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'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी'

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महबूब खान, लंद
इस विशेष श्रृंखला में आप रुबरु हों रहे हैं ऐसे भारतीयों से जो अपनी मेहनत और लगन के बूते ब्रिटेन में नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं। दस लाख की आबादी वाला भारतीय समुदाय ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का सिर्फ 1.8 प्रतिशत है लेकिन शिक्षा, व्यापार, विज्ञान, मनोरंजन से लेकर राजनीति तक हर क्षेत्र में इस बिरादरी ने अपनी साख ायम की है।

जाहिर है, सफलता का ये सफर कभी बहुत कठिन, कभी बहुत दिलचस्प, कभी बहुत रंगीन रहा है, विदेशी आसमान में ऊँची उड़ान भरने वाले ऐसे लोगों से हम आपकी मुलाकात कराने जा रहे हैं जो मीडिया की नजरों से दूर, कामयाबी की एक नई कहानी लिख रहे हैं।

BBC
इस विशेष श्रृंखला की इस कड़ी में मुलाकात डॉक्टर सतविंदर जस के साथ, जो मशहूर किंग्स कॉलेज के विधि विभाग में प्रोफेसर हैं और इस मुक़ाम तक पहुँचने वाले वो पहले भारतीय मूल के शिक्षाविद हैं।

“अगर हर व्यक्ति एक अच्छा इंसान बन जाए तो वो जो कुछ भी काम करेगा, वो अच्छा ही होगा। मेरी कोशिश भी एक अच्छा इंसान बनने की ही है, फिर चाहे मैं किसी भी रूप में काम करूँ।”

विधि प्रोफेसर, बैरिस्टर, जज, मानवाधिकार कार्यकर्ता, एक अच्छे पति और पिता और अन्य अनेक भूमिकाओं में सक्रिय प्रोफ़ेसर सतविंदर जस से जब हम पूछते हैं कि वो दरअसल कौन सी भूमिका सबसे ज्यादा पसंद करते हैं तो वो कहते हैं कि असली बात तो सबसे अच्छा इंसान बनना है।

प्रोफेसर सतविंदर जस भारतीय मूल के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर ब्रिटेन के किसी विश्वविद्यालय में कानून का प्रोफेसर होने का दर्जा हासिल किया है। प्रोफेसर जस का मृदुभाषी होना और उनकी सक्रियता उनके व्यक्तित्व को बखूबी परिभाषित करती है।

प्रोफेसर सतविंदर जस यह बताने में कतई नहीं झिझकते हैं कि हालाँकि उन्होंने नियमित रूप से कभी भी भारत में निवास नहीं किया है लेकिन वो खुद को हिंदुस्तानी ही मानते हैं और अपनी इस पहचान पर उन्हें गर्व भी है। जस बड़ी दिलचस्पी के साथ यह भी बताते हैं कि मुकेश का गाया हुआ वो गीत उनकी पहचान को अच्छी तरह से परिभाषित करता है जिसके बोल हैं - मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी।

"बचपन में मुझे भारत में रहने का अवसर नहीं मिला लेकिन पिछले क़रीब पाँच वर्षों से नियमित रूप से मेरा हिंदुस्तान जाना शुरू हुआ है और हिंदुस्तानी भाषा सीखने के साथ-साथ मैंने भारत की शैक्षिक संस्थाओं के साथ अपने संबंध बढ़ाने शुरू किए हैं.”

जड़ों से जुड़ाव : प्रोफेसर सतविंदर जस अपने विचार रखते हैं कि किसी भी व्यक्ति को अपनी जड़ों से दूर नहीं जाना चाहिए क्योंकि यही पहचान व्यक्ति को प्रगति करने और अपनी पहचान कायम रखने में मदद करती है।

“मेरा यह पक्का विश्वास है कि अगर आप को जीवन में सफलता हासिल करनी है तो अपनी जड़ों से अवश्य जुड़े रहना चाहिए। आप आश्चर्य करेंगे कि मैंने एक दिन भी हिंदुस्तान में निवास नहीं किया लेकिन मैं खुद को हिंदुस्तानी ही समझता हूँ।”

प्रोफ़ेसर सतविंदर जस का जन्म दक्षिण अफ्रीका के तंजानिया में हुआ और 1960 के दशक में अनेक परिवार ब्रिटेन आए तो उनका परिवार भी यहाँ आ गया। लेकिन यह सफर आसान नहीं रहा है। जस बताते हैं कि जब उनका परिवार ब्रिटेन आया तो उनकी उम्र दस वर्ष थी।

