स्ट्रेच मार्क्स से कैसे बचें?
एक-दो बच्चों को जन्म दे चुकी या फिर गर्भवती महिलाओं के पेट और स्तन पर लंबी और सफेद रेखाएँ उभर आती हैं। कई बार ये रेखाएँ जाँघों के ऊपरी हिस्से में भी हो जाती हैं। ये रेखाएँ गर्भवती महिलाओं में जैसे-जैसे बच्चे का आकार बढ़ता है, वैसे-वैसे पेट बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं। इन्हें सामान्य भाषा में खोकसे, सफेद क्षीण रेखाएँ कहा जाता है। सफेद क्षीण रेखाएँ उन युवाओं और तरुणों में भी देखने को मिलती हैं, जो यकायक मोटे हो जाते हैं या जिम में जाकर बॉडी बिल्डिंग के लिए एक्सरसाइज करते हैं, जिससे उनके कंधे, पीठ, जाँघों और कटिप्रदेश में ये रेखाएँ बन जाती हैं।हमारी त्वचा दो तहों से बनी होती है, बाहरी चादररूपी एपीडर्मिस और आंतरिक डर्मिस होती है। हमारी डर्मिस में कई लंबे-लंबे संयोजी उत्तकों के तंतु होते हैं, जिन्हें कोलाजन फाइबर कहते हैं, जब गर्भावस्था में पेट बढ़ता है तो हमारी त्वचा में भी खिंचाव आता जाता है, त्वचा की बाहरी एपीडर्मिस तो खिंच जाती है, लेकिन आंतरिक डर्मिस इस खिंचाव को लंबे समय तक सहन नहीं कर सकती है और ये कोलाजन तंतु टूटते जाते हैं, जिससे त्वचा में स्ट्रेच मार्क बनते जाते हैं। शुरुआत में इनमें लालिमा बनी रहती है, बाद में ये सफेद हो जाते हैं। इन स्ट्रेच मार्क को चिकित्सा की शब्दावली में स्ट्रिया एल्बीकेंटेस कहते हैं, जबकि गर्भावस्था के दौरान होने वाले स्ट्रेच मार्क को स्ट्रिया ग्रेबीडेरम कहते हैं।स्ट्रेच मार्क देखकर आधुनिक गर्भवती स्त्रियाँ काफी चिंतित हो जाती हैं। त्वचा की कुरूपता से गर्भावस्था को छोड़कर उनका ध्यान सफेद रेखाओं पर बरबस आन पड़ता है। स्ट्रेच मार्क बनना हमारे शरीर में गर्भावस्था के दौरान चर्म पर खिंचाव होने से डर्मिस के न फैलने से उसके टूटते जाने की एक स्वाभाविक क्रिया है, जिसे थोड़ा रोका और कम किया जा सकता है, जबकि इसका कोई पक्का इलाज अभी उपलब्ध नहीं है। स्ट्रेच मार्क कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं। गर्भावस्थाजन्य स्ट्रेच मार्क को कम करने, उदर और स्तनों की हल्की तेल मालिश विटामिन-ई से करने पर ढीली मांसपेशियाँ कस जाती हैं। विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन-सी और प्रोटीन के अतिरिक्त सेवन से भी स्ट्रेच मार्क हल्के हो जाते हैं। वैसे भी गर्भ-समापन के साथ ही इनका उभार और तीव्रता कम हो जाती है, फिर भी जरूरत पड़ने पर चिकित्सक की राय भी ली जा सकती है।