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उम्र ढलने का त्वचा पर प्रभाव

ढलने लगती है उम्र के साथ त्वचा

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जैसे -जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, त्वचा की कांति ढलती जाती है। हमारे चेहरे की त्वचा पर वर्षों तक धूप, गुरुत्वाकर्षण, मुस्कुराने, खाना चबाने और आँखें मिचमिचाने से गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ता है। जिन ऊतकों के कारण हमारी त्वचा तरोताजा और भरी पूरी नजर आती है वे समय के साथ टूटने लगते हैं, इसका नतीजा यह होता है कि चेहरे पर झुर्रियाँ और बारीक-बारीक रेखाएँ उभर आती हैं।

बढ़ती उम्र का त्वचा पर प्रभाव :

* अल्ट्रावायलेट लाइट, मेटॉबोलिक प्रोसेस के कारण सेल टिश्यूज का क्षरण होना और खत्म होना आदि ऐसे कारण हैं जिनसे शारीरिक बुढ़ापा आ जाता है।

* एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार न सिर्फ बुढ़ापे को टाल सकता है बल्कि कई तरह की स्थायी क्षति को भी रिपेयर कर सकता है।

* जब आप उम्र के दूसरे दशक में होते हैं तब शरीर में ढेर सारे परिवर्तन होते हैं। मसलन हार्मोंस का उतार-चढ़ाव शरीर को अंदर और बाहर से हिलाकर रख देता है। भारतीयों की त्वचा पर यूँ धूप का कोई खास असर नहीं होता लेकिन तैलीय त्वचा पर मुँहासे उगने लगते हैं।

* उम्र का तीसरा दशक त्वचा पर स्थायी प्रभाव पड़ने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इसी दशक में आनुवांशिक लक्षणों, त्वचा का प्रकार तथा धूप के प्रभाव के कारण कोलेजन का तेजी से क्षरण होता है। चेहरे को देखने से ऐसा लगता है कि पहले यह गुब्बारे की तरह फूला था अब जैसे हवा निकल गई है।

* उम्र के चालीसवें दशक में हारमोंस का स्तर तेजी से घट-बढ़ होता है। इससे माँसपेशियों का लचीलापन, बोन्स रेस्पोरेशन, कोलेजेन डिजनरेशन, इलास्टीन डिजनरेशन होता है तथा कुल चर्बी में कमी होने लगती है, जिससे त्वचा सूखी और पतली होने लगती है। इससे झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं।

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