भारत में अर्थव्यवस्था, लिटरेसी रेट (literacy rate), महिला सशक्तिकरण जैसे कई मुख्य पहलुओं पर तेज़ी से विकास हुआ है, पर इस विकास के साथ ही भारत में फेयरनेस प्रोडक्ट (fairness product) का मार्केट भी काफी तेज़ी से बढ़ रहा है।
हाल ही में मशहूर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने आर्मचेयर एक्सपर्ट पॉडकास्ट (Armchair Expert Podcast) के एपिसोड में भारत में रंगभेद की गंभीरता का ज़िक्र किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे भारत में गोरे रंग के लिए विज्ञापन बनाएं जाते हैं और उसमें बताया जाता है कि अगर आप सांवले हैं तो आपको किसी भी तरह के अवसर नहीं मिलेंगे। इस तरह के विज्ञापन किशोर लड़कियों में आत्म संदेह पैदा करते हैं। पर सवाल ये है कि भारत में कैसे फेयरनेस मार्केट (fairness market) की शुरुआत हुई?
चलिए कुछ तथ्यों के ज़रिए जानते हैं फेयरनेस प्रोडक्ट का इतिहास........
कैसे हुई फेयरनेस मार्केट की शुरुआत?
भारत में सबसे पहले फेयरनेस क्रीम की शुरुआत 1919 में उद्यमी एब्राहिम सुल्तानाली पाटनवाला द्वारा की गई थी जिन्होंने 'अफ़ग़ान स्नो' (Afghan Snow) नाम से भारत की पहली ब्यूटी क्रीम (beauty cream) लांच की थी। इस क्रीम का नाम अफ़ग़ानिस्तान के राजा ज़ाहिर के अनुसार रखा गया था जिन्होंने कहा था कि ये क्रीम उन्हें अपने देश की स्नो (snow) की याद दिलाती है। इसके साथ ही कई मशहूर कलाकारों ने इस क्रीम का विज्ञापन भी किया।
1975 में हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) द्वारा फेयर एंड लवली (Fair & Lovely) को लांच किया गया जिसने मार्केट में अपनी जगह बनाई। 1980 के दौरान फेयर एंड लवली (Fair & Lovely) के विज्ञापन में ये दिखाया गया कि सांवली लड़कियां एक अच्छा पति और नौकरी ढूंढ़ने में असमर्थ हैं क्योंकि उनका रंग सांवला है। इस तरह के विज्ञापन 21वीं सदी की शुरुआत तक चले, पर 2014 में Advertising Standards Council of India (ASCI) द्वारा इस प्रकार के विज्ञापन को प्रतिषिद्ध कर दिया गया।
क्या है फेयरनेस मार्केट की फ्यूचर ग्रोथ?
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का फेयरनेस मार्केट 2027-28 तक 6% CAGR (compound annual growth rate) से वृद्धि करेगा। इस वृद्धि का कारण एंटरटेनमेंट और सोशल मीडिया है। साथ ही भारत में पश्चिमी कल्चर से ज़्यादा पूर्वी कल्चर का दौर तेज़ी से बढ़ रहा है।