- राजेश प्रियदर्शी, (लंदन)
डॉक्टर वेंकटरामन रामाकृष्णन कहते हैं कि मैं अपने मरने से पहले बंगलौर जाने के लिए वीजा लेने वाले लोगों की लंबी कतार देखना चाहता हूँ।
अमेरिका में विज्ञान की उच्च शिक्षा हासिल करने और इस वर्ष केमिस्ट्री के लिए दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के 'आशावादी वैज्ञानिक' का मानना है कि भारत के कई उच्च शिक्षा संस्थान विश्व स्तर का काम कर रहे हैं।तमिलनाडु के तीर्थनगर चिदंबरम में विज्ञान पढ़ाने वाले माता-पिता के घर पैदा हुए रामाकृष्णन सिर्फ 19 साल की उम्र में बीएसी की परीक्षा देने के बाद अमेरिका चले गए थे और पिछले दस वर्षों से ब्रिटेन के कैम्ब्रिज में रहते हैं।कैम्ब्रिज की प्रतिष्ठित लेबोरेट्री ऑफ मॉल्युकुलर बायोलॉजी में स्ट्रक्चरल स्टडीज विभाग में डीएनए के भीतर छिपे अति सूक्ष्म राइबोजोम का अध्ययन करने वाले 'डॉक्टर वेंकी' कहते हैं कि उन्होंने जब राइबोजोम पर शोध करने का फैसला किया था तब यह बहुत जोखिम भरा काम था और सफलता मिलेगी या नहीं इसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था।उनका मानना है कि वैज्ञानिक शोध करने के लिए बहुत धीरज की जरूरत होती है, वे कहते हैं, 'लोग मजाक में कहते हैं कि मॉल्युकुलर बायोलॉजी में वैज्ञानिक छोटी-छोटी परखनलियों में एक बूँद तरल लेकर उसे इधर से उधर करते रहते हैं।' बीस साल तक परिणाम की परवाह किए बगैर राइबोजोम की एटोमिक संरचना का अध्ययन करते रहने वाले डॉक्टर वेंकी मानते हैं कि यह सिर्फ अदम्य जिज्ञासा और गहरे आशावाद के बूते ही संभव है।वे कहते हैं, 'यह सोचना गलत है कि नोबेल पुरस्कार कोई लक्ष्य था जिसके हासिल होने के बाद काम बंद हो जाएगा, कोई वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार पाने के लिए काम नहीं करता, अगर कोई करता है तो वह निरा पागल ही है, वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार से काम करने की शक्ति नहीं मिलती उसे अपने शोध की गंभीरता का एहसास सतत क्रियाशील रखता है।'रोज साइकिल चलाकर अपनी प्रयोगशाला पहुँचने वाले इस सादगी-पसंद वैज्ञानिक का मानना है कि नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा से उनके 'रोजमर्रा के जीवन में पैदा हुई हलचल' अब थम जाएगी, अगले कुछ समय में उनका जीवन समान्य हो जाएगा और वे अपना पूरा ध्यान अपने प्रिय विषय राइबोजोम पर केंद्रित कर पाएँगे।सिर्फ तीन साल की उम्र में चिदंबरम को अलविदा कहकर वे अपने वैज्ञानिक पिता के साथ बड़ौदा चले गए थे, वे आज भी बड़ौदा में मिली शिक्षा और अपने शिक्षकों को बहुत कृतज्ञता से याद करते हैं, 'बड़ौदा में मुझे बहुत अच्छी शिक्षा मिली जिसने मुझे एक वैज्ञानिक जीवन के लिए तैयार किया।'डॉक्टर वेंकटरामन रात-दिन प्रयोगशाला में सिर खपाने वाले वैज्ञानिकों की छवि से काफी अलग हैं, वे कहते हैं, 'मैं आठ-दस घंटे से ज्यादा काम नहीं करता क्योंकि उसके बाद मैं थक जाता हूँ, थक जाने पर गलतियाँ अधिक होती हैं। हम मनुष्य हैं, हमें नींद की और आराम की जरूरत होती है।'