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शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले...

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हमें फॉलो करें स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस
- इर्शादुल हक (पटना से)

स्वतंत्रता सेनानी और भारत की आजादी के लिए बलिदान देने वाले खुदीराम बोस के मुजफ्फरपुर स्थित समाधिस्थल पर अब एक शौचालय नजर आ रहा है। इस सार्वजनिक शौचालय से जहाँ अनेक सामाजिक संगठनों और बुद्धीजीवियों में नाराजगी बढ़ती जा रही है वहीं बिहार सरकार इस मामले की जाँच में जुट गई है।

भारत की आजादी की खातिर मुजफ्फरपुर के तत्कालीन अंग्रेज मजिस्ट्रट किंग्सफोर्ड पर खुदीराम ने बम फेंका था। जिसके बाद उन्हें 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर की सेंट्रल जेल में फाँसी पर लटका दिया गया था।

उनका अंतिम संस्कार स्थानीय चंदवारा के बरनीघाट पर किया गया था और आज बरनीघाट के इसी समाधिस्थल पर सार्वजनिक शौचालय है।

जाँच के आदेश : पश्चिम बंगाल की संस्था वीर सावरकर फाउंडेशन के आग्रह पर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने इसकी जाँच का आदेश दिया है।

वीर सावरकर फाउंडेशन के सचिव श्याम सुंदर पोद्दार ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, 'महान शहीद खुदीराम बोस का समाधिस्थल बरनीघाट और मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल का वह स्थल जहाँ उन्हें फाँसी दी गई थी हमारी धरोहर हैं, लेकिन इनकी दुर्दशा और अपमान हमारे लिए शर्म की बात है।'

बरनीघाट के निकट गाँव के रहने वाले मोहम्मद कासिम बताते हैं, 'हमारे दादा ने अपनी आँखों से खुदीराम का अंतिम संस्कार देखा था। वह हमें बताते थे कि इसी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार हुआ था। उस जमाने का एक पेड़ आज तक वहाँ मौजूद है।'

'खुदीराम' नामक पुस्तक लिखने वाले पत्रकार अरुण सिंह अपने शोध के दौरान महीनों इन स्थानों का भ्रमण करते रहे।

वे कहते हैं, 'हमें शर्म आती है कि हमारा इतिहासबोध इतना ओछा हो गया है। अगर हम अपने महान सपूतों को सम्मान नहीं दे सकते तो कम से कम हमें उन्हें अपमानित करने का कोई अधिकार नहीं है।'

अरुण कहते हैं, 'बोस के समाधिस्थल का एक महत्व यह भी है कि महान साहित्यकार शरतचंद्र ने अपने अनेक उपन्यासों को उसी स्थल पर बैठकर लिखा था। शरतचंद्र के बाद की पीढ़ी के साहित्यकार क्या अब उस समाधिस्थल के बजाए शौचालय के निकट बैठ कर प्रेरणा लेंगे।'

वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन से खिन्न होकर खुदीराम बोस क्रांतिकारियों के दल के सदस्य बन गए थे। खुदीराम और उनके सहयोगी प्रफुल्ल चाकी ने बंगाल विभाजन के पक्षधर, कलकत्ता प्रेसीडेंसी के मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफर्ड की हत्या की रणनीति बनाई थी।

बम हमला : 13 अप्रैल 1908 को जब किंग्सफर्ड मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट थे, तो उन पर खुदीराम ने चाकी के साथ मिलकर बम फेंका था, लेकिन किंग्सफर्ड बच गए थे। इस हमले में दो अंग्रेज महिलाओं की मौत हो गई थी।

'खुदीराम' के लेखक अरुण सिंह कहते हैं खुदीराम अतिवादी नजरिये के तहत ही अंग्रेजों से आजादी हासिल करना चाहते थे।

जब उन्हें फाँसी दी गई उस समय उनकी उम्र 17-18 साल ही थी।

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