'महकमा ही सबसे बड़ा शराब माफिया'
- मणिकांत ठाकुर (पटना से)
बिहार में शराब के वैध-अवैध धंधों की बहार-सी आई हुई है। पिछले तीन-चार वर्षों में यहाँ देसी-विदेशी और असली-नकली दारू की दुकानें कुकुरमुत्तों की तरह छा गई हैं।शहर या कस्बे की कौन कहे, अब तो गाँव-गाँव में पाउच वाली देसी दारू धड़ल्ले से बिक रही है। ऐसी मिलावटी और जहरीली शराब पीकर लोग मर भी रहे हैं।लगभग 5000 दारू की दुकानें सरकार की बंदोबस्ती यानी लायसेंसी दायरे में हैं, लेकिन इस दायरे से बाहर वाली जो दुकानें गैरकानूनी तौर पर गली-गली में नशा बेच रही हैं, उनकी तादाद का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।इस धंधे पर सरकारी नियंत्रण के लिए बने उत्पाद और मद्य निषेध विभाग का काम दरअसल मदिरा के प्रति निषेध नहीं, आकर्षण पैदा करके राजस्व कमाना है। लेकिन इस व्यवसाय की काली कमाई से पैदा हुए धन-पशुओं के आगे बड़ी-बड़ी सत्ता भी बिछ जाती है।फिर भी, मेरे मन में आया कि बिहार में पहले से ज्यादा निरंकुश और जानलेवा हुए दारू-कारोबार के प्रति राज्य सरकार की इतनी दरियादिली का कारण इस विभाग के मंत्री से पूछा जाए।मैंने विभागीय मंत्री जमशेद अशरफ से संपर्क साधा। वो पटना से बाहर थे, लेकिन टेलीफोन पर बातचीत के लिए राजी हो गए और जब उनसे बातें हुईं तो लगा जैसे कोई मंत्री नहीं बल्कि दारू के काले कारोबारी-गिरोह से खार खाया हुआ कोई जुझारू आदमी अपना रोष जाहिर कर रहा हो।'
अंडे खाओ, मुर्गियाँ नहीं'नीतीश सरकार के उत्पाद और मद्यनिषेध मंत्री का ये कहना कि अपने राजनीतिक सहयोगियों के बजाय नौकरशाहों से राय लेना मुख्यमंत्री की आदत है, बड़ा ही अप्रत्यशित लगा।इतना ही नहीं, अशरफ ने कहा, 'बिहार में शराब का ढाई हज़ार करोड़ रुपए का मार्केट है, जिसमें सिर्फ आठ या नौ करोड़ रूपए ही सरकार को मिलते हैं। बाकी सब अवैध कारोबारियों और घूसखोरों के पेट में जाएगा। किस-किस पर मैं उंगली उठाऊँ, सब के सब लिप्त हैं।'इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात उत्पाद मंत्री ने ये कही, 'सबसे बड़ा शराब माफिया हमारा ये सरकारी महकमा ही है, जो इसे मलाईदार डिपार्टमेंट मानकर खूब खाता-पीता है। मैं कहता हूँ कि भाई, अंडे खाओ लेकिन मुर्गियाँ मत खा जाओ।'ये सब सुनकर मुझे लगा कि मंत्रीजी तो अपने विभाग के कथित माफिया समेत अब मुख्यमंत्री से भी दो-दो हाथ कर लेने की मुद्रा में हैं।उधर बिहार के विकास संबंधी विवादस्पद आँकड़ों के अहंकार में चढ़ी हुई आँखें अगर इस प्रदेश में बह रही 'दारू की नदियों' को 'दूध की नदियाँ' घोषित कर भी दें तो ज्यादा मत चौंकिएगा।