पाकिस्तान की करिश्माई नेता बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दिए जाने से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के लिए उनका उत्तराधिकारी चुनने को लेकर बड़ी ही उलझन की स्थिति उत्पन्न हो गई है क्योंकि नेतृत्व के लिए यह पार्टी लंबे अर्से से भुट्टो परिवार पर आश्रित रही हैं।
अब तक कोई संकेत नहीं है कि पीपीपी का अगला प्रमुख कौन होगा। बेनजीर के जैसा कद्दावर नेता फिलहाल पार्टी में कोई नहीं है। बेनजीर के उत्तराधिकारी का सवाल रावलपिंडी में कल उनकी हत्या किए जाने के कुछ ही समय बाद उत्पन्न हो गया।
पार्टी इस आकस्मिक घटनाक्रम से सदमे में है और फिलहाल नेतृत्व के मुद्दे पर विचार भी नहीं किया जा रहा है।
पीपीपी नेतृत्व को लेकर पारंपरिक रूप से भुट्टो परिवार पर आश्रित रही है। पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को 1979 में फाँसी दिए जाने के बाद खाली हुई जगह को भरने के लिए बेनजीर खुद राजनीति में उतर आई थीं।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की स्थापना 1967 में बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी। तब से इस पार्टी का नेतृत्व पिता पुत्री ने ही किया। हालाँकि बेनजीर की माँ नुसरत भुट्टो भी कुछ समय के लिए पार्टी की अध्यक्ष रहीं।
बेनजीर की तीन संतानें हैं और सभी 20 साल से कम उम्र के हैं। इसलिए फिलहाल वे उनका उत्तराधिकारी नहीं हो सकते। बेनजीर की एकमात्र सहोदर सनम भुट्टो हैं, जो पाकिस्तान की राजनीति से लगातार बचती रही हैं।
बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी का नाम भी संभावित उत्तराधिकारियों में आ रहा है। हालाँकि आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता वैसी नहीं है। वह भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं और आठ साल कारावास की सजा काट चुके हैं।
सरकार द्वारा बेनजीर के खिलाफ लगाए गए विभिन्न भ्रष्टाचार के आरोपों में जरदारी का नाम भी था और पार्टी के अंदर उन्हें बेनजीर पर बोझ समझा जाता रहा। जब अक्टूबर में आठ साल के निर्वासन के बाद बेनजीर पाकिस्तान आईं तो जरदारी उनके साथ नहीं आए और वह दुबई में ही रहे।
दूसरी ओर फहीम उतनी महत्वपूर्ण नेता नहीं हैं और उनमें बेनजीर वाला करिश्मा भी नहीं है। हाल के चुनाव प्रचार अभियान में बेनजीर अपनी पार्टी की एकमात्र स्टार प्रचारक थीं।
पार्टी सूत्रों ने सुझाव दिया है कि पीपीपी अहसन जैसे नेताओं के नाम पर भी विचार कर सकती है। अहसन उच्चतम न्यायालय बार संघ के अध्यक्ष हैं।
राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ इस साल वकीलों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वालों में अहसन भी थे। मार्च में जब मुशर्रफ ने न्यायमूर्ति इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को निलंबित किया था तो उन्होंने उच्चतम न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश का बचाव भी किया था।
हाल के महीनों में बेनजीर ने अहसन को दरकिनार कर दिया था। ऐसा आपातकाल लागू किए जाने के बाद बर्खास्त किए गए न्यायाधीशों को बहाल करने के मुद्दे पर दोनों के बीच मतभेद थे।
पीपीपी को आम चुनाव में हिस्सा लेने के महत्वपूर्ण प्रश्न पर भी विचार करना है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन ने चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा की है।
यद्यपि बेनजीर की हत्या से चुनाव में उनकी पार्टी के प्रति सहानुभूति उमड़ने की उम्मीद है, लेकिन उसे जल्द ही अपना नेता चुनने की आवश्यकता है।