अभी जिस क्षेत्र को तेलंगाना कहा जाता है, उसमें आंध्रप्रदेश के 23 जिलों में से 10 जिले आते हैं। मूल रूप से ये निजाम की हैदराबाद रियासत का हिस्सा था। इस क्षेत्र से आंध्रप्रदेश की 294 में से 119 विधानसभा सीटें आती हैं।
तेलंगाना आंध्र का हिस्सा कब बना : 1948 में भारत ने निजाम की रियासत का अंत कर दिया और हैदराबाद राज्य का गठन किया गया। 1956 में हैदराबाद का हिस्सा रहे तेलंगाना को नवगठित आंध्रप्रदेश में मिला दिया गया। निजाम के शासनाधीन रहे कुछ हिस्से कर्नाटक और महाराष्ट्र में मिला दिए गए। भाषा के आधार पर गठित होने वाला आंध्रप्रदेश पहला राज्य था।
तेलंगाना आंदोलन कब शुरू हुआ: चालीस के दशक में कामरेड वासुपुन्यया कि अगुआई में कम्युनिस्टों ने पृथक तेलंगाना की मुहिम की शुरुआत की थी। उस समय इस आंदोलन का उद्देश्य था भूमिहीनों कों भूपति बनाना।
छह वर्षों तक यह आंदोलन चला, लेकिन बाद में इसकी कमर टूट गई और इसकी कमान नक्सलवादियों के हाथ में आ गई। आज भी इस इलाके में नक्सलवादी सक्रिय हैं।
1969 में तेलंगाना आंदोलन फिर शुरू हुआ था : दरअसल, दोनों इलाकों में भारी असमानता है। आंध्र मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और वहाँ शिक्षा और विकास का स्तर काफ़ी ऊँचा था, जबकि तेलंगाना इन मामलों में पिछड़ा है।
तेलंगाना क्षेत्र के लोगों ने आंध्र में विलय का विरोध किया था। उन्हें डर था कि वे नौकरियों के मामले में पिछड़ जाएँगे। अब भी दोनों क्षेत्र में ये अंतर बना हुआ है। साथ ही सांस्कृतिक रूप से भी दोनों क्षेत्रों में अंतर है। तेलंगाना पर उत्तर भारत का खासा असर है।
1969 में क्या हुआ था : शुरुआत में तेलंगाना को लेकर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया था, लेकिन इसमें लोगों की भागीदारी ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। इस आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग और लाठीचार्ज में साढ़े तीन सौ से अधिक छात्र मारे गए थे। उस्मानिया विश्वविद्यालय इस आंदोलन का केंद्र था।
उस दौरान एम. चेन्ना रेड्डी ने 'जय तेलंगाना' का नारा उछाला था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना प्रजा राज्यम पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। इससे आंदोलन को भारी झटका लगा। इसके बाद इंदिरा गाँधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। 1971 में नरसिंह राव को भी आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था, क्योंकि वे तेलंगाना क्षेत्र के थे।
के. चंद्रशेखर राव की भूमिका : नब्बे के दशक में के. चंद्रशेखर राव तेलुगूदेशम पार्टी का हिस्सा हुआ करते थे। 1999 के चुनावों के बाद चंद्रशेखर राव को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया।
वर्ष 2001 में उन्होंने पृथक तेलंगाना का मुद्दा उठाते हुए तेलुगूदेशम पार्टी छोड़ दी और तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर दिया। 2004 में वाईएस राजशेखर रेड्डी ने चंद्रशेखर राव से हाथ मिला लिया और पृथक तेलंगाना राज्य का वादा किया।
लेकिन बाद में उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और चंद्रशेखर राव ने भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
तेलंगाना राज्य का गठन कैसे होगा : यह प्रक्रिया काफी जटिल है। सबसे पहले राज्य विधानसभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करेगी। फिर राज्य के बँटवारे का एक विधेयक तैयार होगा और संसद के दोनों सदनों में ये पारित होगा। इसके बाद ये राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए जाएगा। फिर संसाधनों के बँटवारे की कठिन प्रक्रिया शुरू होगी।