हमारे चेहरे के ऊपरी भाग में एक विशेष प्रकार की ग्रंथि होती है, जिसमें से तैलीय द्रव्य निरंतर निकलता रहता है जो कि हमारी त्वचा को प्राकृतिक रूप से कोमल रखने में सहायता करता है।
युवावस्था में प्रवेश करते ही हार्मोन्स का असंतुलन त्वचा की इन तैलीय ग्रंथियों को उत्तेजित करता है। जब ये ग्रंथियाँ जो कि चेहरे पर सबसे अधिक होती है। बहुत सक्रिय हो जाती है, तब त्वचा पर दाग-धब्बों का जाल फैलने लगता है। ग्रंथियों के अधिक सक्रिय हो जाने के कारण तैलीय द्रव्य की निर्माण मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण रोमछिद्र चौड़े हो जाते हैं।
धीरे-धीरे यह द्रव्य गाढ़ा होकर रोम छिद्रों को बंद कर देता है। यह गाढ़ा द्रव्य व रोम छिद्रों के मुख पर एक क़डा आवरण बना देता है। इस आवरण की संरचना में गंधक की प्रधानता होती है। इस आवरण को व्हाइट-हेड कहते हैं। यह हेड वायु के संपर्क से ऑक्सीजन से क्रिया करके काला पड़ जाता है।
यह आसपास की त्वचा के तंतुओं में विकार उत्पन्न करके सूजन कर देता है। यह सूजा हुआ भाग धीरे धीरे मुँहासा बन जाता है।