नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन को चुनकर जनता ने साबित कर दिया कि बिहार जिस ट्रेक पर चल रहा है, वही सही है। विकास के मुद्दे से अनर्गल चुनावी बयानबाजी तक हर मोर्चे पर महागठबंधन ने मोदी की टीम राजग का जमकर मुकाबला किया।
नीतीश के पास मोदी के हर वार का जवाबी तीर था जो सीधे निशाने पर लगा। चाहे लालू से गठबंधन की बात हो या मोदी के विकास पर करारे सवाल हर मोर्चे पर नीतीश भारी पड़े और मोदी की सभाओं में उमड़ी भीड़ को वोट में बदलने से रोक दिया। वे जनता को यह भी समझाने में सफल रहे हैं कि महागठबंधन जीता तो मुख्यमंत्री वे खुद होंगे और राजग जीता तो मोदी की कोई कठपुतली। आइए, नजर डालते हैं उन बातों पर जिसने नीतीश को मोदी के मायाजाल को तोड़ने में मदद की...
नीतीश कुमार की विकास पुरुष और सुशासन की छवि : इस चुनाव में नीतीश का विकास पीएम मोदी के विकास पर भारी पड़ गया। 10 साल से बिहार पर राज कर रहे नीतीश के काम से जनता खुश थी और उनके खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर भी नहीं थी। बिजली और सड़क के मुद्दे पर मतदाताओं को मोदी की बात से ज्यादा नीतीश के सुशासन में दम लगा। मोदी का 125 हजार करोड़ का पैकेज भी मतदाताओं के नीतीश का साथ भी मतदाताओं को नहीं लुभा पाया।
मुस्लिम-यादव समीकरण अटूट रहा : महागठबंधन की जीत में सबसे बड़ी भूमिका मुस्लिम-यादव मतदाताओं ने निभाई। लालू को साधने से यादव मतदाता पूरी तरह नीतीश के साथ हो गया। दूसरी ओर बीफ पर बवाल से मुस्लिम मतदाताओं ने भी भाजपा से दूरी बना ली। ओवैसी फैक्टर का यहां ज्यादा असर नहीं हुआ और मुस्लिम जनता पूरी तरह नीतीश के साथ खड़ी नजर आई।
मोदी की अति सक्रियता का नकारात्मक असर : मोदी की अति सक्रियता ने बिहार के भाजपा नेताओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। एक ओर नीतीश और लालू के रूप में बिहारी नेता दिखाई दे रहे थे तो दूसरी ओर भाजपा के पास सुशील कुमार मोदी, गिरिराजसिंह समेत कई दिग्गज होने के बावजूद किसी की उपस्थिति दिखाई नहीं दे रही थी। मोदी के करारे भाषणों ने माहौल को पूरी तरह नीतीशमय बना दिया। मोदी का डीएनए वाला बयान भी नीतीश को ऑक्सीजन दे गया और उन्हें मतदाताओं का भरपूर आशीर्वाद मिला।
अगले पन्ने पर, टिकट बंटवारा बना फूट का कारण...
राजग में टिकट बंटवारे से उपजा असंतोष : टिकट वितरण के समय से ही भाजपा और उनके सहयोगी दलों फूट दिखाई दे रही थी। भाजपा के कुछ टिकटों पर हम नेताओं का चुनाव लड़ना, पासवान के परिवार में फूट और स्थानीय स्तर पर भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी राजग को भारी पड़ गई। अगर भाजपा नाराज कार्यकर्ताओं को मना लेती तो स्थिति उलट होती। वेल मैनेज्ड पार्टी मोदी लहर के भरोसे रह गई और उसके मिस मैनेजमेंट ने नीतीश को फिर सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका अदा की।
मोदी और अमित शाह के हर हमले का सधा हुआ जवाब : पीएम मोदी और अमित शाह ने चुनावी रैलियों में जिस तरह के हमले किए लालू ने उनका बखूबी जवाब दिया। नीतीश ने राजग के बड़े नेताओं पर सधे शब्दों में वार किया। नीतीश-लालू की जुगलबंदी ने महागठबंधन के लिए एक रणनीती तैयार कर दी जिसका भाजपा के पास कोई तोड़ नहीं था। एक भाजपा नेताओं का बड़बोलापन लोगों को रास नहीं आ रहा था वहीं नीतीश का जुबानी नियंत्रण उनके दिल में घर कर गया।
दाल की बढ़ी कीमतें : चुनावी मौसम में दाल के बढ़े दाम भी भाजपा के लिए हार का बड़ा कारण बन गए। एक ओर मोदी बिहार के विकास के लिए बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे वहीं दूसरी ओर जनता का हाल दाल के दामों ने बेहाल कर रखा था। जरूरत थी जख्मों पर मरहम लगाने की पर इसके उलट दाल पर हो रही राजनीति जख्मों पर नमक डाल रही थी। केंद्र की इस मामले में बेरुखी ने लोकसभा में भाजपा को मिले नए वोट बैंक को फिर लालू नीतीश के पाले में ला दिया।
अगले पन्ने पर, नहीं मिला मांझी का लाभ...
भाजपा के सहयोगी दलों के वोट बैंक में सैंध : नीतीश और लालू के एक मंच पर आने से उनके वोटर्स तो महागठबंधन के साथ आ गए पर जीतनराम मांझी के नीतीश से अलग होने का ज्यादा लाभ राजग को नहीं मिल सका। मांझी द्वारा खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करना पासवान से जुड़े लोगों को रास नहीं आया तो पासवान को राजग में मिल रही प्रमुखता ने मांझी समर्थकों को नाराज कर दिया। इनके आपसी झगड़ों ने मतदाताओं को महागठबंधन के घर का रास्ता दिखा दिया।
लालू-नीतीश के बीच बेहतर तालमेल : भाजपा के दिग्गज यह मान बैठे थे कि लालू और नीतीश एक सुर में नहीं बोल सकते लेकिन इसके उलट दोनों ने एक मंच पर न आते हुए भी रैलियों का इस तरह समां बांधा की मोदी लहर ही हवा हो गई। दोनों अलग अलग रैलियां कर रहे थे और इस तरह मोदी के मुकाबले ज्यादा जगह पहुंच सके। जदयू कार्यकर्ताओं का राजद और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का इस तरह साथ मिला मानो यह तीन नहीं एक ही दल हो।
एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न होना : महागठबंधन की ओर से तो नीतीश ही सीएम पद के उम्मीदवार थे, लेकिन मतदान के अंतिम चरण में राजग से भाजपा, जीतनराम मांझी और पासवान की पार्टियां मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा जताती रही।
विवादास्पद बयान : मोहन भागवत का आरक्षण संबंधी बयान और भाजपा नेताओं तथा मंत्रियों के विवादास्पद बयानों ने भी नीतीश की राह में बिछे कांटों को हटाने में बड़ी भूमिका अदा की। आरक्षण और दलित राजनीति पर हुई बयान नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाना राजग को भारी पड़ गया और महागठबंधन लोगों को यह समझाने में सफल रहा है कि नीतीश विरोधी बिहार के सीएम नहीं बिहारियों के डीएनए को खराब बता रहे हैं।