वे कहते हैं कि कोई भी बहुत लंबे समय तक रात-दिन काम नहीं कर सकता लेकिन ऐसा वक़्त वैज्ञानिकों के जीवन में अक्सर आता है जब वे अपने काम में गहरे खो जाते हैं, वे कहते हैं, 'अक्सर ऐसा होता है कि जब मैं घर जाता हूँ तब भी किसी वैज्ञानिक सवाल के बारे में सोच रहा होता हूँ, कभी-कभी मेरे परिवार के लोग इससे झल्ला जाते हैं क्योंकि मेरा ध्यान उनकी बातों पर नहीं होता।'पहचान का सवाल : डॉक्टर वेंकी मानते हैं कि उनकी पहचान के सवाल में 'तिहरा उलझाव' है। वे कहते हैं, 'जब लोग मुझसे पूछते हैं कि आप कहाँ से हैं, तो मैं कहता हूँ कि मैं भारतीय मूल का अमेरिकी हूँ और ब्रिटेन में रहता हूँ। वैसे मैं जवाब कुछ भी दूँ, भारतीय और ब्रितानी दोनों ही, मुझे हर हाल में भारतीय समझते हैं, लेकिन अमरीका में ऐसा नहीं है, अमेरिका में आपका जातीय मूल से तय नहीं होता कि आप कौन हैं, अगर आपने अमेरिका को अपना लिया है तो अमेरिका भी आपको अपना मान लेता है।'बड़ौदा की एमस यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया, यूटा और कैम्ब्रिज के उच्च वैज्ञानिक शिक्षण संस्थानों से जुड़े रहने वाले डॉक्टर वेंकी कहते हैं, 'वैसे तीनों ही देशों ने मेरे जीवन में, मेरे करियर में बहुत योगदान किया है, मैं मानता हूँ कि तीनों ही मेरे देश हैं।'कर्नाटक संगीत सुनने के शौकीन इस वैज्ञानिक का कहना है कि मेरे अंदर अपनी भारतीय जड़ों का एहसास बहुत गहरा है, मेरे अंदर बहुत सारी बातें हैं जो बिल्कुल भारतीय हैं जैसे कि मैं शाकाहारी हूँ। मेरा ढाँचा हमेशा भारतीय ही रहेगा, लेकिन कुछ चीजों के मामले में मेरा रवैया अमेरिकी है और कैम्ब्रिज में रहना मुझे अच्छा लगता है इसलिए यह काफी जटिल मामला है।भारत में हो रही तरक्की को लेकर आशावान डॉक्टर वेंकी मानते हैं कि भारत सही दिशा में जा रहा है, लेकिन बहुत काम करने की जरूरत है। वे कहते हैं, 'मैं वैज्ञानिक हूँ और वैज्ञानिक स्वभाव से आशावादी होते हैं मुझे लगता है कि भारत एक आर्थिक और वैज्ञानिक शक्ति के रूप में उभरेगा।'1971
से 1999 के बीच सिर्फ तीन बार भारत गए डॉक्टर वेंकी कहते हैं, 'पिछले कुछ सालों से मेरा भारत जाना बहुत अधिक हो गया है, कुछ सालों से लगभग हर क्रिसमस ब्रेक मैंने भारत में बिताया है। मेरी सारी भारत यात्रा वैज्ञानिक गतिविधियों से जुड़ी होती हैं, मुझे भारत के वैज्ञानिकों से मिलना काफी अच्छा लगता है। स्टॉकहोम में अवार्ड लेने के सिर्फ़ एक दिन बाद मैं भारत जा रहा हूँ".ख़ाली समय में किताबें पढ़ने और फ़िल्में देखने के शौक़ीन वैज्ञानिक डॉक्टर वेंकी को अँगरेजी में लिखने वाले भारतीय लेखकों को पढ़ना भी अच्छा लगता है, अल्फ्रेड हिचकॉक के फ़ैन का कहना है, 'बड़े ब्लॉकबस्टर्स के मुकाबले जो छोटी-छोटी फिल्में होती हैं वे मुझे अधिक भाती हैं।'बीस साल से राइबोजोम के अध्ययन में लगे रहने का ये मतलब नहीं है कि वे अपने जीवन में कुछ नया नहीं सीख रहे, डॉक्टर वेंकी अपनी प्रयोगशाला में मौजूद एक स्पेनी वैज्ञानिक से मुस्कुराकर कहते हैं, 'जल्दी ही मेरी स्पैनिश की परीक्षा आने वाली है मुझे तुम्हारे साथ थोड़ी प्रैक्टिस करनी होगी।'