“हमारे पिता हालाँकि दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश कर्मचारी थे लेकिन ब्रिटेन आने पर उनकी शिक्षा, योग्यता और अनुभव को नजरअंदाज किया गया। उन्हें ऐसा काम करने को कहा गया जो उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं था। इस पर उनके पिता ने आगे पढ़ाई करने की ठान ली और कामकाज करने के साथ-साथ शिक्षा हासिल की और फिर सम्मानजनक स्थान हासिल किया”

प्रोफेसर सतविंदर जस याद करते हैं कि अपने बचपन के दिनों में उन्होंने अपने पिता को अन्याय के विरुद्ध न्याय की लड़ाई लड़ते हुए देखा था जिससे उन्होंने भी सबक सीखा कि अगर मजबूती के साथ मेहनत और संघर्ष जारी रखेंगे तो प्रगति का रास्ता निकलेगा और फिर उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया।

दुनिया के प्रसिद्ध कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून की अनेक डिग्रियाँ हासिल करने के बाद न सिर्फ अध्यापन का काम शुरू किया बल्कि बैरिस्टर, जज और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी अपनी सक्रियता बनाई और लगातार बढ़ाई भी।

प्रोफेसर सतविंदर जस की मुलाक़ात अनेक अंतरराष्ट्रीय हस्तियों से होती रहती है जिनमें संयुक्त राष्ट्र को पूर्व महासचिव कोफी अन्नान भी शामिल हैं। ब्रिटेन की महारानी विशिष्ठ अवसरों पर प्रोफेसर जस को बकिंघम पैलेस में भी आमंत्रित करती हैं।

प्रोफेसर सतविंदर जस मानवाधिकार मुद्दों पर न सिर्फ ब्रिटेन सरकार को बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ काम करते रहते हैं। खासतौर से ब्रिटेन में भारतीय समुदाय के बीच जो ज्वलंत मुद्दें हैं, उन पर जस बहुत सक्रिय रहते हैं।

उनकी नजर में ब्रिटेन के भारतीय समुदाय को अब भी महिलाओं के साथ भेदभाव और जाति व्यवस्था जैसी समस्याओं ने जकड़ रखा है जिनमें सुधार होना बहुत जरूरी है।

अपने लोगों को फायदा : प्रोफेसर जस यह कहते हुए नहीं झिझकते कि उन्हें ब्रिटेन में अच्छे अवसर मिले हैं जिसकी बदौलत वो अपनी एक खास पहचान बनाने में सफल हुए हैं लेकिन उनका ये भी कहना है कि ब्रिटेन की व्यवस्था में जो अच्छाइयाँ हैं उन्हें भारत में भी अपनाया जाना चाहिए जिससे सभी लोगों को बराबरी के अवसर प्राप्त हों और प्रगति में सबको बराबरी का हिस्सा मिले।

परिवार के बारे में पूछने पर प्रोफेसर जस तपाक से बोलते हैं कि उनका विवाह परंपागत तरीके से हुआ है यानी उनके माता-पिता ने भारत से ही दुल्हन का चयन किया लेकिन उनकी ख़ुद की पसंद भी पूछी गई। जस बताते हैं कि उनके दिल में कभी भी ऐसा विचार नहीं आया कि अगर प्रेम विवाह होता तो शायद अच्छा होता।

वो कहते हैं कि जिस तरह से हम बहुत सारे कार्यों की योजना बनाते हैं, उसी तरह से विवाह की भी योजना बनाई जानी चाहिए, जरूरी नहीं कि व्यक्ति प्रेम विवाह करके ही खुश रहता है।

“मैं परंपरागत विवाह करके बहुत ही खुश हूँ, जो कुछ भी हुआ है बहुत ही अच्छा हुआ है क्योंकि मेरी पत्नी - रानी, हमारे घर की रानी हैं, मेरे दिल की रानी हैं।”

अपनी भारतीय पहचान के बारे में जस बताते हैं कि उनके घर में एक सामान्य सिख परिवार का वातावरण रहता है। उनके दो बेटे हैं साहिब सिंह और सेवक सिंह जो सिख परंपरा के अनुसार जीवन जीते हैं, लंबे बाल रखते हैं, पटका बाँधते हैं, गुरुद्वारे भी जाते हैं लेकिन ब्रिटेन की शिक्षा व्यवस्था में फिट होकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।

खाली समय में प्रोफेसर जस भारतीय गीत-संगीत सुनना पसंद करते हैं और चहक कर बताते हैं कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सुनने का बड़ा शौक है। हिंदी फिल्मों ने उन्हें हिंदी सीखने में भी मदद की है। इतना ही नहीं, वो खुद गजल गाते भी हैं और मेहंदी हसन, ग़ुलाम अली और जगजीत सिंह की गजलें उन्हें बहुत पसंद हैं।

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