जी, ब्रेड और ताजा फल पेश किए गए और उन्हें मुफ्त में ट्रैफलगर स्क्वैयर पर खाने का अपना अलग ही आनंद था।

ब्रिटेन के ऐसे किसानों ने ये भोजन दान दिया था जिसे आमतौर पर फेंक दिया जाता है। इस अभियान को 'फीडिंग द फाइव थाउजैंड' यानी पाँच हजार लोगों को खाना खिलाना का नाम दिया गया।

इस भोजन में ऐसे सेब या गाजरें भी थीं जिनमें मामूली सा दाग़ लग जाता है, लेकिन सुपरस्टोर उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं या फेंक देते हैं, लेकिन यहाँ आए लोगों को ये फल खाने में कोई ऐतराज नहीं था।

ये तो बात है उन चीजों की जो मामूली खराबी की वजह से दुकानों या सुपरस्टोर पर पहुँचने से पहले ही फेंक दिया जाता है। इसके अलावा ब्रिटेन में हर घर में खाने-पीने का जितना सामान खरीदा जाता है, आमतौर पर उसका एक चौथाई हिस्सा फेंक ही दिया जाता है।

अब ध्यान रहेगा :
इस अभियान के आयोजकों में से एक ट्रिस्ट्रैम स्टुअर्ट का कहना है कि धनी देशों में खाने-पीने का जितना सामान फेंका जाता है उसका सीधा असर गरीब लोगों पर पड़ता है क्योंकि उन्हें तो भरपेट खाना-मिलता ही नहीं है।

और ऐसा लगता है कि आयोजकों का यह जागरूकता अभियान कुछ हद तक सफल भी हुआ है। इस अभियान में खाना खाने के लिए अमरीका के इंडियाना से आई एक छात्रा स्टैफनी का कहना था कि इससे पहले उसने इस बात पर गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया था कि आमतौर पर खाने-पीने की चीजें बड़ी आसानी से फेंक दी जाती हैं।

अक्सर ऐसा भी होता है कि लोग बहुत सारा सामान खरीद तो लेते हैं और उसे फ्रिज में भरकर रख देते हैं और जब उस सामान की याद आती है तो तब तक अक्सर वो खराब हो चुका होता है। उसके बाद तो उसे फेंकने के सिवाय कोई चारा नहीं बचता है।

ट्रिस्ट्रैम स्टुअर्ट का कहना था कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका के धनी देशों में खाने-पीने का जितना सामान फेंक दिया जाता है उससे दुनिया भर के ऐसे अरबों लोगों का पेट कई बार भर सकता है जिन्हें हर दिन भूख का सामना करना पड़ता है।

लेकिन जब तक ग्राहकों की यह माँग रहेगी कि उन्हें बिल्कुल बेदाग चीजें ही खरीदनी हैं तो दुकानों और सुपर स्टोर भी इस नीति पर ही चलते रहेंगे कि फलों में जरा-सा भी दाग लगने पर उसे उत्पादकों से स्वीकार ही ना किया जाए।

अक्सर किसान और उत्पादक ऐसे मामूली दागदार चीजों को फेंकने के सिवाय कोई चारा नहीं बचता है क्योंकि वे उन चीजों को बाजार में तो बेच नहीं सकते जबकि ये चीजें पूरी तरह से पोषक आहार होती हैं मगर इस तरह का स्वस्थ खाना बर्बाद होता रहता है।

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