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बिहार में यादव-मुस्लिम समीकरण तोड़ने के लिए भाजपा का नया दांव

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अनिल जैन

पटना , सोमवार, 19 अक्टूबर 2015 (19:14 IST)
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले दो चरणों में हुए मतदान से अपने लिए कोई अनुकूल संकेत नहीं मिलने से भाजपा नेताओं की पेशानी पर बल पड़ने लगे हैं, लेकिन उन्होंने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है, क्योंकि मतदान के तीन चरण अभी बाकी हैं जिनमें दो तिहाई यानी 162 सीटों पर अभी वोट डाले जाने हैं।  
शुरुआती दोनों चरणों के मतदान के दौरान मुस्लिम-यादव (एमवाई) के मजबूत गठजोड़ और महिलाओं के भारी संख्या में मतदान करने से भाजपा नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है। अगले तीन चरणों में महागठबंधन पर निर्णायक बढ़त बनाने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने महागठबंधन की नए सिरे से घेरेबंदी के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इस सिलसिले में बिहार में पटना सहित अन्य शहरों से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्रों में पूरे पेज का विज्ञापन छपवाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को घेरने का प्रयास किया है।
 
इस विज्ञापन में न तो मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र है और न ही नीतीश सरकार की कथित नाकामियों का, बल्कि 1992 में लिखे नीतीश कुमार के एक पत्र को हथियार बनाया गया है। यह पत्र उस समय नीतीश कुमार ने अपनी ही पार्टी के नेता और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को लिखा था। इस पत्र में नीतीश ने लालू यादव पर एक जाति विशेष को तरजीह देकर सामाजिक न्याय का गला घोंटने का आरोप लगाया था। इस पत्र में जिक्र किया गया है कि कैसे पुलिस और प्रशासनिक महकमे में एक खास जाति की दबंगई कायम है और भर्तियों में उसे ही तरजीह दी जा रही है।
 
इस विज्ञापन से अब यह सवाल उठने लगा है कि जब भाजपा बिहार में फीलगुड कर ही रही है और उसे अपनी जीत का पूरा भरोसा है तो फिर अचानक यह नया विज्ञापन क्यों? मतदान के दो चरण निबट जाने के बाद भाजपा आखिर इस तरह की चिट्‌ठी को अपना हथियार क्यों बना रही है? दरअसल अभी तक जो संकेत मिल रहे हैं, उनके मुताबिक दोनों चरणों के मतदान में मुस्लिम-यादव समीकरण मजबूती से महागठबंधन के साथ खड़ा रहा है। 
 
इसलिए विज्ञापन के जरिए भाजपा जहां यादवों को जताना चाह रही है कि नीतीश उनके बारे में क्या राय रखते हैं और अगर वे फिर मुख्यमंत्री बन गए तो उन्हें कोई फायदा नहीं मिलने वाला है। वहीं, कुर्मी-कोइरी और दलितों को यह बताने का प्रयास किया गया है कि अगर लालू की पार्टी फिर से सत्ता में आ गई तो उनका भला नहीं होगा और सारा फायदा यादवों को मिलेगा।
 
जानकारों का मानना है कि इस विज्ञापन से साफ हो गया है कि भाजपा भी यह मानकर चल रही है कि यादवों का वोट उसके गठबंधन को नहीं मिलने वाला है। माना जा रहा है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान से पिछड़े वर्गों में महागठबंधन के पक्ष में लामबंदी हुई है।

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